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वैश्वीकरण का अर्थ,कारण,इतिहास, आयाम | Meaning, Causes, History, Dimensions of Globalization in Hindi

वैश्वीकरण क्या है ( what is globalization).

वैश्वीकरण एक प्रक्रिया (Process) है, जबकि वैश्विकृत विश्व (Globalized World) लक्ष्य है, जिसे हासिल किया जाना है। साधारणत: यह एक आर्थिक संकल्पना है परंतु इसके राजनीतिक, सांस्कृतिक, प्रोद्योगिकी आयाम भी हैं। वैश्वीकरण आखिरकार क्या है? इसके प्रमुख घटक क्या है? इसके लिए वैश्वीकरण की कोई सार्वभौमिक एवं निश्चित परिभाषा नहीं है। सामान्य अर्थों में वैश्वीकरण से तात्पर्य भौगोलिक सीमाओं का न होना तथा भौगोलिक दूरियों की समाप्ति को माना जा सकता है। अर्थात् अलग-अलग राष्ट्रों (देशों) एवं व्यक्तियों से संबंधित विचारों, तकनीकों, संस्कृतियों तथा अर्थव्यवस्थाओं के बीच घटती दूरियां तथा अदान-प्रदान है।

वैश्वीकरण के कारण (Reasons Behind Globalization)

  दुनिया के राष्ट्रों और लोगों के बीच कम होते इस फासले के कई कारण है, जैसे कि :-

  • विज्ञान एवं तकनीक का विकास
  • देशो के बीच आपसी निर्भरता
  • घटनाओं का विश्वव्यापी प्रभाव
  • बड़े पैमाने पर उत्पादन एवं नये बाजारों की तलाश
  • उत्पादन, औद्योगिक संरचना एवं प्रबंधन का लचीलापन
  • अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय एवं वाणिज्यिक संस्थाए (विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं विश्व व्यापार संगठन)

वैश्वीकरण का इतिहास (History of Globalization)

वैश्वीकरण की उत्पत्ति को लेकर कुछ विद्वानों का मत है कि वैश्वीकरण बीसवीं शताब्दी की देन है, किंतु हमें यह भी बात ध्यान रखनी चाहिए कि वैश्वीकरण अलादीन के चिराग के जिन की तरह अचानक से बीसवीं शताब्दी में उत्पन्न नहीं हुआ। बल्कि इसका स्वरूप तो प्राचीन काल से ही विकसित होता चला आ रहा है। इतिहासकार, साधु-महात्मा तथा राजा तब धन, शक्ति और ज्ञान की तलाश में नए-नए मार्गों की तलाश करते हुए दूर-दराज की यात्राएं करते थे। उदाहरण स्वरूप रेशम मार्ग जो चीन से लेकर यूरोप तक फैला हुआ था, जो दुनिया के एक बड़े भू-भाग को आपस में जोड़ता था और आर्थिक रूप से लोगों के जीवन को प्रभावित कर रहा था।

मध्यकाल में भी चंगेज खान तथा तैमूर लंग के साम्राज्य ने विश्व के एक बड़े भू-भाग को जोड़ा जिसे आधुनिक वैश्वीकरण का अल्पविकसित रूप माना जा सकता है। परंतु वास्तविक वैश्वीकरण की शुरुआत आधुनिक काल में विशेषकर औद्योगिकरण के बाद शुरू हुई। जिसने विश्व को समेटकर एक वैश्विक गांव (Global Village) का रूप देने की कोशिश की।

कुछ विद्वानों का मानना है कि प्रथम विश्व युद्ध से पूर्व वैश्वीकरण का नेतृत्व ब्रिटेन ने किया और दूसरे विश्व युद्ध के बाद उसका नेतृत्व अमेरिका ने किया। वैश्वीकरण शब्द का प्रचलन बीसवीं शताब्दी के अंतिम दो दशकों यानी 1980 एवं 1990 के दशक में जब शीत युद्ध का अंत और सोवियत संघ के बिखराव के बाद आम हो गया। इस प्रक्रिया में पूरे विश्व को एक वैश्विक गांव की संज्ञा दी जाती है। वैश्वीकरण के संदर्भ में अर्थशास्त्रियों का मानना है कि वैश्वीकरण के चार अंग होते हैं…

अर्थशास्त्रियो के मतानुसार वैश्वीकरण के 4 अंग होते है…

  • व्यापार-अवरोधों को कम करना जिससे उत्पादों एवं वस्तुओ का विभिन्न राष्ट्रों के बीच बिना बाधा के आदान-प्रदान हो सके।
  • ऐसी स्थिति का निर्माण करना, जिसमे विभिन्न राष्ट्रों के बीच पूंजी/धन का स्वतंत्र प्रवाह हो सके।
  • ऐसा वातारण कायम करना, जिसमे विभिन्न राष्ट्रों के बीच तकनीक का मुक्त प्रवाह हो सके, और;
  • ऐसा वातारण कायम करना, जिसमे विभिन्न राष्ट्रों के बीच श्रम का निर्बाध प्रवाह हो सके।

इस प्रकार वैश्वीकरण के चार अंग होते हैं, किंतु विकसित राष्ट्र अमेरिका एवं फ्रांस जैसे यूरोपीय राष्ट्र वैश्वीकरण की परिभाषा पहले तीन अंगों तक ही सीमित कर देते हैं और अपने-अपने राष्ट्रों में विकासशील और अविकसित राष्ट्रों से आने वाले श्रमिकों पर कठोर वीजा नीति के माध्यम से कड़ा प्रतिबंध लगाते हैं। इस कारण से वैश्वीकरण की खूब आलोचनाएं भी होती है।

इस प्रकार, हम कह सकते हैं कि विश्व स्तर पर आया खुलापन, आपसी मेल-जोल और परस्पर निर्भरता के विस्तार को ही वैश्वीकरण कहा जा सकता है।

वैश्वीकरण के आयाम ( Dimensions of Globalization)

वैश्वीकरण एक बहुआयामी प्रक्रिया है, जिसके आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक एवं प्रौद्योगिकी आयाम है। इसके विभिन्न आयामों पर विश्लेषण निम्नलिखित है:-

1. आर्थिक आयाम ( Economic Dimensions)

वैश्वीकरण का सबसे महत्वपूर्ण आयाम आर्थिक आयाम है। इसमें बाजार, निवेश, उत्पादन एवं पूंजी का प्रवाह आते हैं। विश्व के लगभग तमाम विकासशील और अविकसित राष्ट्रों के पास निवेश के लिए पूंजी का अभाव था। इस निवेश की कमी को पूरा करने के लिए इन राष्ट्रों में विदेशी पूंजी यानी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की चाहत लगातार बढ़ती जा रही थी, ताकि वे अपने राष्ट्र का विकास कर सकें। ऐसी परिस्थितियों का लाभ उठाते हुए वैश्वीकरण की प्रक्रिया ने पूरे विश्व को विश्व व्यापार के दायरे में घसीट लिया। वैश्वीकरण के आर्थिक आयाम को हम निम्न प्रकार से समझ सकते हैं।

सकारात्मक प्रभाव

वैश्वीकरण के कारण दुनिया के राष्ट्रों के बीच व्यापार काफी बढ़ा है, जिस कारण वैश्वीकरण में शामिल इन राष्ट्रों के बीच आपसी निर्भरता भी काफी बढ़ी है। अलग-अलग राष्ट्रों की जनता, व्यापार और सरकार के बीच जुड़ाव बढ़ता जा रहा है। इस खुलेपन के कारण दुनिया के ज्यादातर आबादी की खुशहाली बढी है। इस कारण से वैश्वीकरण के समर्थक इसको दुनिया के लिए वरदान मानते हैं।

आज वैश्वीकरण के कारण पूरी दुनिया में वस्तुओं के व्यापार में बढ़ोतरी हुई है। पहले अलग-अलग राष्ट्र अपने यहां दूसरे राष्ट्रों से होने वाले आयात पर प्रतिबंध और भारी भरकम टैक्स लगाते थे, लेकिन अब यह प्रतिबंध कम हो गए हैं। जिसका लाभ यह हुआ है कि अमीर राष्ट्रों के निवेशक अपना पैसा गरीब राष्ट्रों में लगा सकते हैं, खासकर विकासशील और अविकसित राष्ट्रों में जहां मुनाफा अधिक होगा। इस निवेश से इन पिछड़े राष्ट्रों में ढांचागत संरचनात्मक विकास, तकनीक और रोजगार के अवसरों में वृद्धि होती है। जिससे राष्ट्र विशेष की जनता का जीवन स्तर भी ऊपर उठता है।

वैश्वीकरण की इस प्रक्रिया में विश्व व्यापार संगठन जैसे संगठन ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार नीति निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पहले अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ की परिस्थितियां थी, लेकिन आज सभी राष्ट्र व्यापारिक एवं श्रम कानूनों से बंधे हुए हैं। जिसका उल्लंघन करने पर विश्व समुदाय द्वारा उस राष्ट्र विशेष पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।

नकारात्मक प्रभाव

वैश्वीकरण पूंजीवादी व्यवस्था मुक्त व्यापार एवं खुला बाजार पर आधारित है। मुक्त व्यापार एवं खुला बाजार की नीति ने जहां व्यापार के लिए रास्ते खोले वहीं उसी रास्ते से अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस जैसे विकसित राष्ट्रों की बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने विकासशील राष्ट्रों में अपने पांव जमा लिए, जहां नुकसान की भरपाई के लिए मुख्य रूप से राष्ट्र जिम्मेदार होता है, जबकि फायदा बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियां ले उड़ती है। उदाहरण स्वरूप आप भारत में घटी भोपाल गैस त्रासदी की घटना को देख सकते हैं।

वैश्वीकरण के कारण जहां बड़ी-बड़ी कंपनियां राष्ट्र में आती हैं, वहीं छोटी-छोटी देसी कंपनियां एवं स्थानीय स्तर पर होने वाले लघु एवं कुटीर उद्योग धीरे-धीरे तकनीक और गुणवत्ता की रेस में पिछड़ते हुए समाप्त होते जा रहे हैं। वैश्वीकरण की प्रक्रिया में उत्पादन बड़ी-बड़ी मशीनों द्वारा बड़े स्तर पर किया जा रहा है। जिस काम को जहां पहले कई-कई लोग मिलकर करते थे, आज यह मशीनें उन कामों को आसानी से कम समय एवं लागत पर करने में सक्षम है। जिसके कारण विकासशील राष्ट्रों में एक बड़ी जनसंख्या के सामने बेरोजगारी की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। वैश्वीकरण की प्रक्रिया के अंतर्गत संगठित क्षेत्र में रोजगार के अवसर कम हुए हैं। इसीलिए गरीब राष्ट्रों की अधिकांश जनता असंगठित क्षेत्रों में काम करने के लिए विवश है। जहां पर उत्पादकता एवं जीवन स्तर भी काफी निम्न है। यहां रोजगार से जुड़ा एक तथ्य यह भी है कि वैश्वीकरण मुख्यतः वस्तु , पूंजी, तकनीक और श्रम के स्वतंत्र प्रभाव पर आधारित है । लेकिन विकसित राष्ट्र वैश्वीकरण के चौथे अंग श्रम का स्वतंत्र प्रवाह की नीति को अनदेखा कर दूसरे राष्ट्रों से रोजगार की तलाश में आने वाले प्रवासियों के प्रति नकारात्मक रवैया अपनाते हैं और अपनी कठोर वीजा नीति के माध्यम से इन पर नियंत्रण रखते हैं।

2. राजनीतिक आयाम ( Political Dimensions)

वैश्वीकरण के कारण राष्ट्र द्वारा किए जाने वाले कार्यों में व्यापक बदलाव आया है। वैश्वीकरण की इस अंधी दौड़ में शामिल सरकारों को यह तय करने का अधिकार कम कर दिया है कि अपने राष्ट्रवासियों के लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा। इस परिस्थिति ने राष्ट्रों के अंदर एक अजीब से हालात पैदा कर दिए हैं। सरकारें वैश्वीकरण के आगे घुटने टेकते नजर आ रही है। प्रत्येक राष्ट्र में कुर्सी पर बैठे लोगों की जनता द्वारा कड़ी आलोचना की जाती है परंतु फिर भी सरकार बदलने के बाद भी मौजूदा हालातों में कोई खास परिवर्तन होता नहीं दिख रहा है। वैश्वीकरण के राजनितिक आयाम को हम निम्न प्रकार से समझ सकते हैं।

वैश्वीकरण के समर्थकों का मानना है कि वैश्वीकरण के कारण राष्ट्र पहले की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली हुए हैं। तकनीक के विकास एवं सूचना तथा विचारों की तीव्र गतिशीलता ने राष्ट्रों की क्षमता में बढ़ोतरी की है और वह अपने जरूरी कामों उदाहरण स्वरूप कानून व्यवस्था बनाए रखना, बाहरी आक्रमणों से राष्ट्र की सुरक्षा करने जैसे कार्यो को पहले से अधिक अब ज्यादा अच्छे और बेहतर तरीके से कर पा रहे हैं। आज उत्पादन वैश्विक स्तर पर किया जा रहा है। विश्व के तमाम राष्ट्र परस्पर निर्भर है। ऐसे में कोई भी राष्ट्र अपना आर्थिक नुकसान करके युद्ध का खतरा नहीं उठाना चाहता। तमाम राष्ट्र अपने कूटनीतिक संबंधों द्वारा अपने आपसी विवादों को हल करना चाहते हैं। साथ ही साथ इस आर्थिक जुड़ाव के कारण वैश्विक समस्याओं जैसे आतंकवाद और अभी देखे तो कारोना जैसी वैश्विक महामारी से निपटने के लिए साझा कार्रवाई को प्रोत्साहित किया है।

वैश्वीकरण के आलोचकों का मानना है कि इसके कारण राष्ट्रों के कार्य करने की क्षमता में कमी आई है। अब विभिन्न राष्ट्रों की संप्रभुता यानी निर्णय करने की शक्ति कमजोर हुई है। पूरे विश्व में कल्याणकारी राष्ट्र की जन-कल्याण नीतियां प्रभावित हुई है। अब न्यूनतम हस्तक्षेपकारी राष्ट्र की धारणा को विस्तार मिल रहा है। आज के समय में राष्ट्र कुछ महत्त्वपूर्ण कार्यों तक ही अपने आपको सीमित रख रहे हैं। उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण के इस दौर में राष्ट्रों ने पूंजीवादी अर्थव्यवस्था को अपनाया है। जिसमें उनको अहस्तक्षेप की नीति अपनानी पड़ती है। जिसके कारण गरीब और कमजोर वर्गों के लिए किए जाने वाले सुधार कार्य प्रभावित हुए हैं।

आज के दौर में लगभग सभी राष्ट्र अपनी विदेश नीति को अपनी इच्छा अनुसार तय नहीं कर पा रहे हैं। जिसका प्रमुख कारण इन राष्ट्रों की घटती शक्ति को माना जा रहा है। पूरे विश्व में विकसित राष्ट्रों की बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने पैर पसार चुकी हैं। यह तमाम बहुराष्ट्रीय कंपनियां विकासशील राष्ट्रों में सरकारों को प्रभावित कर राष्ट्र की नीतियों को अपने फायदे के लिए परिवर्तित करवा रहीं हैं। जिस कारणवश सरकारों की स्वयं निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित हुई है।

3. सांस्कृतिक आयाम ( Cultural Dimensions)

वैश्वीकरण के इस तूफान ने दुनिया के हर हिस्से, समाज एवं समुदाय को प्रभावित किया है। संस्कृतियों का फैलाव अब केवल कला या संगीत के जरिए नहीं, बल्कि विश्व व्यापार संगठन जैसे संगठनों के नेटवर्किंग के जरिए हो रहा है। वैश्वीकरण के सांस्कृतिक आयाम को हम निम्न प्रकार से समझ सकते हैं।

वैश्वीकरण की प्रक्रिया में लोगों का एक राष्ट्र से दूसरे राष्ट्र में आवागमन महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। उदाहरण स्वरूप भारतीय लोग थाईलैंड, मलेशिया, मॉरिशस, सिंगापुर, वेस्टइंडीज गए और अपने साथ-साथ वहां भारतीय संस्कृति को भी ले गए। जिसे उन्होंने सुरक्षित रखते हुए उसे व्यवहारिक एवं जीवित रखा। सांस्कृतिक वैश्वीकरण में वेशभूषा जैसे जींस, साड़ी, कुर्ता-पजामा इत्यादि एवं खान-पान का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उदाहरण स्वरूप मैकडॉनल्ड का बर्गर आपको दुनिया के किसी भी राष्ट्र की राजधानी में मिल जाएगा। वैश्वीकरण की इस प्रक्रिया को बर्गराजेशन कहा जाता है।

आज वैश्वीकरण के इस दौर में टीवी और इंटरनेट जैसे माध्यमों से विकासशील राष्ट्रों की जनता को विज्ञापनों से इतना प्रभावित कर दिया जाता है कि उनके पास कोई विकल्प ही नहीं बचता। टीवी और इंटरनेट के माध्यम से बहुराष्ट्रीय कंपनियां उपभोक्तावाद और पश्चिमी मूल्यों का प्रचार-प्रसार कर रही है।

विकासशील और अविकसित राष्ट्र खासकर अमेरिकी सांस्कृतिक पर प्रभुत्व के शिकार है। सीएनएन जैसे समाचार चैनलों के माध्यम से अमेरिका अपने सांस्कृतिक मूल्यों को विस्तार देने में लगा हुआ है। इसके अलावा पेप्सी, कोका-कोला, रीबोक, एडिडास जैसे उत्पाद; एमटीवी, एचबीओ जैसे मनोरंजन चैनल्स; मिकी माउस, बैटमैन, सुपरमैन जैसे काल्पनिक चरित्र; मैकडॉनल्ड जैसी फास्ट फूड श्रखंलाए; एमवे जैसे उत्पाद अमेरिकी जीवन मूल्यों को विश्व के राष्ट्रों पर थोपने के साधन साबित हुए हैं। इससे विकासशील और अविकसित राष्ट्रों की मौलिक संस्कृति पर पहचान का संकट खड़ा हो गया है।

इसके नकारात्मक पक्षों में एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि पश्चिमी जीवन मूल्यों ने विकासशील राष्ट्रों की जनता खासकर बच्चे और युवा जल्द से जल्द अमीर बन पाश्चात्य दैनिक जीवन की सभी सुख सुविधाएं हासिल करना चाहते हैं। इस तरह उनको आसानी से गलत रास्ते पर ले जाया जा सकता है और उनका शोषण किया जा सकता है।

4. प्रौद्योगिकी आयाम ( Technology Dimension)

हमने उपरोक्त चर्चा की कि वैश्वीकरण एक ऐसी व्यवस्था है जिसका उदय विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में हुए विकास के कारण हुआ एवं जिसका उपयोग व्यापार तथा वाणिज्य के क्षेत्र में हुआ। इस दृष्टिकोण से वैश्वीकरण में प्रौद्योगिकी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। वैश्वीकरण के प्रौद्योगिकी आयाम को हम निम्न प्रकार से समझ सकते हैं।

प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हुए क्रांतिकारी परिवर्तनों ने दुनिया को वास्तव में एक वैश्विक ग्राम बना दिया है। संचार व्यवस्था में आई क्रांति ने विश्वव्यापी संपर्क को काफी तेज कर दिया है। टेलीफोन, मोबाइल, इंटरनेट सिस्टम और वेबसाइटों के माध्यम से लोगों, व्यापारियों एवं राजनेताओं में मानो कोई दूरी ही नहीं रह गई। आज हम वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से विश्व के किसी भी कौने में होने वाले कार्यक्रमों में सक्रिय भागीदारी कर सकते हैं। इससे हमारे समय और धन दोनों की बचत होती है।

प्रौद्योगिकी के विकास ने राष्ट्रों की क्षमता को भी बढ़ाया है। राष्ट्र अपने अनिवार्य कार्य जैसेकि कानून व्यवस्था बनाए रखना, बाहरी आक्रमण से राष्ट्र की सुरक्षा करने जैसे मामलों को बेहतर और अधिक प्रभावशाली तरीके से कर सकते हैं। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विकास का प्रभाव स्वास्थ्य एवं चिकित्सा के क्षेत्र में भी दिखाई देता है। आज घातक से घातक बीमारियों का ईलाज ढूंढ कर मानव को स्वस्थ रखने के उपाय ढूंढ लिए गए हैं। इसका प्रभाव हमें कृषि, परिवहन, शिक्षा के क्षेत्रों में भी हुए क्रांतिकारी परिवर्तनों के रूप में देखने को मिलता है।

सूचना क्रांति के इस दौर में साइबर क्राइम या सूचना प्रौद्योगिकी द्वारा होने वाले आर्थिक अपराध चिंता के नए विषय है। अगला विश्वयुद्ध साईबर युद्धों का हो सकता है। दुश्मन राष्ट्र की समूची रक्षा प्रणाली को घर बैठे ध्वस्त किया जा सकता है। इसका एक और महत्वपूर्ण नकारात्मक प्रभाव यह है कि आतंकवाद के विस्तार में इसकी बहुत बड़ी भूमिका रही है। सेटेलाइट फोन, इंटरनेट, मोबाइल फोन आदि का इस्तेमाल आतंकवादियों ने आतंक फैलाने के लिए किया है।

शिक्षा का क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं रहा है। आज शिक्षा एक आयामी होता जा रहा है। आज शिक्षण संस्थाएं व्यवसायिक शिक्षा को प्रमुखता दे रही है, जो बाजार के लिए उपयोगी कौशल प्रदान कर सकें। आपने देखा होगा कि आजकल के छात्र बी.ए., एम.ए. करने की जगह 10वीं 12वीं की पढ़ाई करते समय आईआईटी, पॉलिटेक्निक की तैयारी में जुट जाते हैं और वहीं पर एडमिशन लेना चाहते हैं। जबकि सामाजिक विज्ञान से संबंधित विषय जैसे इतिहास, राजनीति विज्ञान जैसे विषयों पर सरकार और जनता उदासीन प्रतीत होती दिख रही है। इसकी एक और आलोचना यह है कि वैश्विकृत विश्व में विज्ञान एवं तकनीकी के विकास की सबसे भारी कीमत हमारे पर्यावरण को चुकानी पड़ी है। ओजोन परत का रिक्तिकरण, ग्लोबल-वॉर्मिंग जैसे परिणाम वैश्वीकरण की ही देन है। विकास की इस अंधी दौड़ में शहरीकरण एवं औद्योगिकरण के नाम पर विशेष आर्थिक क्षेत्र के लिए लाख-लाखों पेड़ काट दिए जाते हैं। जो कि हमेशा चिंता का विषय रहे हैं। इसका सबसे नकारात्मक प्रभाव गरीब राष्ट्रों की जनता खासकर किसानों एवं आदिवासियों के जीवन पर पड़ा है।

निष्कर्ष   (Conclusion)

संक्षेप में , उपरोक्त विवरण में हमने जाना कि वैश्वीकरण एक बहुआयामी प्रक्रिया है, जिसके चार आयाम है; आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और प्रौद्योगिकी। इन चारों आयामों के जहां कुछ सकारात्मक प्रभाव एवं परिणाम है, वहीं इनके कुछ नकारात्मक प्रभाव एवं परिणाम भी है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि वैश्वीकरण पर उपरोक्त चर्चा से हमें ज्ञात होता है कि वैश्वीकरण का मानव जीवन के समस्त क्षेत्रों में व्यापक बदलाव आया है। एक तरफ शासन व्यवस्था, दूरसंचार, शिक्षा, स्वास्थ्य क्षेत्र में हुए क्रांतिकारी परिवर्तनों ने मानव जीवन को सरल और सुविधा युक्त बना दिया है, वहीं दूसरी तरफ गरीब राष्ट्रों एवं खासकर विभिन्न राष्ट्रों के कमज़ोर तबको पर भयानक नकारात्मक प्रभाव पड़े हैं। उनके रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास जैसी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति एवं गुणवत्ता में आई गिरावट देखने को मिलती है।

“मुफ्त शिक्षा सबका अधिकार आओ सब मिलकर करें इस सपने को साकार”

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वैश्वीकरण पर निबंध, तथ्य, प्रभाव Essay on Globalization in Hindi

वैश्वीकरण पर निबंध, तथ्य, प्रभाव Essay on Globalization in Hindi, Its Facts and Effects

वैश्वीकरण पर निबंध, तथ्य, प्रभाव Essay on Globalization in Hindi, Its Facts and Effects

वैश्वीकरण अंतरराष्ट्रीय व्यापार, निवेश, सूचना प्रौद्योगिकी और संस्कृतियों के वैश्विक एकीकरण का प्रतिनिधित्व करता है। वैश्वीकरण  दुनिया भर में लोगों, कंपनियों और सरकारों के बीच बातचीत और एकीकरण की प्रक्रिया है। परिवहन और संचार प्रौद्योगिकी में प्रगति के कारण वैश्वीकरण बढ़ गया है।

बढ़ती वैश्विक बातचीत के साथ अंतरराष्ट्रीय व्यापार , विचारों और  संस्कृति की वृद्धि हुई है । हालांकि, विवाद और कूटनीति वैश्वीकरण के इतिहास के बड़े हिस्से रहे है।

Table of Content

वैश्वीकरण से जुड़े मुख्य तथ्य Facts about Globalization

प्रौद्योगिकी: संचार की गति को कई गुना कम कर दिया है। हाल ही की दुनिया में सोशल मीडिया ने दूरी को महत्वहीन बना दिया है। भारत में प्रौद्योगिकी के एकीकरण ने उन नौकरियों को बदल दिया है, इसके परिणामस्वरूप, लोगों के लिए अधिक नौकरी के अवसर पैदा किए गए हैं।

तेज़ परिवहन:  बेहतर परिवहन ने वैश्विक यात्रा को आसान बनाया है। उदाहरण के लिए, हवाई यात्रा में तेजी से वृद्धि हुई है, जिससे दुनिया भर में लोगों और सामानों की अधिक गतिशीलता बढ़ रही है।

पूंजी की बेहतर गतिशीलता: पिछले कुछ दशकों में पूंजी बाधाओं में सामान्य कमी आई है, जिससे विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं के बीच पूंजी प्रवाह आसान हो गया है। इसने फर्मों की वित्त प्राप्त करने की क्षमता में वृद्धि की है।

बहुराष्ट्रीय कंपनियों का उदय: विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में चल रहे बहुराष्ट्रीय निगमों ने सर्वोत्तम प्रथाओं का प्रसार किया है। दुनिया भर से एमएनसी स्रोत संसाधन अपने उत्पादों को वैश्विक बाजारों में बेचते हैं जिससे अधिक स्थानीय बातचीत होती है।

वैश्वीकरण और भारत Globalization and India

विकसित देश व्यापार को उदार बनाने के लिए विकासशील देशों को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं और व्यापार नीतियों में अधिक लचीलापन की अनुमति देते हैं ताकि वे अपने घरेलू बाजार में बहुराष्ट्रीय कंपनियों को समान अवसर प्रदान कर सकें। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) और विश्व बैंक ने उन्हें इस प्रयास में मदद की।

लिबरलाइजेशन ने निश्चित समय सीमा में इलेक्ट्रॉनिक सामानों पर उत्पाद शुल्क में कटौती के माध्यम से भारत जैसे विकासशील देशों की बंजर भूमि पर अपना पैर पकड़ना शुरू कर दिया है। भारत में सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों पर वैश्वीकरण के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव दोनों रहे हैं।

भारत में वैश्वीकरण के विभिन्न प्रभाव Effect of Globalization in India

आर्थिक प्रभाव-

  • नौकरियों की बड़ी संख्या: विदेशी कंपनियों के आगमन और अर्थव्यवस्था में वृद्धि ने नौकरी निर्माण का नेतृत्व किया है।
  • उपभोक्ताओं के लिए अधिक विकल्प: वैश्वीकरण द्वारा उत्पादों के बाजार में तेजी आई है। हमारे पास अब सामान चुनने में कई विकल्प हैं।
  • उच्च आय: उच्च भुगतान नौकरियों में काम करने वाले शहरों में, लोग सामानों पर खर्च करने के लिए अधिक आय रखते हैं। परिणामस्वरूप मांस, अंडे, दालें, कार्बनिक भोजन जैसे उत्पादों की मांग में वृद्धि हुई है। इसने प्रोटीन मुद्रास्फीति को भी जन्म दिया है।

प्रोटीन खाद्य मुद्रास्फीति भारत में खाद्य मुद्रास्फीति के लिए एक बड़ा हिस्सा योगदान देता है। यह अंडे, दूध और मांस के रूप में दालों और पशु प्रोटीन की बढ़ती कीमतों से स्पष्ट है। जीवन स्तर और बढ़ती आमदनी के स्तर में सुधार के साथ, लोगों की खाद्य आदतों में परिवर्तन होता है।

लोग अधिक प्रोटीन गहन खाद्य पदार्थ लेने की ओर जाते हैं। बढ़ती आबादी के साथ आहार पैटर्न में यह बदलाव प्रोटीन समृद्ध भोजन की जबरदस्त मांग में परिणाम देता है, जो आपूर्ति पक्ष पूरा नहीं कर सका। इस प्रकार मुद्रास्फीति के कारण मांग आपूर्ति में कमी आई।

  • कृषि क्षेत्र: वैश्वीकरण का कृषि पर कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता है। इसके विपरीत, इसके कुछ हानिकारक प्रभाव हैं क्योंकि सरकार हमेशा अनाज, चीनी इत्यादि आयात करने के इच्छुक है। जब भी इन वस्तुओं की कीमत में वृद्धि होती है,सरकार कभी किसानों को अधिक भुगतान करने का विचार नहीं करती है।  दूसरी तरफ, सब्सिडी घट रही है इसलिए उत्पादन की लागत बढ़ रही है। उर्वरकों का उत्पादन करने वाले खेतों को भी आयात के कारण पीड़ित होना पड़ता है। जीएम फसलों, हर्बीसाइड प्रतिरोधी फसलों आदि की शुरूआत जैसे खतरे भी हैं।
  • बढ़ती स्वास्थ्य देखभाल लागत:  वैश्वीकरण ने बीमारियों की बढ़ती संवेदनशीलता को भी जन्म दिया है। चाहे यह पक्षी-फ्लू विषाणु या इबोला है, बीमारियों ने वैश्विक मोड़ लिया है, जो दूर-दूर तक फैल रहा है। इस तरह की बीमारियों से लड़ने के लिए स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में अधिक निवेश होता है।

भारतीय समाज पर सामाजिक-सांस्कृतिक प्रभाव Effect of Globalization on Indian Society and Cultural

परमाणु परिवार उभर रहे हैं।  तलाक की दर दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। नमस्कार और नमस्ते के बावजूद लोगों को बधाई देने के लिए ‘हाय’, ‘हैलो’ का इस्तेमाल किया जाता है। वैलेंटाइन्स दिवस जैसे अमेरिकी त्यौहार पूरे भारत में फैल रहे हैं।

  • शिक्षा तक पहुंच: वैश्वीकरण ने वेब पर जानकारी के विस्फोट में सहायता की है जिसने लोगों के बीच अधिक जागरूकता में मदद की है।
  • शहरों की वृद्धि: यह अनुमान लगाया गया है कि 2050 तक भारत की 50% से अधिक आबादी शहरों में रहेगी। सेवा क्षेत्र और शहर केंद्रित नौकरी निर्माण के उछाल से ग्रामीणों के शहरी प्रवास में वृद्धि हुई है।
  • भारतीय व्यंजन: हमारे व्यंजन दुनिया भर में सबसे लोकप्रिय व्यंजनों में से एक है। ऐतिहासिक रूप से, भारतीय मसालों और जड़ी बूटियों का व्यापार सबसे रहता है। और हमारे यहाँ पिज्जा, बर्गर और अन्य पश्चिमी खाद्य पदार्थ काफी लोकप्रिय हो गए हैं।
  • वस्त्र:   महिलाओं के लिए पारंपरिक भारतीय कपड़े साड़ी, सूट इत्यादि हैं और पुरुषों के लिए पारंपरिक कपड़े धोती, कुर्ता हैं। हिंदू विवाहित महिलाओं ने लाल बिंदी और सिंधुर को भी सजाया, लेकिन अब, यह एक बाध्यता नहीं है।भारतीय लड़कियों के बीच जींस, टी-शर्ट, मिनी स्कर्ट पहनना आम हो गया है।
  • भारतीय प्रदर्शन कला:  भारत के संगीत में धार्मिक , लोक और शास्त्रीय संगीत की किस्में शामिल हैं। भारतीय नृत्य के भी विविध लोक और शास्त्रीय रूप हैं। भरतनाट्यम, कथक, कथकली, मोहिनीट्टम, कुचीपुडी, ओडिसी भारत में लोकप्रिय नृत्य रूप हैं। संक्षेप में कलारिपयट्टू या कालारी को दुनिया की सबसे पुरानी मार्शल आर्ट माना जाता है।  लेकिन हाल ही में, पश्चिमी संगीत भी हमारे देश में बहुत लोकप्रिय हो रहा है। पश्चिमी संगीत के साथ भारतीय संगीत को फ्यूज करना संगीतकारों के बीच प्रोत्साहित किया जाता है। अधिक भारतीय नृत्य कार्यक्रम विश्व स्तर पर आयोजित किए जाते हैं।  भरतनाट्यम सीखने वालों की संख्या बढ़ रही है। भारतीय युवाओं के बीच जैज़, हिप हॉप, साल्सा, बैले जैसे पश्चिमी नृत्य रूप आम हो गए हैं।
  • वृद्धावस्था भेद्यता : परमाणु परिवारों के उदय ने सामाजिक सुरक्षा को कम कर दिया है जो संयुक्त परिवार प्रदान करता है। इसने बुढ़ापे में व्यक्तियों की अधिक आर्थिक, स्वास्थ्य और भावनात्मक भेद्यता को जन्म दिया है।
  • व्यापक मीडिया: दुनिया भर से समाचार, संगीत, फिल्में, वीडियो तक अधिक पहुंच है। विदेशी मीडिया घरों ने भारत में अपनी उपस्थिति में वृद्धि की है। भारत हॉलीवुड फिल्मों के वैश्विक लॉन्च का हिस्सा है। यह हमारे समाज पर एक मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव है।

निष्कर्ष Conclusion

हम यह नहीं कह सकते कि वैश्वीकरण का प्रभाव पूरी तरह से सकारात्मक या पूरी तरह से नकारात्मक रहा है।  ऊपर वर्णित प्रत्येक प्रभाव को सकारात्मक और नकारात्मक दोनों के रूप में देखा जा सकता है। हालांकि, यह चिंता का मुद्दा तब बन जाता है, जब भारतीय संस्कृति पर वैश्वीकरण का खराब प्रभाव देखा जाता है।

प्रत्येक शिक्षित भारतीय मानता हैं कि भारत में, भूतकाल या वर्तमान में, बाहर से कुछ भी स्वीकृत नहीं किया जाना चाहिए जब तक कि वह उचित प्राधिकारी द्वारा मान्यता प्राप्त और अनुशंसित न हो। भारत की समृद्ध संस्कृति और विविधता को संरक्षित रखने के लिए हर पहलू की पर्याप्त जांच की जानी चाहिए। आशा करते हैं आपको “वैश्वीकरण पर निबंध, तथ्य, प्रभाव Essay on Globalization in Hindi” यह आर्टिकल पसंद आया होगा।

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Globalization essay in hindi or (globalisation) वैश्विकरण या पर निबंध.

Read an essay on Globalization in Hindi language for students of class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 and 12. Know more about Globalization in Hindi. वैश्विकरण पर निबंध

hindiinhindi Globalization Essay In Hindi

Globalization Essay In Hindi

वैश्विकरण या ग्लोबलाइजेशन पर निबंध

वैश्वीकरण एक अंग्रेजी का शब्द हैं जिसे हिंदी में भूमंडलीकरण भी कहा जाता है। वैश्विकरण, भूमंडलीकरण या ग्लोबलाइजेशन के प्रक्रिया में किसी भी व्यापर, तकनीक और अन्य सेवाओं को पूरे संसार के विश्व बाजार में विस्तार करना है। किसी एक देश का दूसरे देशो के साथ किसी वस्तु, सेवा, पूंजी, विचार, बौद्धिक सम्पदा का अप्रतिबंधित लेन-देन को वैश्विकरण, भूमंडलीकरण या ग्लोबलाइजेशन कहा जाता है। जिस के तहत किसी भी देश की वास्तु, सेवा, पूंजी अदि बिना किसी रोक टोक के आवाजाही हो।

ग्लोबलाइजेशन की शुरुआत – जब यूरोपीय देशों में करीब 16 वी शताब्दी में सम्राज्यवाद की शुरुआत हुई, ढीक उसी वक़्त से ग्लोबलाइजेशन की शुरुआत भी हो गयी थी। इतिहास में अगर इसे अपनाने की बात करे तो लगभग सभी देशो ने इसकी 1950-60 के दशक से शुरुआत की। मुख्य कारन था दूसरा विश्व युद्ध, जिसके बाद सभी देशो के राजनितिज्ञो और अर्थशास्त्रियो ने वैश्विकरण या ग्लोबलाइजेशन के महत्व को समझा।

ग्लोबलाइजेशन का प्रभाव – वैश्विकरण या ग्लोबलाइजेशन व्यवसाय और कारोबार के ऊपर बहुत प्रभाव डालता है। ग्लोबलाइजेशन से पड़ने वाले इन प्रभावों को दो श्रेणियों में विभाजित किया जाता है – बाजार वैश्विकरण या उत्पादन वैश्विकरण। बाजार वैश्विकरण के अंदर अपने देश के बने हुए उद्पादो को कम् कीमत पर दूरसे देशो में बेचा जाता है और उत्पादन वैश्विकरण के अंदर उन्ही उद्पादो को अपने ही देश में अधिक कीमत पर बेचा जाता है।

ग्लोबलाइजेशन के लाभ – व्यापार प्रणाली में ग्लोबलाइजेशन ने एक नई जान दाल दी है, जिसके बहुत सरे लाभ है। वैश्विकरण या ग्लोबलाइजेशन के बाद ही विश्व की विभिन्न कंपनियों ने दूसरे देशो में अपनी जगह बनाई। नए उद्धयोगो की स्थापना के वजह से रोज़गार में वृद्धि हुई। ग्लोबलाइजेशन की वजह से कई देशों की जीडीपी, राजकोषीय घाटा, मुद्रास्फीति,निर्यात, साक्षरता और जन्म मृत्यु दर में सुधर देखा गया।

वर्तमान युग वैज्ञानिक युग है जिसमे विश्व की राजनीति नए सिरे से संचालित होने लगी है। पहले इसे सामान्य लोग सिर्फ आर्थिक रूप से ही देखते थे किन्तु आज इसका राजनीतिकी, सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों पर भी बहुत प्रभाव पड़ता है।

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globalisation essay in hindi

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दा इंडियन वायर

वैश्वीकरण या भूमंडलीकरण पर निबंध

globalisation essay in hindi

By विकास सिंह

globalisation essay in hindi

विषय-सूचि

वैश्वीकरण निबंध, globalisation essay in hindi (100 शब्द)

वैश्वीकरण या भूमंडलीकरण सामान्यतः अपने व्यवसाय के सेवा क्षेत्र को दुसरे देशों तक बढ़ाना है। यदि कोई व्यवसाय अपने काम को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ले जाता है और किसी दुसरे राष्ट्र में स्थापित करता है तो इसके लिए बहुत बड़ा अंतर्राष्ट्रीय निवेश चाहिए होता है। हालंकि इससे बहिउट फायदे होते हैं। इससे एक व्यवसाय के ग्राहकों में काफी बढ़ोतरी होती है और इसके साथ ही यदि यह किसी ऐसे देश में जाता है जहां उत्पादन लागत कम है तो व्यवसाय को खर्च कम करने में मदद मिलती है।

पिछले दशक में वैश्वीकरण बहुत तेज हो गया है और भारत देश में हज़ारों विदेशी कंपनियां आ गयी है। इससे भारत के व्यवसायों में प्रतिस्पर्धा बढ़ गयी है और इसके साथ ही भारत में ग्राहकों के पास विकल्पों की संख्या बढ़ गयी है। एक तरफ जहां इसने ग्राहकों के विकल्प बहद दिए हैं वहीँ दूसरी तरफ इसने व्यवसायों की प्रतिस्पर्धा बढा दी है।

वैश्वीकरण निबंध, essay on globalisation in hindi language (150 शब्द)

globalisation

आज के युग में व्यवसाय तेजी से बढ़ रहे हैं और ये केवल एक देश में सीमित न होकर कई देशों तक अपनी पहुँच बना रहे हैं। व्यवसाय का एक देश से अधिक देशों में अपनी उपस्थिति बनाना ही वैश्विकरणर कहलाता है। वैश्वीकरण या भूमंडलीकरण सामान्यतः अपने व्यवसाय के सेवा क्षेत्र को दुसरे देशों तक बढ़ाना है। यदि कोई व्यवसाय अपने काम को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ले जाता है और किसी दुसरे राष्ट्र में स्थापित करता है तो इसके लिए बहुत बड़ा अंतर्राष्ट्रीय निवेश चाहिए होता है। हालंकि इससे बहुत फायदे होते हैं।

वैश्वीकरण एक व्यवसाय या कंपनी पर कई तरह से असर करता है। सबसे अहम् होता है की इससे एक व्यवसाय के अधिक ग्राहक बनते हैं क्योंकि यह अपने देश के साथ साथ दुसरे देशों में भी पाने उत्पाद पहुंचा सकता है। इसके साथ ही यदि चीन जैसे देशो में यदि कोई व्यवसाय को स्थापित करता है तो वहां के सस्ते श्रमिक दर का फायदा मिलता है और इससे उत्पादन लागत में कमी आती है। अतः वैश्वीकरण व्यवसाय के लिए लाभकारी है।

वैश्वीकरण निबंध, globalisation essay in hindi (200 शब्द)

globalisation

जब हम किसी वस्तु को पूरे विश्व तक पहुंचाते हैं तो उसे उस वस्तु का वैश्वीकरण कहते हैं। इसे हम समय क्षेत्र और राष्ट्रीय क्षेत्र से मुक्त एक स्वतंत्र और परस्पर बाज़ार का निर्माण करना भी कह सकते हैं। यदि उदाहरण के रूप में देखें तो डोमिनोस पिज़्ज़ा का आज दुनिया के अधिकतर देशों में होना वैश्वीकरण का जीता जागता उदारहण है। इसने एक देश से शुरुआत की थी और अब यह कितने ही देशों में है। यह केवल इसकी स्ट्रेटेजी की वजह से ही हो पाया है। एक व्यवसाय को इतने बड़े स्तर पर विकसित होने के लिए बेहतर रणनीति की सख्त ज़रुरत होती है।

हालांकि यह निर्धारित करना की वैश्वीकरण एक दश के लिए लाभकारी है या हानिकारक, यह थोडा मुश्किल है। यदि हम लाभ देखें तो इससे व्यवसाय को नए नए अवसर मिलते हैं और इसके साथ ही एक देश के ग्राहकों के पास ज्यादा विकल्प हो जाते हैं। इसके साथ ही यदि इसके एक देश पर नुक्सान देखा जाए तो हम देखते हैं की एक अंतर्राष्ट्रीय व्यवसाय का एक देश में आने की वजह से उस देश के व्यवसायों की प्रतिस्पर्धा बढती है जिससे उनके राजस्व पर प्रभाव पड़ता है। अतः इस प्रकार वैश्वीकरण देश के लिए लाभप्रद और हानिकारक है।

वैश्वीकरण निबन्ध, globalization essay in hindi (250 शब्द)

globalisation

पिछले कुछ दशकों में वैश्वीकरण बहुत तेजी से हुआ है जिसके परिणामस्वरूप प्रौद्योगिकियों, दूरसंचार, परिवहन, आदि में उन्नति के माध्यम से दुनिया भर में आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक एकीकरण हुआ है।

हालांकि इसने मानव जीवन को सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरीकों से प्रभावित किया है; इसके नकारात्मक प्रभावों को इसके अनुसार संबोधित करने की आवश्यकता है। वैश्वीकरण ने कई सकारात्मक तरीकों से दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं में बहुत योगदान दिया है। विज्ञान और प्रौद्योगिकियों में अविश्वसनीय उन्नति ने व्यवसायों को प्रादेशिक सीमाओं के बाहर भी आसानी से फैलने का अद्भुत अवसर दिया है।

वैश्वीकरण के कारण ही, कंपनियों की भारी आर्थिक वृद्धि हुई है। वे अधिक दक्ष रहे हैं और इस तरह उन्होंने अधिक प्रतिस्पर्धी दुनिया को जन्म दिया है। उत्पादों, सेवाओं आदि की गुणवत्ता में में प्रतिस्पर्धा की वजह से विकास हुआ है।  विकसित देशों की सफल कंपनियां अपने घरेलू देशों की तुलना में कम लागत वाले श्रम के माध्यम से स्थानीय स्तर पर लाभ लेने के लिए अपनी विदेशी शाखाएं स्थापित कर रही हैं। इस प्रकार की व्यावसायिक गतिविधियाँ विकासशील या गरीब देशों के लोगों को रोजगार दे रही हैं और इस प्रकार आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त कर रही हैं।

वैश्वीकरण के सकारात्मक पहलुओं के साथ, नकारात्मक पहलू भी भूलने योग्य नहीं हैं। एक देश से दूसरे देश में परिवहन के माध्यम से महामारी संबंधी बीमारियों का खतरा रहा है। हालांकि, मानव जीवन पर इसके नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए वैश्वीकरण पर सभी देशों की सरकार का उचित नियंत्रण रहा है।

भूमंडलीकरण पर निबन्ध, globalization essay in hindi (300 शब्द)

globalisation

वैश्वीकरण परिवहन, संचार और व्यापार के माध्यम से विज्ञान, प्रौद्योगिकी, व्यवसाय आदि के प्रसार की एक प्रक्रिया है। वैश्वीकरण ने दुनिया भर में लगभग सभी देशों को सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और मनोवैज्ञानिक रूप से भी प्रभावित किया है। वैश्वीकरण एक शब्द है जोकी तेजी से व्यापार और प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में देशों के एकीकरण और अन्योन्याश्रय को जारी रखने का संकेत देता है। वैश्वीकरण का प्रभाव परंपरा, पर्यावरण, संस्कृति, सुरक्षा, जीवन शैली और विचारों पर देखा गया है। दुनिया भर में वैश्वीकरण के रुझानों को प्रभावित करने वाले कई कारक हैं।

वैश्वीकरण में तेजी का कारण लोगों की मांग, मुक्त-व्यापार गतिविधियों, दुनिया भर में बाजारों की स्वीकृति, उभरती हुई नई प्रौद्योगिकियां, विज्ञान में नए शोध आदि हैं, क्योंकि वैश्वीकरण का पर्यावरण पर भारी नकारात्मक प्रभाव है और विभिन्न पर्यावरण को जन्म दिया है।

जल प्रदूषण, वनों की कटाई, वायु प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, जल संसाधनों के प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता हानि, आदि जैसे सभी बढ़ते पर्यावरणीय मुद्दों को अंतरराष्ट्रीय प्रयासों द्वारा तत्काल आधार पर हल करने की आवश्यकता है अन्यथा वे भविष्य में एक दिन पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व को समाप्त कर सकते हैं।

एप्पल कंपनी ने भी भूमंडलीकरण के नकारात्मक प्रभावों को कम करने और सकारात्मक प्रभावों को बढाने के लिए पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों का निर्माण करने का लक्ष्य रखा है।

लगातार बढ़ती जनसंख्या की बढ़ती माँगों के कारण वनों की कटाई जैसी समस्याएँ बढ़ रही हैं और इससे पर्यावरण का स्तर गिर रहा है। पिछले वर्षों में लगभग आधे उपयोगी वन काट दिए गए हैं। इसलिए इसके नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए वैश्वीकरण को नियंत्रण में लाने की आवश्यकता है।

वैश्वीकरण पर निबन्ध, essay on globalisation in hindi (400 शब्द)

globalisation

प्रस्तावना :

वैश्वीकरण अंतर्राष्ट्रीय व्यवसायों के लिए व्यवसायों को खोलने, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तकनीकी विकास, अर्थव्यवस्था आदि में सुधार करने का एक तरीका है। यह उत्पादों या वस्तुओं के निर्माताओं और उत्पादकों के लिए अपने उत्पादों को वैश्विक स्तर पर बिना किसी प्रतिबंध के बेचने का तरीका है।

यह व्यवसायियों को भारी लाभ प्रदान करता है क्योंकि उन्हें वैश्वीकरण के माध्यम से गरीब देशों में आसानी से कम लागत का श्रम मिलता है। यह दुनिया भर के बाजार से निपटने के लिए कंपनियों को एक बड़ा अवसर प्रदान करता है। यह किसी भी देश को किसी भी देश में व्यवसाय, स्थापित करने या विलय करने, इक्विटी शेयरों में निवेश, उत्पादों या सेवाओं की बिक्री की सुविधा प्रदान करता है।

वैश्वीकरण क्या है ?

वैश्वीकरण पूरी दुनिया को एकल बाजार के रूप में विकसित करता है। व्यापारी दुनिया को एक वैश्विक गांव के रूप में केंद्रित करके अपने क्षेत्रों का विस्तार कर रहे हैं।

1990 के दशक से पहले, कुछ उत्पादों के आयात पर प्रतिबंध था, जो भारत में पहले से ही निर्मित हो रहे थे जैसे कि कृषि उत्पाद, इंजीनियरिंग सामान, खाद्य पदार्थ, प्रसाधन आदि, हालांकि, 1990 के दशक के दौरान विश्व व्यापार संगठन, विश्व बैंक पर अमीर देशों का दबाव था। (विकास वित्तपोषण गतिविधियों में लगे हुए), और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष अन्य देशों को गरीब और विकासशील देशों में व्यापार और बाजार खोलकर अपने व्यापार को फैलाने की अनुमति देता है। भारत में वैश्वीकरण और उदारीकरण की प्रक्रिया 1991 में केंद्रीय वित्त मंत्री (मनमोहन सिंह) के अधीन शुरू हुई थी।

कई वर्षों के बाद, वैश्वीकरण ने भारतीय बाजार में बड़ी क्रांति ला दी जब बहुराष्ट्रीय ब्रांड जैसे पेप्सिको, केएफसी, मैक  डोनाल्ड, बूमर च्यूइंग गम, आईबीएम, नोकिया, एरिक्सन, ऐवा आदि आदि भारत में आए और सस्ते दामों पर कई तरह के गुणवत्तापूर्ण उत्पाद देने लगे। सभी प्रमुख ब्रांडों ने औद्योगिक क्षेत्र की अर्थव्यवस्था में जबरदस्त वृद्धि के रूप में यहां वैश्वीकरण की वास्तविक क्रांति को दिखाया। बाजार में चल रही गला काट प्रतियोगिता के कारण गुणवत्ता वाले उत्पादों की कीमतें कम हो रही हैं।

भारतीय बाजार में व्यवसायों का वैश्वीकरण और उदारीकरण, गुणवत्ता वाले विदेशी उत्पादों की भरमार कर रहा है, लेकिन यह साथ में स्थानीय भारतीय उद्योगों को काफी हद तक प्रभावित भी कर रहा है, जिससे गरीब और अशिक्षित श्रमिकों की नौकरी छूट गई है।

वैश्वीकरण का असर :

  • वैश्वीकरण ने भारतीय छात्रों और शिक्षा क्षेत्रों को काफी हद तक प्रभावित किया है, जो अध्ययन की किताबें और इंटरनेट पर भारी जानकारी उपलब्ध करा रहे हैं। भारतीय विश्वविद्यालयों के साथ विदेशी विश्वविद्यालयों के सहयोग ने शिक्षा उद्योग में एक बड़ा बदलाव लाया है।
  • सामान्य दवाओं, स्वास्थ्य निगरानी इलेक्ट्रॉनिक मशीनों, आदि के वैश्वीकरण से स्वास्थ्य क्षेत्र भी बहुत प्रभावित होते हैं। कृषि क्षेत्र में व्यापार के वैश्वीकरण ने रोग प्रतिरोधक संपत्ति वाले विभिन्न गुणवत्ता वाले बीजों को लाया है। हालांकि यह महंगे बीज और कृषि प्रौद्योगिकियों के कारण गरीब भारतीय किसानों के लिए अच्छा नहीं है।
  • इसने कुटीर, हथकरघा, कालीन, कारीगरों और नक्काशी, सिरेमिक, आभूषण और कांच के बने पदार्थ आदि के कारोबार के प्रसार से रोजगार क्षेत्र में एक बड़ी क्रांति ला दी है।

निष्कर्ष :

वैश्वीकरण ने विकासशील देशों के साथ-साथ बड़ी आबादी को रोजगार के लिए सस्ती कीमत वाले उत्पादों और समग्र आर्थिक लाभों की विविधता ला दी है। हालाँकि, इसने प्रतिस्पर्धा, अपराध, राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों, आतंकवाद आदि को जन्म दिया है, इसलिए, यह सकारात्मक के साथ साथ नकारात्मक असर भी लेकर आया है।

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विकास नें वाणिज्य में स्नातक किया है और उन्हें भाषा और खेल-कूद में काफी शौक है. दा इंडियन वायर के लिए विकास हिंदी व्याकरण एवं अन्य भाषाओं के बारे में लिख रहे हैं.

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Essay on Globalization in Hindi – ग्लोबलाइजेशन पर निबंध

January 29, 2018 by essaykiduniya

यहां आपको सभी कक्षाओं के छात्रों के लिए हिंदी भाषा में ग्लोबलाइजेशन पर निबंध मिलेगा। Here you will get Paragraph and Short Essay on Globalization in Hindi Language for students of all Classes in 200 and 900 words.

Essay on Globalization in Hindi Language – ग्लोबलाइजेशन पर निबंध

Essay on Globalization in Hindi

Essay on Globalization in Hindi Language – ग्लोबलाइजेशन पर निबंध ( 300 words )

ग्लोबलाइजेशन का अर्थ हैं सभी देशों में वस्तु, विचारों, सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक स्तर पर सभी चीजों के बिना किसी रोक टोक के लेन देन की आवाजाही है। इसकी शुरूआत सबसे पहले 16वीं सदी में युरोपीय देशों से हुई थी और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सभी देशों ने वैश्विकरण को अपनाया था। आज के इंटरनेट के युग ने ग्लोबलाइजेशन को आसान करके उसे बढ़ावा दिया है। ग्लोबलाइजेशन से सभी देशों को लाभ हुआ है और आयात निर्यात में वृद्धि हुई है और इससे विकासशील देशों को प्रगति करने में सहायता हुई है। इससे हम किसी भी चीज को एक देश से दुसरे देश में भेजने के लिए आजाद है। ग्लोबलाइजेशन की वजह से भारत अपनी संस्कृति को खोता जा रहा है और पश्चिमी सभ्यता को अपनाता जा रहा है।

ग्लोबलाइजेशन को बढ़ावा देने में सबसे ज्यादा सहयोग संयुक्त राष्ट्र बैंक ने दिया है। ग्लोबलाइजेशन के कारण पूरा विश्व एक गाँव का रूप से चुका है। आज भारत के सोफ्टवेयर इंजीनियर की विदेशों में माँग है। ग्लोबलाइजेशन के कारण भारत के आईटी इंजीनियर दुनिया के हर  कोने में हैं। ग्लोबलाइजेशन से विश्व में शांति और भाईचारा बढ़ेगा। कोई भी राष्ट्र दुसरे राष्ट्र की सहायता के बिना प्रगति नहीं कर सकता है।

इसकी वजह से रोजगार के क्षेत्र में भी क्रांती आई है। शिक्षा में भी वृद्ध् हुई है। स्थानीय विद्यालयों को विदेशों के विश्व विद्यालयों से जोड़ा गया है। वैश्विकरण में अगर हम प्रतिस्पर्धा की भावना न रखकर एक दुसरे का सहयोग करे तो जल्दी ही पूरे विश्व में सभी लोग विकसित होंगे। ग्लोबलाइजेशन बहुत ही लाभदायक है लेकिन सभी देशों को इस पर नियंत्रण रखना चाहिए। बिना ग्लोबलाइजेशन के कोई भी देश पूरे तरीके से आत्म निर्भर नहीं बन सकता है और न ही उसका आर्थिक विकास संभव है। वैश्विकरण दुनिया को जोड़ने में सहायक है।

Essay on Globalization in Hindi Language – ग्लोबलाइजेशन पर निबंध ( 900 words )

दुनिया पहले से कहीं अधिक परस्पर निर्भर है। 1980 के दशक से, शीत युद्ध को समाप्त करने और पूर्व सोवियत संघ के विभाजन के साथ वैश्वीकरण के लोकप्रिय धारणा को बढ़ा दिया गया है। वैश्वीकरण शब्द समाज और अर्थव्यवस्थाओं के बीच बातचीत और एकीकरण की प्रक्रिया को दर्शाता है। इस घटना में आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक डोमेन के साथ-साथ संचार, परिवहन, तकनीक और सीमाओं के विचारों के प्रवाह में बदलाव शामिल हैं। इन प्रवाहों की तीव्रता ने वैश्वीकरण के रुझान को बदल दिया है।

सूचना के तेजी से परिवर्तनों ने जीवन का एक नया पट्टा दिया है, इसलिए एक भी देश अलगाव में नहीं रह सकता; बातचीत की ज़रूरत है चूंकि बहुराष्ट्रीय कंपनियां कुछ देशों के उत्पादों का निर्माण करती हैं, लेकिन उन्हें दुनिया भर में बेचते हैं। वैश्वीकरण केवल अर्थव्यवस्थाओं में बाधाओं को दूर ही नहीं कर रहा है बल्कि इसके द्वारा संस्कृति और सामाजिक जीवन प्रभावित हो रहा है। टैरिफ और ट्रेड पर सामान्य समझौता (जीएटीटी), अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और मुक्त व्यापार की पहल की स्थापना ने वैश्वीकरण को बढ़ाया है।

भूमंडलीकरण ने विकासशील दुनिया के लिए नई संभावनाएं लायी हैं इसने विकासशील देशों में अपनी मशीनरी को बेहतर आउटपुट और उच्च जीवन स्तर के आश्वासन के साथ स्थानांतरित करने के लिए विकसित बाजारों में महान शक्ति दी है। हालांकि, इसमें कठिनाइयां भी सामने आई हैं, जैसे कि, सामाजिक-आर्थिक वर्गों के बीच असमानता में वृद्धि, आर्थिक गिरावट और वित्तीय बाजार में अस्थिरता। नब्बे के दशक में, व्यापार और निवेश पर प्रतिबंध हटा दिया गया और इस बाधा को हटाने ने भारत में वैश्वीकरण की तीव्रता को तेज कर दिया।

1990 के दशक के शुरूआत में, भारत ने विदेशी मुद्रा संकट की वजह से अपनी अर्थव्यवस्था को दुनिया में अनलॉक कर दिया, जिससे अर्थव्यवस्था के कर्ज पर चूक हुई। भारत में लिबरलाइजेशन, निजीकरण और वैश्वीकरण के रूप में जाना जाने वाला नया आर्थिक मॉडल की धारणा के साथ भारत में अचानक नीतिगत बदलाव हुआ था (एलपीजी)।

नब्बे के दशक के शुरुआती दिनों में, महत्वपूर्ण उपायों ने नीति के एक हिस्से के रूप में उभारा, जैसे उद्योगों के लाइसेंस छोड़ने, सार्वजनिक क्षेत्र के क्षेत्रों में कमी, एकाधिकार में संशोधन और नियंत्रित व्यापार प्रणाली का कार्य, निजीकरण कार्यक्रम आरंभ, टैरिफ कम करना शुल्क और सबसे महत्वपूर्ण बाजार निर्धारित विनिमय दर पर स्विच करना था। नीति में यह बदलाव भारतीय अर्थव्यवस्था के विस्तार पर नाटकीय प्रभाव डालता था। यह सभी परिवर्तन वास्तव में वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारतीय अर्थव्यवस्था के संलयन की घोषणा थे। नीति में बदलाव के साथ, अधिक से अधिक क्षेत्र विदेशी प्रत्यक्ष निवेश और पोर्टफोलियो निवेश शुरू करते हैं और दूरसंचार, हवाई अड्डों, बीमा, सड़कों, बंदरगाहों, हवाई अड्डों, परिवहन और बहुत कुछ में विदेशी निवेशकों को आकर्षित करते हैं।

भारतीय नई तकनीकों और जीने के नए तरीकों से उभर रहे हैं वैश्वीकरण के कारण, संचार बहुत आसान है क्योंकि सेल फोन उपयोगकर्ताओं की संख्या भारत में बढ़ी है। यूटीवी टेकट्री के मुताबिक, 2014 के साल तक, 97% भारतीयों का अपना सेल फोन होगा इससे पता चलता है कि यहां तक कि ग्रामीणों को भी इस उन्नति के साथ ही होगा। शहरों में अपने रिश्तेदारों के साथ बातचीत करना उनके लिए बहुत आसान होगा। सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट जैसे कि फेसबुक, याहू मैसेंजर आदि ने इंटरनेट एक्सप्लोरर भी उसी गति से बढ़ रहे हैं, जिससे संचार अंतराल लगभग खत्म हो गया है।

उसी समय, जहां संस्कृति लोगों के लिए एक स्वस्थ और शांतिपूर्ण वातावरण प्रदान करती है, क्योंकि वे अपने सांस्कृतिक विचारों, विचारों को वैश्वीकरण के साथ साझा करते हैं, अतीत से सांस्कृतिक मूल्यों में कमी आई है। उपभोक्तावाद और भौतिकवाद की एक पूरी तरह से नई संस्कृति, यह धन के संचय पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। लोग सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटों पर कंप्यूटर पर अपना समय व्यतीत कर रहे हैं या सेल फोन पर मैसेजिंग या वीडियो गेम खेलने या टीवी देखने के बजाए उत्पादक आउटडोर गतिविधियों में अपने समय का उपयोग करने और असली लोगों के साथ बातचीत करने के बजाय टीवी देख रहे हैं।

खाद्य संस्कृति भी अतीत से बदल गई है पिज्जा झोपड़ी, एमसी डोनाल्ड और अधिक जैसे पश्चिमी रेस्तरां के आक्रमण के साथ, लोगों को भारतीय भोजन के बदले ऐसे जंक फूड की ओर झुकाया जाता है, जो पोषण से भरा होता है। भारतीय साहित्य लगभग कम हो गया है क्योंकि अधिक से अधिक लोग अंग्रेजी भाषा में सीखने में दिलचस्पी रखते हैं और यहां तक कि स्कूलों को उनकी संस्कृति भाषा पर अंग्रेजी भाषा पसंद है इसलिए क्षेत्रीय भाषा की किताबें किसी भी अन्य अंग्रेजी पुस्तक की तुलना में कम सफल होती हैं। शास्त्रीय संगीत की अवधारणा लगभग भारत से गायब हो गई है। टेबल और सितार जैसे शास्त्रीय उपकरणों को सीखने में रुचि रखने वाले किसी भी छात्र नहीं हैं। इसके अलावा, वैश्वीकरण के साथ, किशोर पीने के पश्चिमी संस्कृति अपना रहे हैं और कुछ पत्रिका और टीवी चैनल ऐसी जानकारी प्रदर्शित करते हैं, जो युवा पाठकों के लिए अनुचित है।

सामान्य तौर पर, रोजगार पर वैश्वीकरण के प्रभाव परस्पर विरोधी है। जैसा कि भारत में दूसरी सबसे बड़ी आबादी है, इसलिए बेरोजगारी की सही दर जानने के लिए मुश्किल है। बड़ी संख्या में श्रम असंगठित या अज्ञात कार्यकर्ताओं के समूह के लिए धकेल दिया जाता है, ताकि आपूर्ति के अधिशेष श्रम बाजार में असंतुलित स्थिति या अपघटन को जन्म दे। बड़ी उत्पादन फर्म नैसर्गिक संसाधनों का दुरुपयोग कर सकता है और इनका उपयोग अक्षमतापूर्वक कर सकता है और घरेलू उत्पादक को बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा हावी जा रहा है जो पहले से ही भारत में घरेलू उद्योगपति पर प्रतिस्पर्धात्मक लाभ ले रहे हैं, निवेश करने के लिए अधिक धन है। इससे स्थानीय व्यवसायों को और अधिक बंद करना होगा।

निष्कर्ष निकालने के लिए, यह दावा किया जा सकता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था पर आर्थिक सुधारों के फायदे प्राप्त किए जा सकते हैं, यदि तभी से ऊपर उल्लिखित नकारात्मक प्रभावों जैसे कि बेरोजगारी, बढ़ती आबादी पर, स्थानीय व्यवसायों को बंद करना और अधिक कम हो जाएंगे। साथ में, वैश्वीकरण और आर्थिक नीतियों को सुधारने, संभावित श्रम बल को समझने और काम, आय और जीवन के लिए आवश्यक सुरक्षा प्रदान करने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए ताकि वे एक तरफ उस प्रक्रिया में और दूसरे पर भी लाभान्वित हो|

हम आशा करते हैं कि आप इस निबंध (  Essay on Globalization in Hindi Language – ग्लोबलाइजेशन पर निबंध ) को पसंद करेंगे।

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globalisation essay in hindi

Here is an essay on ‘Globalization’ for class 9, 10, 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Globalization’ especially written for school and college students in Hindi language.

Essay on Globalization

Essay Contents:

  • वैश्वीकरण के सम्बन्ध में सुझाव (Suggestions Regarding Globalization)

Essay # 1. वैश्वीकरण का अर्थ ( Meaning of Globalization):

ADVERTISEMENTS:

वैश्वीकरण का सम्बन्ध मुख्यतः विश्व बाजारीकरण से लगाया जाता है । जो व्यापार अवसरों के विस्तार का द्योतक है । वैश्वीकरण में विश्व बाजारों के मध्य पारस्परिक निर्भरता उत्पन्न होती है क्योंकि व्यापार देश की सीमाओं में न बँधकर लाभ की दशाओं का दोहन करने की दशा में अग्रसर होता है ।

इस उद्देश्य से विश्व का सूचना एवं परिवहन साधनों के माध्यम से एकाकार हो जाना वैश्वीकरण है । इस प्रकार की व्यवस्थाओं में खुली अर्थव्यवस्थाओं का जन्म होता है, जो प्रतिबन्धों से मुक्त तथा जिसमें स्वतन्त्र व्यापार होता है । इस प्रकार वैश्वीकरण में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों या नियमों का स्थान महत्वपूर्ण हो जाता है ।

वैश्वीकरण का अभिप्राय किसी देश की अर्थव्यवस्था को विश्व के अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं से जोड़ने से है जिससे व्यावसायिक क्रियाओं का विश्व स्तर पर विस्तार हो सके तथा देशों की प्रतिस्पर्द्धात्मक क्षमता का विकास हो । इस प्रकार वैश्वीकरण को अन्तर्राष्ट्रीयकरण के रूप में भी देखा जाता है । अन्य शब्दों में, वैश्वीकरण का अर्थ देश की अर्थव्यवस्था को विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ एकीकृत करना है ।

Essay # 2. वैश्वीकरण की परिभाषाएँ ( Definitions of Globalization):

वैश्वीकरण को विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया है:

a. ऑस्कर लेन्जे के अनुसार, ”आधुनिक समय में अल्प विकसित देशों के आर्थिक विकास का भविष्य मुख्यतः अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग पर निर्भर करता है ।”

b. प्रो. दीपक नैय्यर के अनुसार, ”आर्थिक क्रियाओं का किसी देश की राजनैतिक सीमाओं के बाहर तक विस्तार करने को वैश्वीकरण कहते हैं ।”

c. प्रो. एन. वाघुल के शब्दों में, ”वैश्वीकरण शब्द बाजार क्षेत्र के तीव्र गति से विस्तार को प्रकट करता है, जो विश्वव्यापी पहुँच रखता है ।”

d. जॉन नैसविट एवं पोर्टसिया अबुर्डिन के अनुसार, ”इसे ऐसे विश्व के रूप में देखा जाना चाहिए, जिसमें सभी देशों का व्यापार किसी एक देश की ओर गतिमान हो रहा हो । इसमें सम्पूर्ण विश्व एक अर्थव्यवस्था है तथा एक बाजार है ।”

उपर्युक्त परिभाषाओं से यह निष्कर्ष निकलता है कि ”वैश्वीकरण वह प्रक्रिया है, जिसमें एक देश की अर्थव्यवस्था को सम्पूर्ण विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ एकीकृत किया जाता है ताकि सम्पूर्ण विश्व एक ही अर्थव्यवस्था और एक ही बाजार के रूप में कार्य कर सके और जिसमें सीमाविहीन अन्तर्राष्ट्रीयकरण व्यवहारों के लिए व्यक्तियों, पूँजी, तकनीक माल, सूचना तथा ज्ञान का पारस्पारिक विनिमय सुलभ हो सके । वैश्वीकरण को सार्वभौमीकरण, भूमण्डलीयकरण और अन्तर्राष्ट्रीय आदि नामों से भी पुकारा जाता है ।”

Essay # 3. वैश्वीकरण की आवश्यकता ( Needs of Globalization):

वैश्वीकरण की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से है:

(1) वैश्वीकरण एकरूपता एवं समरूपता की एक प्रक्रिया है, जिसमें सम्पूर्ण विश्व सिमटकर एक हो जाता है ।

(2) अर्थव्यवस्था के तीव्र विकास के लिए वैश्वीकरण की नीति अपनायी गयी ।

(3) एक राष्ट्र की सीमा से बाहर अन्य राष्ट्रों में वस्तुओं एवं सेवाओं का लेन-देन करने वाले अन्तर्राष्ट्रीय नियमों या बहुराष्ट्रीय निगमों के साथ राष्ट्र के उद्योगों की सम्बद्धता वैश्वीकरण है ।

(4) विश्व के विभिन्न राष्ट्र पारस्परिक सहयोग एवं सद्‌भावना के साथ बाजार तन्त्र की माँग एवं पूर्ति की सापेक्षित शक्तियों के द्वारा वस्तुओं एवं सेवाओं का क्रय-विक्रय कर अपनी आवश्यकताओं की सन्तुष्टि करते हैं ।

(5) इस नीति के अन्तर्गत 34 उद्योगों को सम्मिलित किया गया । औद्योगिक नीति के अन्तर्गत उच्च प्राथमिकता प्राप्त उद्योगों में 51% तक के विदेशी पूँजी विनियोग को अनुमति प्रदान की गयी ।

(6) वैश्वीकरण की नीति को विदेशी उन्नत तकनीकी से निर्मित वस्तुओं तथा राष्ट्र की औद्योगिक संरचना के लिए आवश्यक बिजली, कोयला, पेट्रोलियम जैसे मूलभूत क्षेत्रों तक सीमित रखा गया था ।

(7) जिन मामलों में मशीनों के लिए विदेशी पूँजी उपलब्ध होगी, उन्हें स्वतः उद्योग लगाने की अनुमति मिल जायेगी ।

(8) विदेशी मुद्रा नियमन कानून में भी संशोधन किया गया ।

(9) वर्तमान में अन्य निजी कम्पनियाँ भी विदेशों में इकाइयाँ स्थापित कर औद्योगिक विश्व व्यापीकरण की ओर अग्रसर हैं ।

(10) वीडियोकॉन, ओनिडा, गोदरेज एवं बी. पी. एल. जैसी कम्पनियाँ, जापान, जर्मनी एवं इटली की बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का सहयोग लेकर उन्नत किस्म की वस्तुओं का उत्पादन कर अत्यधिक लाभ अर्जित कर रही है ।

(11) इस नीति के अन्तर्गत 12 करोड़ या कुल पूँजी के 25% से कम की उत्पादक मशीनें बिना पूर्वानुमति के आयात की जा सकेंगी ।

(12) प्रवासी भारतीय को पूँजी निवेश के लिए अनेक प्रोत्साहन तथा सुविधाएँ दी गयीं । भारतीय कम्पनियों को यूरो निर्गम जारी करने की अनुमति प्रदान की गयी है ।

(13) वैश्वीकरण की दिशा में सरकारी क्षेत्र की उर्वरक कम्पनी कृषक भारतीय कोऑपरेटिव लि. को अमेरिका के फ्लोरिडा स्थित एक फास्फेट उर्वरक कारखाने को अधिग्रहण कर संचालित करने की अनुमति सरकार ने प्रदान की है ।

ADVERTISEMENTS: (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); Essay # 4. वैश्वीकरण की विशेषताएँ या लक्षण ( Features or Characteristics of Globalization):

वैश्वीकरण की प्रमुख लक्षण या विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

i. इसमें, विश्व स्तर पर व्यापारिक बाधाओं को न्यूनतम करने के प्रयत्न किये जाते हैं जिससे दो राष्ट्रों के मध्य वस्तुओं तथा सेवाओं का सुलभ एवं निर्बाध गति से आवागमन हो सके ।

ii. वैश्वीकरण औद्योगिक संगठनों के विकसित स्वरूप को जन्म देता है ।

iii. विकसित राष्ट्र, अपने विशाल कोषों को ब्याज दर के लाभ में विकासशील राष्ट्रों में विनियोजित करना अधिक पसन्द करते हैं ताकि उन्हें उन्नत दर का लाभ प्राप्त हो सके ।

iv. राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों में ऐसा वातावरण बनाने का प्रयास किया जाता है कि विभिन्न राष्ट्रों के बीच सूचना एवं प्रौद्योगिकी का स्वतन्त्र प्रवाह होकर उन्नत तकनीकी का लाभ सभी राष्ट्र उठा सकें ।

v. पूँजी व्यावसायिक संगठनों की आत्मा होती है । वैश्वीकरण के अन्तर्गत विभिन्न अनुबन्ध करने वाले राष्ट्रों के मध्य पूँजी का स्वतन्त्र प्रवाह रहता है, जिससे पूँजी का निर्माण सम्भव हो सके ।

vi. वैश्वीकरण बौद्धिक श्रम एवं सम्पदा का भी विदोहन करता है अर्थात् एक राष्ट्र से दूसरे राष्ट्रों में श्रमिक वर्ग एवं कार्मिक वर्ग का स्वतन्त्र रूप से आवागमन सम्भव होता है ।

vii. वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवहारों पर लगे प्रतिबन्धों पर ढील धीरे-धीरे बढ़ती जाती है, जिससे अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में उत्तरोत्तर वृद्धि होती जाती है ।

viii. वैश्वीकरण का प्रतिफल सम्पूर्ण विश्व में संसाधनों का आबंटन एवं प्रयोग बाजार की आवश्यकता तथा प्राथमिकता के आधार पर प्राप्त होने लगता है जिससे अविकसित एवं विकासशील राष्ट्रों को भौतिक तथा मानवीय संसाधनों की उपलब्धि शीघ्र होने लगती है, जो पूर्व में इतनी सहजता से प्राप्त नहीं होती थी ।

Essay # 5 . वैश्वीकरण या भूमण्डलीकरण के प्रभाव ( Impact of Globalization):

भिन्न-भिन्न देशों की अर्थव्यवस्थाओं में विश्व अर्थव्यवस्था के प्रभाव का अनुभव किया जा रहा है । प्रत्येक देश का उद्योग तथा व्यापार विश्व के अन्य भागों में हो रहे परिवर्तनों से प्रभावित होता है । सम्पूर्ण विश्व एक बाजार बन चुका है । आधुनिक अर्थव्यवस्थाएँ खुली अर्थव्यवस्था होती हैं और व्यवसाय वैश्विक स्थिति प्राप्त करता जा रहा है । इस प्रकार हम देखते हैं कि अनेक बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ भिन्न-भिन्न देशों में कार्य कर रही हैं ।

अन्तर्राष्ट्रीय उपक्रम भी देखने को मिलते हैं, वैश्विक विपणन के लिए दूरदर्शन के संजाल का प्रयोग किया जाता है । अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक, विश्व व्यापार संगठन जैसी अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं की स्थापना की जा चुकी है । इन सभी से यह पता चलता है कि वैश्वीकरण या भूमण्डलीकरण का प्रभाव प्रत्येक स्थान पर दिखायी पड़ रहा है ।

संक्षेप में , वैश्वीकरण के प्रभावों को निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट कर सकते हैं:

1. सामाजिक चेतना का विकास ( Development of Social Consciousness):

शिक्षा के प्रचार प्रसार ने लोगों की सोच को प्रभावित किया है । रूढ़िवादी विचार का स्थान उदारवादी विचार ले रहे हैं । जीवन-स्तर में सुधार हुआ है तथा जीवन-शैली में परिवर्तन स्पष्ट रूप से दिखायी पड़ रहे हैं । सन्देशवाहन के उन्नत साधनों से विश्व का आकार छोटा हो गया है । विकसित देशों की सोच एवं जीवन के ढंग का अनुसरण अन्य देशों के लोगों द्वारा किया जा रहा है ।

व्यवसाय से की जाने वाली अपेक्षाएँ बढ़ती जा रही हैं । पहले लोगों को जो कुछ उद्योग प्रदान करता था, वे उससे सन्तुष्ट रहते थे किन्तु अब वे उचित मूल्यों पर उत्तम गुणवत्ता की वस्तुएँ चाहते हैं । वैश्विक प्रतिस्पर्धा ने ऐसी स्थिति उत्पन्न कर दी है, जहाँ केवल वे व्यावसायिक उपक्रम जीवित रह पायेंगे, जो उपभोक्ताओं की सन्तुष्टि के अनुरूप वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन कर सकें ।

लोग व्यवसाय को सामाजिक रूप से भी प्रत्युत्तर बनना देखना चाहते हैं । औद्योगिक इकाइयों द्वारा प्रदूषण का नियन्त्रण भी एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें व्यवसाय को महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करना है । इस प्रकार व्यवसाय के वैश्वीकरण ने समाज में एक नये प्रकार की सामाजिक चेतना को जन्म दिया है ।

2. प्रौद्योगिकी परिवर्तन (Technology Changes):

विश्व में बहुत तेजी से प्रौद्योगिकी परिवर्तन हो रहे हैं । औद्योगिक इकाइयाँ प्रतिदिन नये-नये एवं श्रेष्ठतर उत्पादों का निर्माण कर रही हैं । दूरसंचार एवं परिवहन की उन्नत विधियों ने विश्व विपणन में क्रान्ति सी ला दी है । उपभोक्ता अब इतना सचेत हो गया है कि वह प्रतिदिन से श्रेष्ठ उत्पाद प्राप्त करना चाहता है । कम्पनियाँ शोध एवं विकास पर अत्यधिक धन खर्च कर रही हैं । इस प्रकार तीव्र प्रौद्योगिकी परिवर्तनों ने उत्पादों के लिए विश्व बाजार उत्पन्न कर दिया है ।

3. व्यवसाय का वैश्विक स्वरूप (Global Form of Business):

आधुनिक व्यवसाय स्वभाव से वैश्विक बन गया है । निर्माणी वस्तुओं में विशिष्टीकरण का गुण पाया जाता है । ये वस्तुएँ वहीं उत्पादित की जाती हैं जहाँ उत्पादन लागत की प्रतिस्पर्धा होती है । इस प्रकार की वस्तुएँ अन्य देशों को निर्यात की जाती हैं । वे वस्तुएँ जो मितव्ययी ढंग से उत्पादित नहीं की जा सकती हैं, बाहर से आयात की जाती हैं ।

बड़ी संख्या में बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ भारत में प्रवेश कर चुकी हैं, जो विभिन्न देशों की वस्तुओं का निर्यात करने के लिए भारत में उपलब्ध उत्पादन सुविधाओं का भी प्रयोग करती है । इस प्रकार, भारतीय व्यवसाय वैश्विक आर्थिक प्रवृत्तियों से प्रभावित है ।

ADVERTISEMENTS: (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); Essay # 6 . वैश्वीकरण से सम्बद्ध कठिनाइयाँ ( Constraints of Globalization):

वैश्वीकरण की राह में आने वाली कठिनाइयों में से कुछ का हम निम्न रूप में उल्लेख कर सकते हैं:

1. असमान प्रतिस्पर्द्धा ( Unequal Competition):

वैश्वीकरण ने असमान प्रतिस्पर्द्धा को जन्म दिया है । यह प्रतिस्पर्द्धा है ‘शक्तिशाली बहुराष्ट्रीय निगमों’ और ‘कमजोर (व आकार में अपेक्षाकृत बहुत छोटे) भारतीय उद्यमों’ के बीच ।

वस्तुतः भारत की बड़ी औद्योगिक इकाइयाँ भी विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की तुलना में बहुत छोटी और बौनी हैं और उनमें से कुछ इकाइयों को तो बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ हजम कर चुकी हैं और कुछ सांस रोककर अपने अस्तित्व के अन्त का इंतजार कर रही हैं । जैसा कि पश्चिमी बंगाल के एक संसद सदस्य ने कहा है, ”भारत के सार्वभौमीकरण का अर्थ है हाथियों के झुण्ड में एक चूहे का घुसना” (Integrating a Mouse into a Herd of Elephants) ।

बलदेव राज नय्यर के अनुसार असमान प्रतिस्पर्द्धा के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:

(a) भारतीय उद्यम ‘आकार’ में बहुराष्ट्रीय निगमों की तुलना में बहुत छोटे हैं ।

(b) भारतीय उद्यमों के लिए पूँजी की लागत बहुराष्ट्रीय निगमों की तुलना में बहुत अधिक है ।

(c) 1991 से पूर्व चार दशक तक भारतीय निगम क्षेत्र अत्यन्त संरक्षणवादी माहौल में काम करता रहा ।

(d) देश में उत्पादित कई वस्तुओं पर अत्यधिक ऊँचे और बहुत स्तरों पर परोक्ष कर लगाये जाते हैं ।

(e) भारतीय उद्यम अभी भी पहले के नियमों से जकड़े हुए हैं ।

(f) कुछ क्षेत्रों में भारत सरकार की नीतियों में खुले रूप से बहुराष्ट्रीय निगमों के साथ पक्षपात किया गया है । उन्हें करों में ऐसी छूटें दी गयी हैं जो भारतीय उद्यमियों को उपलब्ध नहीं हैं; विद्युत क्षेत्र में उनकी परियोजनाओं के लिए काउण्टर गारण्टी (Counter Guarantee) की व्यवस्था की गयी है जबकि भारतीय उद्यमियों को यह सुविधा नहीं दी गयी है ।

2. विदेशों में बढ़ता हुआ संरक्षणवाद (Growing Protectionism Abroad):

हाल ही के वर्षों में अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक परिवेश में महत्वपूर्ण, गुणात्मक परिवर्तन देखने को आ रहे हैं । औद्योगिक देशों में जब तेज गति से विकास हो रहा था तो ये देश मुक्त व्यापार के प्रशंसक थे किन्तु विगत कुछ वर्षों में जब से यहाँ विकास की गति धीमी पड़ गयी है, ये देश संरक्षण की नीति की आड़ लेने लग गये हैं ।

उदाहरण के लिए :

(a) जब भारतीय स्कर्ट (लहँगे) संयुक्त राज्य अमेरिका में अत्यन्त लोकप्रिय बनने लगे तो यह मिथ्या धारणा फैला दी गयी कि ये लहँगे ज्वलनशील पदार्थ से बनाये गये हैं ।

(b) हाल ही में यूरोपीय संघ (European Union) के देशों ने भारतीय टैक्सटाइल निर्यात पर डम्पिंग-विरोधी शुल्क (Anti-Dumping Duty) लगा दिया है ।

(c) विकसित देशों, जिनमें विशेषकर संयुक्त राज्य अमेरिका उल्लेखनीय है, ने श्रम-मानदण्डों (Labour Standards) का मुद्दा उठाया, ताकि भारत से होने वाले कालीनों के निर्यात को कम किया जा सके ।

3. क्षेत्रीय व्यापार गुटों की स्थापना (Formation of Regional Trading Blocks):

वैश्वीकरण की आधारभूत मान्यता यह है कि सभी देशों में वस्तुओं, सेवाओं और पूँजी के प्रवाह पर किसी प्रकार का प्रतिबन्ध नहीं होगा किन्तु इसके विपरीत सभी देश अपने आपको क्षेत्रीय व्यापार गुटों में बाँधते जा रहे हैं और व्यापार गुटों को निर्यात तथा अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा की क्षमता बढ़ाने की कुंजी मानते हैं । इस समय 15 से अधिक व्यापारिक गुट बने हुए हैं । इन गुटों की स्थापना से स्वतन्त्र प्रतियोगिता की प्रक्रिया बन्द हो जाती है ।

4. तकनीकी उन्नति को बढ़ावा देने की आवश्यकता (Need to Stimulate Technical Progress):

वैश्वीकरण के लिए आवश्यक है कि विकसित देश पूर्ण संकल्प और निष्ठा के साथ विकासशील देशों में प्रयोग आने वाली उत्पादन तकनीकों में क्रान्तिकारी परिवर्तन लायें, ताकि वैश्वीकरण का लाभ विकासशील देशों को भी मिले तथा वैश्वीकरण की नीति टिकाऊ हो सके ।

5. सीमित वित्तीय साधन (Limited Financial Resources):

अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में वस्तु प्रतियोगिता कर सके, इसके लिए वस्तु की किस्म में सुधार व उत्पादन बढ़ाने के लिए बड़ी मात्रा में पूँजी की आवश्यकता होगी परन्तु विकासशील देशों में पूँजी का अभाव है । फलतः इन देशों को वित्तीय संसाधन जुटाने के लिए विश्व बैंक व मुद्रा कोष आदि अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं के पास जाना पड़ता है जो अनुचित शर्तों पर वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराते हैं ।

6. अनुचित क्षेत्र में प्रवेश (Entry in Unwanted Area):

वैश्वीकरण नीति के तहत बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का प्रवेश अधिकाधिक उपभोक्ता क्षेत्र और सेवा क्षेत्र में हो रहा है जो उचित नहीं है । आर्थिक ससंचना के विनियोग पर 16 से 18% की प्रत्याय दर गारण्टी का आश्वासन भी अनुचित है । इसी प्रकार बीमा क्षेत्र को विदेशी कम्पनियों के लिए खोलने का स्वाभाविक परिणाम यह होगा कि भारतीय बचत और भी कम होगी ।

7. अन्य समस्याएँ (Other Problems):

(a) उपयुक्त वातावरण की आवश्यकता:

देश की अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक सुधार पूर्ण रूप से नहीं हो सके हैं क्योंकि जिन देशों ने वैश्वीकरण को अपनाया है, उन्होंने अपने यहाँ पूर्व में ही उसके लिए वातावरण तैयार किया है, साथ ही हमारे देश की स्वतन्त्र बाजार की दिशा में गति भी धीमी रही है ।

( b) प्रतिकूल स्थिति:

अमेरिका भारत पर ‘स्पेशल 301’ व ‘बौद्धिक सम्पदा’ अधिकार सम्बन्धी अवधारणा को स्वीकार करने के लिए दबाव डाल रहा है । ऐसी स्थिति में यदि हम वैश्वीकरण को स्वीकार करते हैं तो हमारी अर्थव्यवस्था बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के हाथों चली जायेगी तथा यदि अस्वीकार करते हैं तो भारत को वैश्वीकरण में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ेगा ।

( c) श्रमिकों में भय:

भारतीय श्रमिकों का मानना है कि देश में आधुनिक मशीनों की स्थापना से कम श्रमिकों की आवश्यकता होगी, साथ ही कारखानों में छँटनी होगी तथा वे प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होंगे ।

Essay # 7 . वैश्वीकरण के सम्बन्ध में सुझाव ( Suggestions Regarding Globalization):

भारतीय अर्थव्यवस्था के सन्दर्भ में वैश्वीकरण की प्रक्रिया को तेज करने के लिए कुछ प्रमुख सुझाव निम्नलिखित हैं:

I. भारतीय उत्पादकों की प्रतिस्पर्द्धा क्षमता में सुधार (Improvement in Competitiveness of Indian Producers):

विश्व बाजार में सफलता प्राप्त करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें अपनी प्रतिस्पर्द्धा क्षमता में सुधार लाना चाहिए ।

प्रतिस्पर्द्धा क्षमता में सुधार के लिए आवश्यक है:

(a) उत्पादकता में तीव्र वृद्धि

(b) वस्तुओं की गुणवत्ता में सुधार

(c) विकसित उत्पादन तकनीकों का विकास

(d) भारतीय कम्पनियों की संगठनात्मक पुनर्रचना |

यह उल्लेखनीय है कि कम्पनी की कुशलता की कसौटी अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर काम करने वाली कम्पनियों की कार्यकुशलता एवं उत्पादकता को मानना चाहिए और उस स्तर को प्राप्त करने के लिए सभी प्रयास करने चाहिए ।

II. MNC s से गठबन्धन (Alliance with MNC s ):

भारत में बड़ी संख्या में MNC s का प्रवेश हो रहा है । MNC s के पास अपेक्षाकृत अधिक वित्तीय क्षमता, व्यापारिक अनुभव और कुशलता है । अतः MNC s और घरेलू कम्पनियों के परस्पर हित में है कि वे आपसी गठबन्धन में बँधे ।

III. तकनीक में आत्मनिर्भरता (Self-Sufficiency in Technology):

विश्वव्यापीकरण का लाभ भारत जैसे विकासशील देशों को तभी प्राप्त होगा जब वे अद्यतन तकनीक का उपयोग करेंगे ।

IV. अन्तर्राष्ट्रीय संरक्षणवाद से मुकाबला (Facing International Protectionism):

अन्तर्राष्ट्रीय संरक्षणवाद से निपटने के लिए एक ओर तो हमें घरेलू उपकरणों में विदेशियों की भागीदारी को बढ़ाना होगा, ताकि विदेशी उपक्रमी अपनी सरकारों पर संरक्षण की नीति अपनाने के विरोध में दबाव बनायें और दूसरी ओर, हमें घरेलू ब्राण्डों को विदेशी बाजारों में विकसित करना होगा, ताकि विदेशी क्रेता हमारे ही उत्पाद खरीदने के लिए उत्सुक रहें ।

V. कृषि व लघु क्षेत्र का आधुनिकीकरण (Modernization of Agriculture at Small Sector):

भारत चूँकि एक कृषि-प्रधान देश है, अतः भारतीय अर्थव्यवस्था की विश्वव्यापीकरण प्रक्रिया में भागीदारी तब तक व्यर्थ रहेगी जब तक कृषि एवं लघु क्षेत्र इस प्रयास में योगदान नहीं देता ।

अतः कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए आवश्यक है कि:

(a) कृषि से सम्बद्ध सभी उत्पादन क्रियाओं को जिनमें बीज बोने से कृषि उपज की बिक्री तक के सभी काम शामिल हैं, व्यावसायिक लिबास पहनाना होगा ।

(b) कृषि से सम्बद्ध उपरिढाँचे को विकसित करना होगा ।

(c) कृषि क्षेत्र में शोध एवं विकास के विस्तार की नितान्त आवश्यकता है जिससे कि ऐसे उत्पादों का निर्माण हो सके जो कि अन्तर्राष्ट्रीय गुणवत्ता के स्तर पर खरे उतर सकें ।

अतः निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि यद्यपि हमारी अर्थव्यवस्था वैश्वीकरण की दिशा में चल चुकी है परन्तु इस दिशा में किये गये प्रयासों की सफलता में सन्देह ही है ।

इस समय न तो अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण ही उपयुक्त है और न ही हमारी आन्तरिक आर्थिक व सामाजिक परिस्थितियाँ ही इसके लिए तैयार हैं – देश इस बात के लिए एकमत बनता जा रहा है कि अन्धाधुन्ध वैश्वीकरण की अपेक्षा चयनात्मक वैश्वीकरण (Selective Globalization) की नीति अपनानी चाहिए ।

वस्तुतः भारत में घरेलू उदारीकरण व बाहरी उदारीकरण की प्रक्रियाएँ साथ-साथ चलने से कुछ कठिनाइयाँ आने लगी हैं लेकिन प्रयत्न करने पर हम आधुनिकीकरण, मानवीय विकास व सामाजिक न्याय में ताल-मेल बैठाते हुए अर्थव्यवस्था को अधिक प्रतिस्पर्द्धा व अधिक कार्यकुशल बना सकते हैं ।

अन्य देशों ने पहले घरेलू उदारीकरण को सुदृढ़ किया और अपनी अर्थव्यवस्था को सबल व सक्षम बनाया और बाद में बाहरी उदारीकरण का मार्ग अपनाया । समयाभाव के कारण हमें विश्व की प्रतियोगिता में आगे बढ़ाने के लिए एक साथ दोनों मोर्चों पर कार्य करना होगा ।

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वैश्वीकरण क्या है – कारण, प्रभाव, विशेषताएं और उद्देश्य.

वैश्वीकरण क्या हैं (globalization kya hai) – दोस्तो जैसे की आर्टिकल के टाइटल (vaishvikaran kya hai vaishvikaran se aap kya samajhte hain) से स्पष्ट है की हम आपको इस ब्लॉग पोस्ट में वैश्वीकरण के बारे में काफी विस्तार से जानकारी देने जा रहे है वो भी हिंदी भाषा में। वैश्वीकरण का अर्थ (vaishvikaran kise kahate hain) , कारण, प्रभाव विशेषता और उद्देश्य के साथ में वैश्वीकरण के कारण और प्रभाव हम आपको वैश्वीकरण से जुड़ी और भी कई सारी जानकारियां देगे जैसे की आर्थिक वैश्वीकरण क्या है ( vaishvikaran kya hai ) और भारत में वैश्वीकरण और उसके महत्व ऐसे ही कई सवालों के जवाब जो आपको पता होने चाहिए क्योंकि यहां वैसे तो आपके जर्नल नॉलेज के लिए जरूरी है इसके अलावा अगर आप स्टूडेंड हो तो आपको इस आर्टिकल को काफी ध्यान पूर्वक पड़ना चाहिए क्योंकि वैश्वीकरण (vaishvikaran kya hai) एक एसा टॉपिक है जो कई एग्जाम्स में पूछा जाता है और वैश्वीकरण के कारण और प्रभाव देश की इकोनॉमी के लिए काफी महत्त्वपूर्ण होता है इसलिए आपको वैश्वीकरण के बारे में विस्तार से जानकारी रखनी चाहिए।

वैश्वीकरण क्या है?

वैश्वीकरण, एक ऐसी ताकत है जिसने आधुनिक दुनिया को एक नए सवाल के साथ पेश किया है – कैसे हम सभी दुनियाभर के लोग, संसाधन, और विचारों को एक ही साथ जोड़ सकते हैं? इसका मतलब है कि आजकल की दुनिया में, हर कोने कोने से आने वाले प्राधिकृति, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, वाणिज्यिकता, और सांस्कृतिक धरोहर के साथ जुड़ी हुई है। यह वैश्वीकरण का महत्वपूर्ण पहलू है – अपने सीमाओं को पार करके हम सभी एक साथ आए हैं, विश्व के साथी देशों के साथ साझा करते हैं, और विभिन्न सांस्कृतिक और आर्थिक माध्यमों के माध्यम से एक-दूसरे के साथ बात करते हैं।

वैश्वीकरण क्या है कक्षा 10? या globalization फॉर 12th class इसके अलावा भी वैश्वीकरण यूपीएससी से लेकर हर कोपेडिशन गवर्मेंट सर्विस exam में पूछा जाता रहा है वैश्वीकरण का टॉपिक आपको अपने स्कूल से ही टैक्स बुक में मिल जायेगा और धीरे धीरे इसका विस्तार पूर्वक अध्ययन आपके लिए करना बहुत ही जरूरी होता जाता है। उसी के सॉल्यूशन के लिए हम इस आर्टिकल को लिख रहे है जिससे आपको वैश्वीकरण (globalization) विस्तार के साथ और आसन भाषा में आसानी से समझ आ सके ताकी आपको इसके अलावा और कभी कही वैश्वीकरण के बारे में और जानकारी न डूंडनी पड़े।

इस लेख में, हम वैश्वीकरण (globalization kya hai) की महत्वपूर्ण पहलुओं को गहराई से समझेंगे – इसके कारण, प्रभाव, विशेषता, और उद्देश्यों को। हम देखेंगे कि वैश्वीकरण के क्या-क्या फायदे और चुनौतियां हैं, और कैसे यह हमारे आधुनिक दुनिया को परिवर्तित कर रहा है। यहाँ, हम वैश्वीकरण (vaishvikaran) की महत्वपूर्ण विशेषताओं को और समझेंगे जो हमारे समाजों, आर्थिक प्रणालियों, और राजनीतिक प्रक्रियाओं को प्रभावित करते हैं, और इसके उद्देश्यों के पीछे की विचारधारा को जानेंगे।

वैश्वीकरण क्या हैं – What Is globalization in Hindi

वैश्वीकरण का अर्थ वैश्वीकरण से आप क्या समझते हैं, वैश्वीकरण किसे कहते हैं, वैश्वीकरण की परिभाषा, वैश्वीकरण से आप क्या समझते हैं, वैश्वीकरण के कारण, वैश्वीकरण के उद्देश्य, वैश्वीकरण के प्रभाव, वैश्वीकरण का सिद्धांत, वैश्वीकरण की विशेषता (ग्लोबलाइजेशन की विशेषता), वैश्वीकरण से क्या हानियां हैं, सांस्कृतिक वैश्वीकरण क्या है, उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण में अंतर, भारत में वैश्वीकरण की शुरुआत कब हुई, भारत में वैश्वीकरण की शुरुआत किसने की, भारत में वैश्वीकरण की शुरुआत कैसे हुई.

  • भारत और वैश्वीकरण क्या है?

वैश्वीकरण क्या है -निष्कर्ष

(vaishvikaran kya hai)

वैश्वीकरण यानि globalization एक प्रक्रिया है जिसमें दुनिया भर में विभिन्न देशों और संसाधनों के बीच व्यापार, वित्तीय संचालन, सांस्कृतिक विनिमय, तकनीकी सहयोग, और जनसंचरण के माध्यम से विश्व के लोगों और देशों के बीच संबंध बढ़ते हैं। यह प्रक्रिया व्यापार, सांस्कृतिक मिश्रण, और विभिन्न क्षेत्रों में ग्रामीणता को कम कर सकती है लेकिन और अधिक सांसाधनों और विकेन्द्रीकरण का आधान देती है। वैश्वीकरण के कई पहलू होते हैं और यह विश्व के विभिन्न हिस्सों के बीच संबंधों की गहरी समझ को आगे बढ़ा सकता है।

यानि हम ग्लोबलाइजेशन को आसन तरीके से समझने की कोशिश करे तो वैश्वीकरण एक प्रक्रिया है जिसमें दुनिया के विभिन्न हिस्सों में व्यापार, संचालन, तकनीकी सहयोग, सांस्कृतिक विनिमय, और संचरण के माध्यम से दुनिया भर में लोगों और देशों के बीच संबंध बढ़ते हैं।

वैश्वीकरण को हमरौर प्रैक्टिकली और उदाहरण देकर समझे तो हम यहां देख सकते है।

मोबाइल फ़ोन : आपके पास जो मोबाइल फ़ोन है, उसमें कई विभिन्न देशों से आये हुए पार्ट्स होते हैं, जैसे कि उसका डिज़ाइन एक देश में होता है, उसका चिप दूसरे देश से आया हो सकता है, और उसका सॉफ़्टवेयर या एप्लिकेशन विश्व भर से डेवेलप किया जाता है। इससे यह साबित होता है कि मोबाइल फ़ोन एक प्रकार के वैश्वीकरण का प्रतीक हो सकता है।

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(meaning of globalization in Hindi)

वैश्वीकरण (Globalization) का शाब्दिक अर्थ होता है “दुनिया भर में फैलाव” या “दुनियावाद”। इस शब्द का उपयोग किसी गति या प्रक्रिया को दर्शाने के लिए किया जाता है जिसमें दुनिया के विभिन्न हिस्सों के बीच संबंध और योग्यताएं बढ़ती हैं। वैश्वीकरण (Globalization) का अर्थ होता है कि दुनियां भर में हम जुड़ सकें लोगो से व्यापार संचालन आदि की अनुमति हो साथ ही बहार की कंपनिया आकार हमारे देश में व्यापार कर सके और हमारे देश के लोग या कंपनी दूसरे देश में अपने पैर जमा सके। वैश्वीकरण के कारण दुनिया अधिक आपसी आधार पर काम करती है और व्यापार, संचालन, और विचारों का विस्तार होता है।

वैश्वीकरण को “ग्लोबलीजेशन” भी कहा जाता है, और इसका मतलब होता है कि विभिन्न देशों के बीच व्यापार, औद्योगिकीकरण, और सांख्यिकीय सहयोग की प्रक्रिया को। वैश्वीकरण के तहत दुनिया भर में वस्त्र, सामग्री, सेवाएं, और जानकारी का आदान-प्रदान होता है, जिससे विभिन्न देशों के लोगों को और बेहतर उत्पादों और सेवाओं का उपयोग करने का मौका मिलता है। यह आर्थिक सहयोग और वित्तीय प्रवृत्तियों को भी प्रभावित करता है और दुनिया भर में व्यापार की वृद्धि को प्रोत्साहित करता है। 

(Definition Of Globalization in Hindi)

वैश्वीकरण को उन प्रक्रियाओं का नाम दिया जाता है जिसमें विभिन्न देशों और उनके अर्थव्यवस्थाओं के बीच व्यापार, आर्थिक सहयोग, और सांस्कृतिक प्रभाव के माध्यम से विश्व के अधिकांश क्षेत्रों में एक गहरा संवाद और अंतरराष्ट्रीय एकीकरण का निर्माण होता है। इसका मुख्य उद्देश्य वस्त्र, सामग्री, सेवाएं, और जानकारी का अंतरराष्ट्रीय विनिमय बढ़ाना है ताकि विश्व भर के लोग इससे लाभ उठा सकें।

वैश्वीकरण के साथ ही अर्थव्यवस्थाओं में और भी कई परिवर्तन होते हैं, जैसे कि नौकरियों की विनिमय, तकनीकी अद्यतनता, और आर्थिक निवेश का प्रवृत्तिकरण। इसके साथ ही यह आर्थिक और राजनीतिक प्रदर्शन को भी प्रभावित कर सकता है, और कुछ लोग इसे अधिकांश के हित के खिलाफ देखते हैं, क्योंकि यह असमान सामाजिक और आर्थिक सामाजिक संरचनाओं को प्रभावित कर सकता है। ये थी वैश्वीकरण की परिभाषा।

(What do you understand by globalization in Hindi)

मैं वैश्वीकरण को एक प्रक्रिया समझता हूँ जिसमें विभिन्न देशों के बीच आर्थिक, सांख्यिकीय, और सांस्कृतिक अदलाब को कम किया जाता है। इसका परिणामस्वरूप, विश्व एक साथ आए हुए है, जिससे अधिक संवाद, व्यापार, और जानकारी का आदान-प्रदान हो सकता है। यह विकास और सहयोग के अवसरों को बढ़ावा देने का एक माध्यम भी हो सकता है, लेकिन इसके साथ ही आर्थिक परिपरिणाम और सामाजिक चुनौतियाँ भी हो सकती हैं। (vaishvikaran se aap kya samajhte hain)

(Reason Of Globalization in Hindi)

vaishvikaran ke karan: वैश्वीकरण का आगमन कई कारणों से हुआ और इसकी आवश्यकता भी अनेक कारणों से पैदा हुई। नीचे मुख्य कारणों की समझ देता हूँ:

  • तकनीकी प्रगति: तकनीकी और टेलीकम्यूनिकेशन के क्षेत्र में तेजी से प्रगति और विकेन्द्रीकरण ने वैश्वीकरण को संभव बनाया। इंटरनेट और स्मार्टफोन जैसी तकनीकों के आगमन ने विश्व के लोगों को जोड़ दिया और विश्वासूत्रत: संचार को बढ़ा दिया।
  • व्यापार का विस्तार: वैश्वीकरण ने व्यापार को ग्लोबल स्तर पर विस्तारित किया है। विभिन्न देशों के बीच वस्त्र, खाद्य, ग्राहक इलेक्ट्रॉनिक्स, और सेवाओं की व्यापारिक मात्रा बढ़ गई है, जिससे अधिक विकल्प और उपभोग्य दरें होती हैं।
  • सांस्कृतिक विनिमय: वैश्वीकरण के कारण सांस्कृतिक विनिमय भी होता है। विभिन्न देशों की भाषा, खाना, मोड़, और कला का परिचय अधिक लोगों को होता है, जिससे समृद्धि और विविधता को प्रमोट किया जाता है।
  • अर्थव्यवस्था में सुधार: वैश्वीकरण के कारण विश्व की अर्थव्यवस्था में वृद्धि हुई है। विभिन्न देशों के लोगों को और बड़ी वित्तीय अवसरों तक पहुंचने का मौका मिलता है, जो रोजगार और आर्थिक सुधार में मदद करता है।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग: वैश्वीकरण ने दुनिया भर में अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा दिया है। विभिन्न देश साझा समस्याओं का समाधान ढ़ूंढने के लिए मिलकर काम करते हैं, जैसे कि जीवसंरक्षण, पर्यावरण की सुरक्षा, और ग्लोबल स्वास्थ्य मुद्दे।

इन सभी vaishvikaran ke karan कारणों के संघटन से वैश्वीकरण आवश्यक हो गया था और हमारे आधुनिक दुनिया में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। (vaishvikaran kya hai)

(Objectives of Globalization in Hindi)

वैश्वीकरण के मुख्य उद्देश्य थे:

संक्षेप में कहें तो, वैश्वीकरण के उद्देश्य थे कि दुनिया एक साथ आए, विभिन्न देशों के बीच सहयोग बढ़े, सांस्कृतिक और व्यापारिक विनिमय हो, और सभी को अधिक समृद्धि और समृद्धि के अवसर मिलें।

(Effect of Globalization in Hindi)

वैश्वीकरण ने भारत के अर्थव्यवस्था, समाज, और राजनीति पर कई प्रभाव डाले हैं। यहां कुछ मुख्य प्रभावों का उल्लेख है:

  • वैश्वीकरण के आर्थिक प्रभाव (Economic Growth): वैश्वीकरण ने भारतीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया है। यह व्यापार के माध्यम से नए बाजार खोलने और विदेशी निवेशकों को भारत आने के लिए प्रोत्साहित किया है, जिससे आर्थिक वृद्धि हुई है और रोजगार के अवसर बढ़े हैं।
  • वित्तीय बाजार (Financial Markets): वैश्वीकरण ने भारतीय वित्तीय बाजार को भी प्रभावित किया है। यह स्थिरता और वित्तीय सुरक्षा को बढ़ावा दिया है, जिससे निवेशकों को भारत में आत्मविश्वास हुआ है।
  • सांस्कृतिक विनिमय (Cultural Exchange): वैश्वीकरण ने विभिन्न देशों के लोगों के बीच सांस्कृतिक विनिमय को बढ़ावा दिया है। यहां विदेशी भाषाओं का अध्ययन, विदेशी खाद्य पदार्थों का स्वादन, और अन्य सांस्कृतिक आयामों के प्रति रुझान में वृद्धि हुई है।
  • विद्या और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सुधार (Advancements in Education and Technology): वैश्वीकरण ने शिक्षा और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सुधार को भी प्रोत्साहित किया है। भारत ने विद्यार्थियों के लिए अधिक अधिक अंतरराष्ट्रीय अवसर पैदा किए है, और नई तकनीकियों का अध्ययन और उनका उपयोग बढ़ा है।
  • राजनीतिक सहयोग (Political Cooperation): वैश्वीकरण ने भारत को अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक महत्वपूर्ण भूमिका दिलाई है। यह भारत को दुनिया की राजनीतिक और सुरक्षा मामलों में अधिक बड़ी भूमिका देने में मदद करता है।

इन प्रभावों के माध्यम से, वैश्वीकरण ने भारत के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

(theory of globalization in Hindi)

वैश्वीकरण का सिद्धांत यह है कि दुनिया के विभिन्न हिस्सों में व्यापार, संचालन, सांस्कृतिक विनिमय, तकनीकी सहयोग, और संचरण के माध्यम से व्यक्तियों, समृद्धि, और सामाजिक संबंधों में बदलाव होता है। इस सिद्धांत के अनुसार, वैश्वीकरण दुनिया को एक साथ जोड़ता है और विभिन्न देशों के बीच सहयोग और संबंधों को बढ़ावा देता है।

यानि असल में कहे तो इसका मुख्य सिद्धांत विश्व को जोड़ना ही है जिससे हर रूप में विश्व एक साथ जुड़ सके और मानव जाति की तरक्की हो सके व्यापार बढ़ाया जा सके और सभी लोगो तक सुविधाएं पहुचाई जा सके ग्लोबलाइजेशन का यही मुख्य सिद्धांत है।

(vaishvikaran ke labh)

वैश्वीकरण की कुछ मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं:

  • सार्वभौमिकता (Global Nature): वैश्वीकरण एक सार्वभौमिक प्रक्रिया है जो दुनिया के सभी क्षेत्रों में होती है। इसमें विभिन्न देशों के बीच संबंध शामिल होते हैं।
  • संचार की सुविधा (Communication Facilitation): वैश्वीकरण के साथ साथ तकनीकी सुधारों ने संचार को बेहद सरल और तेजी से बना दिया है। इंटरनेट, स्मार्टफोन, और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की मदद से लोग विश्व भर में आसानी से जुड़ सकते हैं।
  • व्यापार का वृद्धि (Expansion of Trade): वैश्वीकरण ने व्यापार को वृद्धि कराया है। यह विभिन्न देशों के बीच वस्तुओं, सेवाओं, और पूंजी के निवेश को बढ़ावा देता है और नए बाजार खोलता है।
  • सांस्कृतिक विनिमय (Cultural Exchange): वैश्वीकरण के कारण विभिन्न देशों के बीच सांस्कृतिक विनिमय होता है। लोग अन्य देशों की भाषा, खाद्य, कला, और विचारों के साथ अधिक जानकार और समझदार बनते हैं।
  • राजनीतिक सहयोग (Political Cooperation): वैश्वीकरण ने दुनिया के देशों के बीच राजनीतिक सहयोग को बढ़ावा दिया है। विभिन्न देश साझा समस्याओं का समाधान ढ़ूंढने के लिए मिलकर काम करते हैं, जैसे कि जीवसंरक्षण, पर्यावरण की सुरक्षा, और ग्लोबल स्वास्थ्य मुद्दे।
  • अर्थव्यवस्था में सुधार (Economic Development): वैश्वीकरण के माध्यम से अर्थव्यवस्था में सुधार होता है। यह नौकरियों के अवसर पैदा करता है और विकास के लिए और अधिक संभावनाओं को खोलता है।
  • ग्लोबल गवर्नेंस (Global Governance): वैश्वीकरण ने ग्लोबल स्तर पर संगठनों और समझौतों को प्रोत्साहित किया है, जो विश्व की समस्याओं का समाधान करने में मदद करते हैं।

इन विशेषताओं के साथ, वैश्वीकरण दुनिया के साथीकरण और संबंधों की गहराईयों में वृद्धि को प्रमोट करता है, और दुनिया के लोगों के बीच अधिक समरसता और सहयोग की दिशा में कदम बढ़ाता है।

(Disadvantage Of Globalization in Hindi)

वैश्वीकरण के साथ हानियां भी होती हैं, और इसका सही प्रबंधन और सुरक्षा न करने पर यह कुछ चुनौतियां पैदा कर सकता है:

  • आर्थिक असमानता: वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप, धनी और गरीब वर्गों के बीच आर्थिक असमानता बढ़ सकती है। विशेष रूप से अधिक विकसित देशों में यह समस्या हो सकती है
  • अपर्याप्त प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग: वैश्वीकरण के कारण अपर्याप्त प्राकृतिक संसाधनों का अधिक उपयोग हो सकता है, जिसका पर्याप्त संरक्षण नहीं हो पाता है, जो पर्यावरण और जीवन में क्षति पहुंचा सकता है.
  • सांस्कृतिक होमोजेनाइटी: वैश्वीकरण के कारण कुछ सांस्कृतिक मान्यताओं और पहचानों की होमोजेनाइटी हो सकती है, जिसका नुकसान सांस्कृतिक विविधता को किया जा सकता है.
  • उत्पादन की अधिकतमीकरण: वैश्वीकरण के कारण, कुछ क्षेत्रों में उत्पादन की अधिकतमीकरण हो सकता है, जिससे छोटे उत्पादकों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।
  • मानवाधिकार समस्याएं: कुछ व्यवसायों में मानवाधिकार का उल्लंघन भी हो सकता है, जैसे कि श्रमिकों के प्रति न्यायपूर्ण वेतन और कार्यालय में उचित शर्तें नहीं मिलना।

यह जरूरी है कि वैश्वीकरण के प्रभावों को सावधानीपूर्वक प्रबंधित किया जाए और सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का समाधान ढूंढने के लिए नीतियों का निरीक्षण किया जाए, ताकि इसके लाभ समाज के अधिकांश के लिए पहुंच सकें।

(cultural globalization in Hindi)

सांस्कृतिक वैश्वीकरण एक प्रकार का वैश्विकीकरण है जिसमें सांस्कृतिक मान्यताएँ, विचार, और कला विनिमय की प्रक्रिया होती है। इसमें विभिन्न देशों और संगठनों के बीच सांस्कृतिक रूपों, विचारों, और आदिकारों के आदान-प्रदान का मामूला होता है। सांस्कृतिक वैश्वीकरण का उद्देश्य विभिन्न सांस्कृतिक दृष्टिकोणों को प्रमोट करना और विश्व में सांस्कृतिक समृद्धि को बढ़ावा देना होता है।

इसका उदाहरण हो सकता है संगीत, शिल्पकला, गहनों, वस्त्र, खाद्य पदार्थों, और अन्य सांस्कृतिक घटकों की विनिमय की प्रक्रिया, जिससे विश्व भर में विविधता का समर्थन किया जाता है। सांस्कृतिक वैश्वीकरण के माध्यम से विभिन्न समृद्ध सांस्कृतिक धरोहरों का संरक्षण और प्रचार किया जा सकता है, और यह विभिन्न समुदायों और लोगों के बीच समरसता और जीवन की गुणवत्ता को बढ़ावा देता है।

भारत में वैश्वीकरण

(globalization in India)

भारत में वैश्वीकरण की शुरुआत और महत्वपूर्ण परिवर्तन 1990 के दशक में हुई थी। इसके पीछे का मुख्य कारण भारत की अर्थव्यवस्था में सुधार और नेतृत्व के परिवर्तन थे।

1991 में भारत सरकार ने विश्व बैंक और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ एक विशेष आर्थिक सुधार की घोषणा की, जिसका परिणामस्वरूप भारतीय अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों में बदलाव हुआ। इसमें विदेशी निवेश की प्रमोटियों, औद्योगिकीकरण, और व्यापार की बढ़ती लिबरलीकरण शामिल थे।

इस समय के बाद, भारत ने विदेशी निवेशकों को अधिक आकर्षित किया, व्यापार के नियमों में सुधार किया, और अपने औद्योगिक सेक्टर को खोला। यह समय भारत की अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण बदलाव की शुरुआत थी, और इसका प्रभाव विशेषतः उद्योग, व्यापार, और बैंकिंग सेक्टर में दिखाई दिया।

भारत में वैश्वीकरण की शुरुआत 1991 में हुई थीं उस वक्त मनमोहन सिंह भारत के वित्त मंत्री थे उन्होने कई विदेशी इकोनॉमी नीतियों को उस वक्त में लागू किया भारत की इकोनॉमी को बड़ाने के लिए।

भारत में वैश्वीकरण की शुरुआत 1991 के आस-पास हुई थी, और इसका प्रमुख कारण भारत की आर्थिक नीतियों में महत्वपूर्ण परिवर्तन था। निम्नलिखित है कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं और कारक जिनके कारण भारत में वैश्वीकरण की शुरुआत हुई:

  • आर्थिक संकट (Economic Crisis): 1980s के अंत में और 1990 के प्रारंभ में, भारत की अर्थव्यवस्था में गंभीर संकट थे। बड़े रुझानों और अर्थशास्त्रीय मूल्यों के कारण, भारतीय सरकार के पास विदेशी मुद्रा की कमी थी।
  • विश्व बैंक से सहायता (Assistance from World Bank): 1991 में, भारत ने विश्व बैंक की सहायता मांगी और विश्व बैंक से आर्थिक सहायता प्राप्त की। इसके बदले में, विश्व बैंक ने व्यापारिक और आर्थिक नीतियों में सुधार करने की सलाह दी।
  • नीतिक्रमण (Economic Reforms): 1991 के बाद, भारत ने विदेशी निवेश को बढ़ावा देने और औद्योगिकीकरण को बढ़ावा देने के लिए अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण सुधार किए।
  • लिबरलीकरण (Liberalization): भारत ने अपनी आर्थिक नीतियों में लिबरलीकरण के तहत व्यापार, विदेशी निवेश, और विदेशी मुद्रा के प्रवाह को सुधारा।
  • औद्योगिकीकरण (Industrialization): इसके परिणामस्वरूप, औद्योगिक सेक्टर में सुधार हुआ और विभिन्न क्षेत्रों में विदेशी निवेश बढ़ा।

इन कारकों के संयोजन से, भारत में 1990s के प्रारंभ में वैश्वीकरण की शुरुआत हुई और इसने भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण परिवर्तन लाया।

भारत और वैश्वीकरण क्या है ?

भारत और वैश्वीकरण के बीच एक गहरा संबंध है। वैश्वीकरण एक प्रक्रिया है जिसमें दुनिया के विभिन्न हिस्सों के देश और संगठन एक-दूसरे के साथ और वैश्विक स्तर पर आर्थिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, और तकनीकी संबंध बनाते हैं। यह प्रक्रिया व्यापार, निवेश, विदेशी मुद्रा, प्रौद्योगिकी, संगठन, और सांस्कृतिक विनिमय के माध्यम से होती है।

भारत एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी है जो वैश्वीकरण के गहरे संरचन में शामिल है

वैश्वीकरण की मुख्य विशेषताएं शामिल होती हैं: व्यापार, औद्योगिकीकरण, सांख्यिकीय सहयोग, अंतरराष्ट्रीय विनिमय, और अंतरराष्ट्रीय संवाद।

वैश्वीकरण के आर्थिक प्रभाव में व्यापार की वृद्धि, औद्योगिकीकरण, और ग्लोबल आर्थिक सहयोग शामिल होते हैं। इससे आर्थिक विकास और उत्पादों की बेहतर उपयोगिता बढ़ती है, लेकिन यह आर्थिक असमानता को भी बढ़ा सकता है।

वैश्वीकरण के मुख्य प्रकार होते हैं: वस्त्र और उपभोक्ता वस्त्र का वैश्विक व्यापार, सेवाओं का वैश्विक आर्थिक संचयन, और जानकारी और तकनीक का अंतरराष्ट्रीय विनिमय।

सबसे सच्ची परिभाषा है: “वैश्वीकरण एक प्रक्रिया है जिसमें विश्व भर के देशों के बीच व्यापार, सांख्यिकीय सहयोग, और सांस्कृतिक प्रभाव के माध्यम से आर्थिक और सामाजिक संबंध बढ़ते हैं।”

वैश्वीकरण के दो दुष्परिणाम हो सकते हैं: अर्थव्यवस्थाओं की असमान विकास और सामाजिक विभाजन।

वैश्वीकरण को एक प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जिसमें विश्व भर के देशों के बीच आर्थिक और सांस्कृतिक संबंध विकसित होते हैं।

कक्षा 10 के छात्रों के लिए, वैश्वीकरण एक प्रकार का सामाजिक और आर्थिक प्रवृत्ति को समझाने वाला अधिगमिक विषय हो सकता है, जिसमें वैश्वीकरण की प्रक्रिया और प्रभावों का अध्ययन होता है।

भारत में वैश्वीकरण की शुरुआत आजादी के बाद, खासकर 1990s के बाद हुई, जब भारत ने आर्थिक नियमों में सुधार किया और विदेशी निवेश को बढ़ावा दिया।

वैश्वीकरण को “ग्लोबलीजेशन” भी कहा जाता है।

वैश्वीकरण के जनक कहे जाने वाले व्यक्ति दोनाल्ड ट्रंप, डेविड कैमरन, और जॉसेफ स्टिगलित्ज जैसे अनेक विचारकों और राजनीतिज्ञों के माध्यम से जाने जाते हैं।

भारत का वैश्वीकरण में मुख्य स्थान है, क्योंकि यह एक बड़ी और विकसित अर्थव्यवस्था है, जो अंतरराष्ट्रीय बाजार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

इस आर्टिकल में हमने वैश्वीकरण क्या हैं (globalization kya hai) को अच्छे से समझा इसके कई पहलू का विस्तृत रुप से वर्णन किया जैसे की वैश्वीकरण के प्रभाव, भारत में वैश्वीकरण एवं इसके लाभ हानि विशेषताएं, सिद्धांत और अर्थ के साथ साथ और भी कई सारे छोटे मोटे vaishvikaran से जुड़े सवालों का उत्तर जाना और हमने इन्हे आसन भाषा के साथ किताबी भाषा में भी समझा ताकि आप इसको अपनी परीक्षा या प्रैक्टिकल में भी लिख सके। यह लेख एक सुव्यवस्थित लेख था vaishvikaran (globalization) के बारे में जिसमे हमने आपको एक ही लेख में इससे जुड़ी तमाम जानकारी उपलब्ध कराई।

इस लेख को लिखने का असल मकसद यही था की आपको वैश्वीकरण के बारे में पूरी सुव्यवस्थित जानकारी एक ही जगह पर मिल जाए और आपको इसके अलावा अब कही इस टॉपिक को सर्च न करना पड़े। और हमने इस आर्टिकल को कुछ ऐसे ही तैयार किया है की सभी टॉपिक कवर होने के साथ साथ भाषा भी इसी रहे की किसी को भी वैश्वीकरण क्या है आसानी से समझ आ सके और हमने इसमें वैश्वीकरण उदारीकरण और निजीकरण में अन्तर भी समझाया। अगर आपका इस आर्टिकल से जुड़ा कोई सुझाव या सवाल हो तो आप हमे कॉमेंट के जरिए जरूर बताएं।

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1 thought on “वैश्वीकरण क्या है? – कारण, प्रभाव, विशेषताएं और उद्देश्य”

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वैश्वीकरण क्या है? विशेषताएँ, उद्देश्य, फ़ायदे और नुक़सान | What is Globalization in Hindi

दोस्तों जैसा की आप जानते हैं की आज के समय में भारत दुनिया की एक तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था है। आर्थिक जगत के विशेषज्ञों की माने तो भारत जल्द ही 5 ट्रिलियन Economy वाला देश बन जाएगा। दोस्तों ग्लोबलाइजेशन या वैश्वीकरण एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें सभी देश एक दूसरे के साथ वस्तु और ... Read more

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Reported by Dhruv Gotra

Published on 30 January 2024

दोस्तों जैसा की आप जानते हैं की आज के समय में भारत दुनिया की एक तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था है। आर्थिक जगत के विशेषज्ञों की माने तो भारत जल्द ही 5 ट्रिलियन Economy वाला देश बन जाएगा। दोस्तों ग्लोबलाइजेशन या वैश्वीकरण एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें सभी देश एक दूसरे के साथ वस्तु और सेवाओं का विनिमय कर आर्थिक रिश्तों को बढ़ावा देते हैं।

वैश्वीकरण क्या है? विशेषताएँ, उद्देश्य, फ़ायदे और नुक़सान | What is Globalization in Hindi

वैश्वीकरण को आप इस तरह से समझ सकते हैं की जब पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं का एकीकरण हो और सभी देश निर्यात (Export) एवं आयात (Import) के माध्यम से एक दूसरे के साथ ट्रेड (व्यापार) करें तो यह व्यवस्था Globalization (वैश्वीकरण) कहलाती है।

आज के आर्टिकल में हम वैश्वीकरण की नीतियां, उद्देश्य, विशेषताएं, लाभ एवं नुकसान आदि के बारे में विस्तृत रूप से चर्चा करने वाले हैं। यदि आप Globalization को और अच्छे ढंग से समझना चाहते हैं तो हम आपसे कहेंगे की वैश्वीकरण के ऊपर हमारे इस आर्टिकल को अंत तक जरूर पढ़ें।

What is Globalization?

आज के समय में आप देखते ही होंगे की भारत की बहुत सी कंपनियां देश के अलावा विदेशों में भी अपना व्यापार कर रही हैं। कई बार कंपनियों बिजनेस के संबंध में क़ानूनी सलाह, चिकित्सा संबंधी परामर्श, कंप्यूटर सेवा, बैंक सेवा, विज्ञापन, सुरक्षा आदि के लिए देश के बाहर से सहायता लेनी पड़ती है।

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जिसके बदले में देश की कंपनियां अपनी कुछ वस्तु और सेवाओं का विनिमय विदेशी कंपनियों के साथ करती हैं। यही विनिमय वैश्वीकरण या ग्लोबलाइजेशन कहलाता है। आसान भाषा में कहें तो जब किसी देश की सरकार, कंपनियां, संस्थान एक बाज़ारीकरण (Marketing) मंच पर आकर विदेशी सरकार, कंपनियां या संस्थान के साथ व्यापार करती हैं तो यह व्यापार करना वैश्वीकरण कहा जायेगा। यहाँ हमने कुछ प्रसिद्ध अर्थशास्त्रियों के द्वारा वैश्वीकरण पर दी गई परिभाषाओं को व्यक्त किया है जो आपको वैश्वीकरण को समझने में सहायता प्रदान करेंगे।

वैश्वीकरण” को निम्न रूप में परिभाषित करते हैं” सीमाओं के पार विनिमय पर राज्य प्रतिबन्धों का ह्रास या विलोपन और इसके परिणामस्वरूप उत्पन्न हुआ उत्पादन और विनिमय का तीव्र एकीकृत और जटिल विश्व स्तरीय तन्त्र है :काटो संस्थान (Cato Institute) टॉम जी पामर (Tom G. Palmer)
वैश्वीकरण स्थानीय , और यहां तक की व्यक्तिगत , सामजिक अनुभव के सन्दर्भों के परिवर्तन की चिंता करता है। हमारी दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों दुनिया के दूसरी ओर होने वाली घटनाओं से प्रभावित होती हैं। इसके विपरीत , स्थानीय जीवनशैली की आदतें विश्व स्तर पर परिणामी हो गई हैं। :हेल्ड मैक्ग्रे (2007)

वैश्वीकरण का संक्षिप्त इतिहास (History of Globalization):

आपको बताते चलें की बहुत से अर्थशास्त्र के जानकार मानते हैं की Globalization की शुरुआत 20वीं शताब्दी के आस-पास हुई जब दुनिया तेजी औद्योगिक क्रांति के कारण बदल रही थी। आपने इतिहास में जरूर पढ़ा होगा की पुरातन काल में राजा-महाराजा, दार्शनिक, विद्वान, व्यापारी देश एवं विदेश की बहुत ही लम्बी-लम्बी यात्राएं करते थे जिस कारण वह तरक्की के नए-नए मार्ग और द्वीपों की खोज किया करते थे। इस तरह से एक देश से होने वाला व्यापार दूसरे देश की संस्कृति, सामाजिक व्यवस्था को प्रभावित करता था।

ऐसी यात्राएं दो देशों के बीच एक आर्थिक रिश्ता कायम करती थी और इससे व्यापार बढ़ता था। दोस्तों आपको बता दें की पुरातन समय में भारत में उत्पादित होने वाला रेशम चीन से लेकर यूरोपीय देशों में बेचा जाता था। आप इसी से समझ सकते हैं की इस तरह के व्यापारिक संबंधों ने लोगों के जीवन में प्रतिकूल प्रभाव डाला ।

दोस्तों लेकिन अगर हम आधुनिक वैश्वीकरण की बात करें इसकी शुरुआत द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका में हुई थी। जब द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हुआ और शांति काल का प्रारम्भ हुआ तो उस समय सन 1980 से 1990 के बीच में सोवियत संघ से बहुत से देश अलग हो गए और कई सारी नयी अर्थव्यवस्थाओं का उदय हुआ।

वैश्वीकरण के चरण क्या-क्या हैं ?

प्रसिद्ध अर्थशास्त्री थॉमस फ्राइडमैन ने वैश्वीकरण को तीन प्रमुख चरणों में बांटा है जो इस प्रकार निम्नलिखित है –

  • पहला चरण (1492 से लेकर 1800 तक) : वैश्वीकरण का पहला चरण बहुत ही क्रूर और गुलाम सोच वाला रहा इसमें राजा किसी दूसरे देश पर आक्रमण कर उस देश को अपना उपनिवेश बना लेते थे। यह चरण व्यापारिवाद और उपनिवेशवाद के लिए प्रसिद्ध है।
  • दूसरा चरण (1800 से लेकर मध्य 20वीं शताब्दी तक) : यह चरण द्वितीय विश्व युद्ध काल के समय का है। दुनिया औद्योगिक क्रांति बदल रही थी और द्वितीय विश्व युद्ध के समाप्त होने के कारण नयी वैश्विक व्यवस्था का जन्म हो रहा था। दुनियाभर में उपनिवेशीकरण के कारण नए रूप में निर्मित हो रही थी।
  • तीसरा चरण (1945 से अब तक) : वैश्वीकरण के तीसरे चरण में अमेरिका और यूरोप जैसे अमीर देशों में IMF, वर्ल्ड बैंक जैसी वित्तीय संस्थाओं की स्थापना।

Globalization के कुछ प्रमुख कारण:

वैश्वीकरण ने दुनिया के देशों की बीच दूरी को मिटा दिया है और ग्लोबलाइजेशन ने एक बहुत बड़ा आर्थिक मंच प्रदान किया है।

  • सभी देशों का अपनी जरूरत के अनुसार एक-दूसरे पर निर्भरता
  • समय के साथ विज्ञान और तकनीक के विकास ने व्यापार से लेकर हर एक क्षेत्र को बदलकर रख दिया है। जिससे लोगों का सुचना का आदान-प्रदान और व्यापार करना आसान हो गया है।
  • वैश्वीकरण ने ग्राहकों और Retailers के लिए प्रोडक्ट के उत्पादन और बाजार को व्यापक स्तर पर ला दिया है जिससे ग्राहकों के पास अपने पसंदीदा उत्पाद को खरीदने के लिए अब बहुत से बेहतर विकल्प उपलब्ध हो गए हैं।
  • वैश्वीकरण के कारण ही अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय एवं वाणिज्यिक संस्थाए (विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं विश्व व्यापार संगठन) आदि की स्थापना की जरूरत महसूस हुई।
  • औद्योगिक क्रांति आने से अधिक से अधिक कारखानों की स्थापना, प्रोडक्ट के उत्पादन में बढ़ावा और प्रबंधन के कार्यों को काफी आसान और लचीला बनाया है।

वैश्वीकरण की विशेषताएं एवं उद्देश्य:

दुनिया की वैश्वीकरण अर्थव्यवस्था को समझने के लिए आपको निम्नलिखित बिंदुओं को समझना होगा जो इस प्रकार से हैं –

  • देशों का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक-दूसरे का सहयोग: यदि किसी दो देशों के बीच व्यापारिक संबंध मजबूत हैं तो वह अंतराष्ट्रीय स्तर पर हमेशा ही एक दूसरे को सहयोग करेंगे। उदाहरण के लिए आप यह समझें की कोई देश यदि अपनी कंपनी की गैस पाइप लाइन किसी दूसरे देश की सीमा के अंदर बिछाना चाहता है तो वह आसानी से बिछा सकता है यदि उसके व्यापारिक और आर्थिक संबंध दूसरे देश के साथ मजबूत हो। यह संबंध होना ही देशों का आपस में एक दूसरे का सहयोग कहलाता है।
  • राष्ट्रों के बीच विश्व बंधुत्व की भावना को जागृत करना: यदि संसार में देशों के बीच विश्व बंधुत्व की भावना रहेगी तो प्राकृतिक और अप्राकृतिक स्थितियों में कोई भी देश किसी दूसरे की यथा सम्भव पैसों और संसाधनों के द्वारा मदद कर सकता है। इसी कारण दुनिया का हर कोई देश वैश्वीकरण की व्यवस्था को अपनाने के लिए तैयार है।
  • लोगों के बीच आर्थिक समानता को पैदा करना: यदि अगर किसी देश में गरीब और अमीर लोगों की खाई बढ़ती जाएगी तो उस देश का आर्थिक विकास होना मुश्किल है। आज के समय विकासशील देश और अल्पविकसित गरीब देशों के बीच आर्थिक असमानता बहुत बढ़ गई है जिसको कम करने की जरूरत है।
  • देश के सर्वांगीण विकास हेतु नई साझेदारियों को बढ़ावा देना: अंतर्राष्ट्रीय संगठन और कई बड़ी वित्तीय संस्थाओं का यही मानना है की देशों के बीच अधिक से अधिक संधियाँ हों और व्यापार बढ़े। इन नए तरह की साझेदारियों और संधियों से देश के सर्वांगीण आर्थिक विकास को नई दिशा मिलती है।

वैश्वीकरण सूचकांक (Globalization index):

वैश्वीकरण सूचकांक जिसे व्यापार GDP अनुपात (Ratio) भी कहा जाता है। यह अनुपात किसी देश या राष्ट्र की अर्थव्यवस्था और अंतराष्ट्रीय व्यापार के बीच मापा जाता है। इस अनुपात के आधार पर किसी भी राष्ट्र को अंतराष्ट्रीय बाज़ार के मंच पर सूचकांक के तहत रजिस्टर किया जाता है।

आपको बता दें की सूचकांक के संकेतक की गणना किसी एक निश्चित अवधि में किये देश के कुल सकल घरेलू उत्पाद और उसी समयावधि में किये गए कुल आयत और निर्यात किये गए वस्तुओं के कुल मूल्य को भाग करके की जाती है तकनीकी रूप से इसे अनुपात कहा जाता है लेकिन संकेतक हमेशा ही प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है। जिस कारण इस अनुपात को Trade Openness Ratio कहा जाता है। यह सूचकांक किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की हालत को दर्शाता है।

Globalization के फायदे (Advantages):

दुनिया में वैश्वीकरण के आने से अनेक क्षेत्रों का फायदा पहुंचा है। globalization ने हमेशा ही देश के आर्थिक विकास में अपना योगदान दिया है। वैश्वीकरण के फायदों को हमने आपको कुछ निम्नलिखित बिंदुओं में आपको समझाया है –

  • देश की आर्थिक विकास में उछाल: अर्थशास्त्रियों के अनुसार वैश्वीकरण व्यवस्था के आने से देश की आर्थिक विकास दर में बहुत तेजी से उछाल आया है। वैश्वीकरण ने ना ही हमारे देश की अर्थव्यवस्था की संरचना को परिवर्तित किया है बल्कि अन्य देशों की अर्थव्यवस्था की संरचना को भी प्रभावित किया है।
  • लोगों के लिए वस्तुओं और सेवाओं की बहुविकल्पीय उपलब्धता: दोस्तों वैश्वीकरण ने बाज़ार को व्यापक स्तर पर बढ़ा दिया है। वैश्वीकरण ने लोगों के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न विकल्पों के साथ उत्पाद की वस्तुओं एवं सेवाओं को उपलब्ध करवाया है।
  • प्रत्येक क्षेत्र में कुशल कामगारों की वृद्धि: यह तो अपने देखा होगा की वैश्वीकरण के आने से बाजार में प्रतियोगिया बहुत बढ़ गई है। जिस कारण हर क्षेत्र में कुशल कामगार की मांग बहुत बढ़ गई। यदि हर क्षेत्र में कुशल कामगार मजदूर होंगे तो देश के हर एक क्षेत्र में कार्यकुशलता में वृद्धि होगी। कार्यकुशलता के कारण हमें इसके अभूतपूर्व प्रभाव देखने को मिलते हैं।
  • देश में रोजगार के अवसरों में वृद्धि: विज्ञान और टेक्नोलॉजी के विकास ने हमारे हर एक क्षेत्र को बदलकर रख दिया है। यदि हम देखें पहले के समय में पुरानी फैक्ट्रियों और कारखानों में किसी एक प्रोडक्ट को तैयार होने में बहुत अधिक समय लगता था। पर अब टेक्नोलॉजी ने फैक्ट्रियों और मजदूरों की कार्यकुशलता में बदलाव करके घंटों में होने वाले काम को मिनटों में कर दिया है। टेक्नोलॉजी आने से नई-नई तरीके की मशीने स्थापित हुई हैं और लोगों के लिए कई तरह के रोजगार के अवसर पैदा हुए हैं।
  • वैश्वीकरण के कारण नागरिकों के जीवन में सुधार: वैश्वीकरण ने लोगों की आय और बचत को बढ़ाया है। आय बढ़ने के कारण अब लोग खुलकर बाज़ार में अपनी मन पसंदीदा वस्तुओं पर खर्च कर सकते हैं। बचत के बढ़ने से लोगों के जीवन स्तर में काफी सुधार आया है। जब किसी देश का नागरिक खुश रहेगा तो देश अपने आप ही तेजी से आर्थिक विकास करेगा।

यह भी पढ़ें: रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट क्या है?

वैश्वीकरण के नुकसान (Disadvantages):

वैश्वीकरण के जहाँ एक ओर फायदे हैं वहीं दूसरी तरफ इसके कुछ नुकसान भी हैं जो इस प्रकार निम्नलिखित हैं –

  • कृषि क्षेत्र में खाद्य फसलों के उत्पादन में कमीं: हम यह तो देखते हैं की देश के अन्य क्षेत्रों में टेक्नोलॉजी आने से बहुत तरह के रोजगार के अवसर पैदा हुए हैं लेकिन यदि हम कृषि क्षेत्र की बात करें तो यहाँ टेक्नोलॉजी के उपयोग से फायदे काम और नुकसान ज्यादा देखने को मिलता है। वैश्वीकरण की प्रतियोगिता की अंधी दौड़ में हमने खाद्य फसलों के उत्पादन में विभिन्न तरह के रसायन और यूरिया का उपयोग करना शुरू कर दिया है जो की स्वास्थ के लिए बिलकुल भी हितकारी नहीं है। यूरिया से उत्पादित फसलें आज कैंसर का कारण बन रही हैं। इससे हम कह सकते हैं की वैश्वीकरण ने कृषि क्षेत्र पर नकारात्मक प्रभाव डाला है।
  • वैश्वीकरण के कारण मध्यम एवं लघु व्यापारियों का नुकसान: वैश्वीकरण के कारण आज हम बाज़ारों में देख रहे हैं की विदेशी कंपनियों के उत्पादों और स्टोर्स की बड़ी धूम है। विदेशी कंपनियों ने भारत के बाज़ारों पर कब्ज़ा करने के लिए ग्राहकों को कम दामों पर अपनी वस्तुओं और सेवाओं को बेचना शुरू कर दिया है। इस कारण देश की कम्पनियाँ , लघु एवं मध्यम व्यापारी के सामने अपने रोजगार का संकट खड़ा हो गया है। अपने आर्थिक नुकसान के कारण कई मध्यम वर्गीय कम्पनीज को अपना रोजगार बंद करना पड़ा है ऐसे में लघु व्यापारी के अंतर्गत काम करने वाले मजदूरों के बीच अपने रोजगार को लेकर बहुत बड़ा संकट खड़ा हो गया है। वैश्वीकरण का फायदा हमें बड़े पूंजीपतियों , उद्योगपतियों के पास देखने को मिलता है।
  • वैश्वीकरण के कारण देश की अर्थव्यवस्था पर दबाव: प्रतियोगिता के इस दौर में अब देशी कंपनियों के ऊपर यह दबाव आ गया है की वह भी अपने व्यापार को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ले जाएँ। अगर देशी कंपनियां अगर अपने व्यापार को व्यापक स्तर पर अंतरराष्ट्रीय बाजार पर नहीं ले जाती हैं तो देशी कंपनियों को डर है की कोई बड़ी विदेशी कंपनी उनके बाजार और उनका अधिग्रहण कर लेगी।
  • देश की आत्मनिर्भरता और राष्ट्रिय भावना का आहत होना: प्रधानमंत्री मोदी के आत्मनिर्भर अभियान के कारण जहाँ रोज देश में नए-नए स्टार्टअप कंपनियों की शुरुआत हो रही है लेकिन बाज़ार में पहले से मौजूद बड़ी विदेशी कंपनियों को चुनौती देना आसान नहीं है ऐसे में बहुत सी स्टार्टअप कंपनियां शुरु होकर बंद हो चुकी है। यदि हमें राष्ट्र हित में आत्मनिर्भर अभियान को साकार करना है तो बाज़ार और प्रोडक्ट सिस्टम में मौजूद विदेशी कंपनियों के शिकंजे को उखाड़ फेकना होगा।
  • अधिक से अधिक घरेलू बाज़ार पर बाहरी कंपनियों का अधिग्रहण: दोस्तों हम पहले ही आपको ऊपर बता चुके हैं यदि अधिक से अधिक विदेशी कंपनियों का हमारे देश में आगमन होगा तो वह अपना व्यापार स्थापित करने के लिए बहुत बड़ी संख्या में हमारे देश की छोटी कंपनियों का अधिग्रहण कर रही हैं। हमारा देश जो व्यापार के साथ वायु प्रदुषण , पर्यावरण संरक्षण, प्राकृतिक संसाधनों का दोहन जैसी समस्याओं से गुजर रहा है ऐसे में विश्व बाजार में अपनी स्थिति को मजबूत करना काफी कठिन है। यदि हम अपने देश में उदारवादी और मजबूत राजनितिक इच्छाशक्ति पर कार्य करें तो हमारा देश भारत वैश्वीकरण के मंच पर प्रथम स्थान प्राप्त कर सकता है।

Globalization से जुड़े प्रश्न एवं उत्तर (FAQs):

वैश्विक इंडेक्स क्या होता है ?

सकल घरेलू उत्पाद और देश के आयात एवं निर्यात के अनुपात के संकेतक को Economy की भाषा में वैश्विक इंडेक्स कहा जाता है।

वर्ल्ड बैंक का हेडक्वार्टर कहाँ है ?

वर्ल्ड बैंक का हेडक्वार्टर संयुक्त राज्य अमेरिका के वाशिंगटन D.C में स्थित है।

IMF के प्रमुख कौन हैं ?

वर्तमान में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के प्रमुख/ प्रबंध निदेशक क्रिस्टालिना जॉर्जीवा हैं।

वैश्वीकरण किसे कहा जाता है ?

जब सभी देश की अर्थव्यवस्थाएं मिलकर एक साझेदारी बाज़ार का मंच बनाती है तो उस मंच को वैश्वीकरण कहा जाता है।

वैश्वीकरण के अंग कौन-कौन से हैं ?

वैश्वीकरण को निम्नलिखित पांच अंगों में विभाजित किया गया है – देशों के बीच व्यापार संबंधी अवरोध मुक्त प्रवाह देशों के बीच प्रौद्योगिकी का मुक्त प्रवाह देशों के बीच श्रम का मुक्त प्रवाह देशों के बीच पूँजी का मुक्त प्रवाह पूँजी की पूर्ण परिवर्तनशीलता।

विश्ववादियों के क्या प्रकार हैं ?

विश्ववादियों को तीन प्रकारों में विभाजित किया गया है जो इस प्रकार से निम्नलिखित हैं – अति विश्ववादी संशय वादी परिवर्तनकारी

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Dhruv Gotra

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वैश्वीकरण पर निबंध Globalization Essay In Hindi

Globalization Essay In Hindi: आज हम वैश्वीकरण पर निबंध आपकों यहाँ बता रहे हैं. ग्लोबलाइजेशन के दौर क्या है, यहाँ कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10 के बच्चों के लिए 5, 10 लाइन, 100, 200, 250, 300, 400, 500 शब्दों में छोटा बड़ा एस्से Globalization In Hindi को हम यहाँ पढेगे.

इस निबंध की मदद से आप समझ पाएगे वैश्वीकरण क्या है इसका इतिहास आदि पर सरल निबंध भाषण लिख पाएगे.

वैश्वीकरण पर निबंध Globalization Essay In Hindi

वैश्वीकरण एक अंग्रेजी का शब्द हैं, जिन्हें हिंदी में भूमंडलीकरण भी कहा जाता हैं. वैश्वीकरण का अर्थ- किसी वस्तु, सेवा, पूंजी, विचार, बौद्धिक सम्पदा और सिद्धातो का विश्वव्यापी होना.

संसार के सभी देशों का दुसरे देशों के साथ वस्तु सेवा विचार, पूंजी और सिद्धांतो का अप्रतिबंधित लेन-देन. दुसरे शब्दों में ग्लोबलाइजेशन / वैश्वीकरण वह हैं, जिनके तहत कोई वस्तु या विचार अथवा पूंजी की एक देश से दुसरे देश बिना रोकटोक आवाजाही हो.

ग्लोबलाइजेशन / वैश्वीकरण क्या हैं ? –

यह एक ऐसी प्रक्रिया हैं, जिन्हें सामान्यता लोग आर्थिक रूप से ही देखते हैं. यानि पूंजी और वस्तुओ के बेरोक-टोक आवाजाही को ही वैश्वीकरण का नाम देते हैं.

मगर हकीकत में यह एक आर्थिक क्षेत्र तक सिमित न होकर राजनीतिकी, सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में भी इसका व्यापक प्रभाव पड़ता हैं.

वैश्वीकरण ऐसी प्रक्रिया का नाम हैं जिसमे संसार के सभी लोग आर्थिक, तकनिकी, सामाजिक और राजनितिक साधनों के समन्वयित विकास हेतु प्रयास कर रहे हैं.

वैश्वीकरण की शुरुआत

लगभग 16 वी शताब्दी से जब यूरोपीय देशों में सम्राज्यवाद की शुरुआत हुई. उसी के साथ ही वैश्वीकरण का आरम्भ हो गया था. यदि इसकी विधिवत शुरुआत के इतिहास पर नजर डाले तो अमूमन अधिकतर देशों में इसे 1950-60 के दशक से अपनाया जाने लगा.

इसका मुख्य कारण दुसरे विश्वयुद्ध के बाद सभी देशों के राजनितिज्ञो और अर्थशास्त्रियो द्वारा परस्पर सहयोग और सांझे हित के महत्व को समझा.

इसी का नतीजा था, कि एक के बाद एक सभी देशों ने धीरे-धीरे वैश्वीकरण को अपनाना शुरू कर दिया. वर्तमान की संचार पद्दति के कारण पूरा संसार एक गाँव के रूप में तब्दील हो चूका हैं.

इस प्रक्रिया को अंजाम तक पहुचाने में विश्व बैंक जैसी अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं. विश्व बैंक के सहयोग से ही वैश्वीकरण के तहत सभी देशों के मध्य मुक्त व्यापार का प्रदुभाव हो पाया.

वैश्वीकरण के लाभ

इस मुक्त व्यापार प्रणाली के कई प्रत्यक्ष लाभ हैं.वैश्वीकरण के कारण ही विश्व के बाजार तक विभिन्न कंपनियों की पहुच संभव हो पाई. इसी कारण विकसित और विकासशील देशों को अत्यंत आर्थिक लाभ हुआ.

परस्पर व्यापार से विश्व् शांति की दिशा में महत्वपूर्ण मदद मिल सकी हैं. अधिक संख्या में नए उद्धयोगो की स्थापना  रोजगार के नए अवसरों का सर्जन हुए.

लोगो के जीवन स्तर में सुधार के साथ ही क्रय शक्ति को भी बढ़ावा मिला हैं. इस आधार पर कहा जा सकता हैं, वैश्वीकरण से विकास की राह पर विकासशील देशों को अधिक मदद मिली.

यदि वैश्वीकरण से पूर्व विकास शील देशों की सामाजिक और आर्थिक स्थति के बारे सूक्ष्म अवलोकन किया जाए, तो निष्कर्ष के तौर पर इन देशों की जीडीपी, राजकोषीय घाटा, मुद्रास्फीति,निर्यात, साक्षरता और जन्म मृत्यु दर में अच्छे सुधार देखने को मिले हैं.

वैश्वीकरण से नुकसान (हानि)

वैश्वीकरण से अधिकतर राष्ट्रों और वर्गो को निश्चित रूप से फायदा तो मिला. मगर इस उ पभोक्तावादी संस्कृति से भारत जैसे विकासशील देशों पर अत्यधिक बुरा असर पड़ा.

वैश्वीकरण के कारण भारत साहित अन्य देशों में पश्चिमी सभ्यता का बोलबाला कायम हो गया. दूसरी तरफ शहरी विकास को महत्व देने के कारण गाँवों से लोगो का शहरों की ओर पलायन ओर तेज हो गया. 

भारतीय अर्थव्यस्था का मूल आधार गाँव ही तो हैं, इसके कारण गाँवों की हालत बद से बदतर होती चली गईं. साधारण व्यक्ति के जीवन का निर्वाह करना बेहद मुश्किल हो गया. दूसरी तरफ कम या अल्पविकसित देशों को अधिक नुक्सान उठाना पड़ा. मजदूरों को पहले से कम वेतन पर नौकरी करनी पड़ी.

यदि इस स्थति में वे अधिक रोजगार पाने की मांग करते तो उन्हें उसी से हाथ धोने का डर सताने लगा. क्युकि उनसे कम कीमत पर भाड़े के मजदूरों द्वारा काम करवा लिया जाता था. भारत में इसका परोक्ष उदहारण बीपीओ उद्योग को देखा जा सकता हैं.

भारत में वैश्वीकरण

विश्व के अधिकतर देशों द्वारा वैश्वीकरण प्रणाली अपनाने के साथ ही कालान्तर में भारत को भी अन्य देशों के लिए रास्ते खोलने पड़े. इसी दौरान 1991 के आर्थिक संकट में भारत को पूंजीपति राष्ट्रों के पास सोना-चांदी गिरवी रखकर लोन लेना पड़ा.

जब भारत ने इस वैश्वीकरण की प्रणाली के लिए अपने द्वार खोल दिए. तो बड़ी विदेशी कम्पनियों के निवेश भारत में किये जाने लगे. भारत में वैश्वीकरण से आयात और निर्यात दोनों में विशेष तौर पर फायदा मिला.

अब तक भारत सूचना और प्रद्योगिकी के साथ ऑटोमोबाइल में भी अन्य देशों के मुकाबले पीछे था इस क्षेत्र में विशेष उन्नति हुई. अब भारत के सॉफ्टवेयर इंजीनियरों की विश्वभर में मांग बढ़ने लगी. वैश्वीकरण का ही परिणाम हैं, आज विश्व के हर देश में आईटी के क्षेत्र में भारतीय विषेयज्ञो की भरमार हैं.

वैश्वीकरण ने सभी देशों को तीव्र आर्थिक विकास का एक मंच प्रदान किया हैं. हालाँकि इसके कुछ दुष्परिणाम भी हैं. मगर कुल-मिलाकर एक-दुसरे देश के सहयोग के बिना किसी राष्ट्र की प्रगति उसका आर्थिक विकास संभव नही हैं.

यदि सभी देश राष्ट्रिय भावना के साथ-साथ वैश्विक सोहार्द और परस्पर सहयोग की दिशा में काम करे तो न सिर्फ इससे विकासशील देशों को फायदा होगा, बल्कि विकसित राष्ट्र भी वैश्वीकरण से लाभान्वित होंगे.

यदि प्रतिस्पर्धी राष्ट्र के रूप में न देखकर व्यापार में इन्हे सहयोगी समझकर आगे बढ़ा जाए तो इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार होने के साथ साथ अंतराष्ट्रीय शांति और भाईचारे को बढाने में भी कारगर होगा.

आज संचार और सुचना की क्रांति के कारण आज पूरी दुनियाँ एक गाँव का रूप ले चुकी हैं. यदि सकारात्मक द्रष्टि से देखा जाए तो आर्थिक द्रष्टि से वैश्वीकरण महत्वपूर्ण हैं.

आज की वैश्विक जटिलता की स्थति में कोई भी राष्ट्र अलग रहकर कभी भी पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर नही बन सकता हैं. किसी न किसी क्षेत्र में उन्हें पड़ोसी या सहयोगी राष्ट्र पर निर्भर रहना पड़ता हैं. इसकी वजह यह अंतराष्ट्रीय व्यापार और सहयोग को बढ़ावा तेजी से आर्थिक विकास के लिए वैश्वीकरण आवश्यक हैं.

यह  भी पढ़े

  • वैश्वीकरण का अर्थ कारण प्रभाव परिणाम व भारत
  • पारिस्थितिकी तंत्र का अर्थ
  • ईमेल पर निबंध अर्थ विशेषता लाभ हानि
  • भारत और मध्यपूर्व सम्बन्ध पर निबंध

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ग्लोबल वार्मिंग का क्या प्रभाव पड़ता है जानिए इन निबंधों के द्वारा

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  • Updated on  
  • जून 6, 2023

ग्लोबल वार्मिंग

ग्लोबल वार्मिंग 21वीं शताब्दी का सबसे बड़ा खतरा है। धरती पर गर्मी खतरनाक गति से बढ़ रही है। इसके कारण शताब्दियों से जमे हिमखंड पिघल रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग क्योंकि एक बहुत गंभीर समस्या है इसलिए इस पर निबंध कई SAT , UPSC जैसी कई शैक्षणिक और शैक्षिक परीक्षाओं का एक अभिन्न अंग हैं। निबंध  लिखने में सक्षम होना किसी भी भाषा में महारत हासिल करने का एक अभिन्न अंग है। यह अंग्रेजी दक्षता परीक्षाओं के साथ-साथ IELTS , TOEFL आदि का एक महत्वपूर्ण मूल्यांकनात्मक हिस्सा है। हम कह सकते हैं कि निबंध पूरी दुनिया के आकलन के लिए अपने विचारों को स्पष्ट और स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करने में एक व्यक्ति की मदद करते हैं। वे एक व्यक्ति की विश्लेषणात्मक सोच भी प्रस्तुत करते हैं और एक व्यक्ति को धाराप्रवाह अपनी राय व्यक्त करने में सक्षम बनाते हैं। इस ब्लॉग के जरिए आप ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध लिखना सीखनें के साथ इस विकट समस्या को गहराई से समझ पाएंगे। तो आइए शुरू करते हैं essay on global warming in hindi, global warming essay in hindi या ग्लोबल वार्मिंग निबंध। 

This Blog Includes:

ग्लोबल वार्मिंग क्या होती है, ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव, भूमंडलीय तापक्रम में वृद्धि क्या है, ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध के सैम्पल्स, ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध 100-150 शब्दों में, 250 शब्दों में ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध, ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध 500 शब्दों में , ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध यूपीएससी, जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग निबंध, ग्लोबल वार्मिंग पर अनुच्छेद, निबंध लिखने की युक्तियाँ.

वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसों (मीथेन, कार्बन डाय ऑक्साइड, ऑक्साइड और क्लोरो-फ्लूरो-कार्बन) के बढ़ने के कारण पृथ्वी के औसत तापमान में होने वाली बढ़ोतरी को ग्लोबल वार्मिंग कहा जाता है।

ग्लोबल वार्मिंग के कारण बढ़े हुए समुद्र के वाटर लेवल के फलस्वरूप इनका डेवलपमेंट, डिस्ट्रीब्यूशन एवं इनके द्वारा निर्मित विभिन्न टोपोग्राफिकल स्ट्रक्चर प्रभावित हो सकती हैं। इसी प्रकार बहुत सी वनस्पतियों तथा जीवों का पलायन धीरे-धीरे ध्रुवीय प्रदेशों या उच्च पर्वतीय प्रदेशों की तरफ हो सकता है।

ग्लोबल वार्मिंग पिछली शताब्दी में पृथ्वी की औसत सतह के तापमान में असामान्य रूप से तेजी से वृद्धि है, मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधन जलाने वाले लोगों द्वारा जारी ग्रीनहाउस गैसों के कारण। ग्रीनहाउस गैसों में मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, ओजोन, कार्बन डाइऑक्साइड, जल वाष्प और क्लोरोफ्लोरोकार्बन शामिल हैं। हर गुजरते साल के साथ मौसम की भविष्यवाणी अधिक जटिल होती जा रही है, मौसम अधिक अप्रभेद्य होते जा रहे हैं और सामान्य तापमान गर्म होता जा रहा है। 21वीं सदी की शुरुआत के बाद से तूफान, चक्रवात, सूखा, बाढ़ आदि की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है। इन सभी परिवर्तनों के पीछे का पर्यवेक्षक ग्लोबल वार्मिंग है। नाम काफी आत्म-व्याख्यात्मक है; इसका अर्थ है पृथ्वी के तापमान में वृद्धि।

पृथ्वी को गर्मी से बचाएं क्योंकि आप इससे अपनी रक्षा करते हैं!

global warming essay in hindi

ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध लिखते समय ग्लोबल वार्मिंग और पॉइंटर को ध्यान में रखने के विचार से परिचित होने के बाद, global warming essay in hindi के सैंपल के लिए आगे पढ़ते हैं। 

ग्लोबल वार्मिंग पृथ्वी के वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर में वृद्धि और पिछली कुछ शताब्दियों से हमारे पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली मानवीय गतिविधियों के परिणामस्वरूप होता है। ग्लोबल वार्मिंग एक ऐसी चीज है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है और वैश्विक स्तर पर इस स्थिति से निपटने के लिए कदम उठाने होंगे। पिछले कुछ वर्षों से औसत तापमान में लगातार 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो रही है। भविष्य में पृथ्वी को होने वाले नुकसान को रोकने का सबसे अच्छा तरीका, अधिक वनों को काटने पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए और वनीकरण को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। अपने घरों और कार्यालयों के पास पेड़ लगाकर शुरुआत करें, आयोजनों में भाग लें, पेड़ लगाने का महत्व सिखाएं। नुकसान को पूर्ववत करना असंभव है लेकिन आगे के नुकसान को रोकना संभव है।

लंबे समय से, यह देखा गया है कि पृथ्वी का बढ़ता तापमान वन्य जीवन, जानवरों, मनुष्यों और पृथ्वी पर हर जीवित जीव को प्रभावित करता था। ग्लेशियर पिघल रहे हैं, कई देशों ने पानी की कमी, बाढ़, कटाव शुरू कर दिया है और यह सब ग्लोबल वार्मिंग के कारण है। ग्लोबल वार्मिंग के लिए इंसानों को छोड़कर किसी को भी दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। बिजली संयंत्रों से निकलने वाली गैसों, परिवहन, वनों की कटाई जैसी मानवीय गतिविधियों के परिणामस्वरूप पृथ्वी के वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड, सीएफ़सी और अन्य प्रदूषकों जैसी गैसों में वृद्धि हुई है। मुख्य सवाल यह है कि हम वर्तमान स्थिति को कैसे नियंत्रित कर सकते हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बेहतर दुनिया का निर्माण कर सकते हैं। इसकी शुरुआत प्रत्येक व्यक्ति के छोटे-छोटे कदमों से होती है।

खरीदारी के सभी उद्देश्यों के लिए टिकाऊ सामग्री से बने कपड़े के थैलों का उपयोग करना शुरू करें, उच्च वाट की रोशनी का उपयोग करने के बजाय ऊर्जा कुशल बल्बों का उपयोग करें, बिजली बंद करें, पानी बर्बाद न करें, वनों की कटाई को समाप्त करें और अधिक पेड़ लगाने को प्रोत्साहित करें। ऊर्जा के उपयोग को पेट्रोलियम या अन्य जीवाश्म ईंधन से पवन और सौर ऊर्जा में स्थानांतरित करें। पुराने कपड़ों को फेंकने के बजाय किसी को दान कर दें ताकि इसे रिसाइकिल किया जा सके। पुरानी किताबें दान करें, कागज बर्बाद न करें। सबसे बढ़कर, ग्लोबल वार्मिंग के बारे में जागरूकता फैलाएं। पृथ्वी को बचाने के लिए एक व्यक्ति जो भी छोटा-मोटा काम करता है, वह बड़ी या छोटी मात्रा में योगदान देगा।

यह महत्वपूर्ण है कि हम सीखें कि 1% प्रयास बिना किसी प्रयास के बेहतर है। प्रकृति की देखभाल करने और ग्लोबल वार्मिंग के बारे में बोलने का संकल्प लें। ऊर्जा के उपयोग को पेट्रोलियम या अन्य जीवाश्म ईंधन से पवन और सौर ऊर्जा में स्थानांतरित करें। पुराने कपड़ों को फेंकने के बजाय किसी को दान कर दें ताकि इसे रिसाइकिल किया जा सके। पुरानी किताबें दान करें, कागज बर्बाद न करें। सबसे बढ़कर, ग्लोबल वार्मिंग के बारे में जागरूकता फैलाएं। 

इस ग्रह को दर्द होता है, उसे गर्मी से मत दुखाओ।

ग्लोबल वार्मिंग भविष्यवाणी नहीं है, यह हो रहा है। इसे नकारने वाला या इससे अनजान व्यक्ति सबसे सरल शब्दों में उलझा हुआ है। क्या हमारे पास रहने के लिए कोई दूसरा ग्रह है? दुर्भाग्य से, हमें केवल यह एक ऐसा ग्रह प्रदान किया गया है जो जीवन को बनाए रख सकता है फिर भी वर्षों से हमने अपनी दुर्दशा से आंखें मूंद ली हैं। ग्लोबल वार्मिंग एक अमूर्त अवधारणा नहीं है, बल्कि एक वैश्विक घटना है जो इस समय भी इतनी धीमी गति से घटित हो रही है।

ग्लोबल वार्मिंग एक ऐसी घटना है जो हर मिनट हो रही है जिसके परिणामस्वरूप पृथ्वी की समग्र जलवायु में धीरे-धीरे वृद्धि हो रही है। वातावरण में सौर विकिरण को फंसाने वाली ग्रीनहाउस गैसों द्वारा लाया गया, ग्लोबल वार्मिंग पृथ्वी के पूरे मानचित्र को बदल सकता है, क्षेत्रों को विस्थापित कर सकता है, कई देशों में बाढ़ ला सकता है और कई जीवन रूपों को नष्ट कर सकता है। चरम मौसम ग्लोबल वार्मिंग का प्रत्यक्ष परिणाम है लेकिन यह संपूर्ण परिणाम नहीं है। ग्लोबल वार्मिंग के लगभग असीमित प्रभाव हैं जो पृथ्वी पर जीवन के लिए हानिकारक हैं।

दुनिया भर में समुद्र का स्तर प्रति वर्ष 0.12 इंच बढ़ रहा है। ऐसा ग्लोबल वार्मिंग के कारण ध्रुवीय बर्फ की टोपियों के पिघलने के कारण हो रहा है। इससे कई तराई क्षेत्रों में बाढ़ की आवृत्ति बढ़ गई है और प्रवाल भित्तियों को नुकसान पहुंचा है। आर्कटिक ग्लोबल वार्मिंग से सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्रों में से एक है। वायु की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है और समुद्री जल की अम्लता भी बढ़ गई है जिससे समुद्री जीवों को गंभीर नुकसान हुआ है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण गंभीर प्राकृतिक आपदाएं आती हैं, जिसका जीवन और संपत्ति पर गंभीर प्रभाव पड़ा है।

जब तक मानव जाति ग्रीनहाउस गैसों का उत्पादन करती है, ग्लोबल वार्मिंग में तेजी जारी रहेगी। परिणाम बहुत छोटे पैमाने पर महसूस किए जाते हैं जो निकट भविष्य में और भीषण हो जाएंगे। दिन बचाने की ताकत इंसानों के हाथ में है, जरूरत है दिन को जब्त करने की। ऊर्जा की खपत को व्यक्तिगत आधार पर कम किया जाना चाहिए। ऊर्जा स्रोतों की बर्बादी को कम करने के लिए ईंधन कुशल कारों और अन्य इलेक्ट्रॉनिक्स को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इससे वायु की गुणवत्ता में भी सुधार होगा और वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता कम होगी। ग्लोबल वार्मिंग एक ऐसी बुराई है जिसे एक साथ लड़ने पर ही हराया जा सकता है।

पहले से कहीं ज्यादा देर हो चुकी है। अगर हम सब आज कदम उठाते हैं, तो कल हमारा भविष्य बहुत उज्जवल होगा। ग्लोबल वार्मिंग हमारे अस्तित्व का अभिशाप है और इससे लड़ने के लिए दुनिया भर में विभिन्न नीतियां सामने आई हैं लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। वास्तविक अंतर तब आता है जब हम इससे लड़ने के लिए व्यक्तिगत स्तर पर काम करते हैं। एक अपरिवर्तनीय गलती बनने से पहले इसके आयात को समझना अब महत्वपूर्ण है। ग्लोबल वार्मिंग को खत्म करना अत्यंत महत्वपूर्ण है और हम में से प्रत्येक इसके लिए उतना ही जिम्मेदार है जितना कि अगले।  

ग्लोबल वार्मिंग निबंध

ग्लोबल वार्मिंग के बारे में हमेशा हर जगह सुना जाता है, लेकिन क्या हम जानते हैं कि यह वास्तव में क्या है? सबसे खराब बुराई, ग्लोबल वार्मिंग एक ऐसी घटना है जो जीवन को अधिक घातक रूप से प्रभावित कर सकती है। ग्लोबल वार्मिंग से तात्पर्य विभिन्न मानवीय गतिविधियों के परिणामस्वरूप पृथ्वी के तापमान में वृद्धि से है। ग्रह धीरे-धीरे गर्म हो रहा है और उस पर जीवन रूपों के अस्तित्व को खतरा है। अथक अध्ययन और शोध किए जाने के बावजूद, अधिकांश आबादी के लिए ग्लोबल वार्मिंग विज्ञान की एक अमूर्त अवधारणा है। यह वह अवधारणा है जो वर्षों से ग्लोबल वार्मिंग को एक वास्तविक वास्तविकता बनाने में परिणत हुई है, न कि किताबों में शामिल एक कॉन्सेप्ट।

ग्लोबल वार्मिंग केवल एक कारण से नहीं होती है जिस पर अंकुश लगाया जा सकता है। ऐसे कई कारक हैं जो ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनते हैं, जिनमें से अधिकांश व्यक्ति के दैनिक अस्तित्व का हिस्सा हैं। खाना पकाने, वाहनों में और अन्य पारंपरिक उपयोगों के लिए ईंधन जलाने से कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन जैसी कई अन्य ग्रीनहाउस गैसों का उत्पादन होता है जो ग्लोबल वार्मिंग को तेज करता है। बड़े पैमाने पर वनों की कटाई से ग्लोबल वार्मिंग भी होती है क्योंकि कम ग्रीन कवर के परिणामस्वरूप वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की उपस्थिति बढ़ जाती है जो एक ग्रीनहाउस गैस है। 

ग्लोबल वार्मिंग का समाधान खोजना तत्काल महत्व का है। ग्लोबल वार्मिंग एक ऐसी घटना है जिससे एकजुट होकर लड़ना होगा। ग्लोबल वार्मिंग के गंभीर परिणामों को दूर करने की दिशा में अधिक से अधिक पेड़ लगाना पहला कदम हो सकता है। हरित आवरण बढ़ने से कार्बन चक्र को विनियमित किया जा सकेगा। गैर-नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग से अक्षय ऊर्जा जैसे पवन या सौर ऊर्जा में बदलाव होना चाहिए जो कम प्रदूषण का कारण बनता है और जिससे ग्लोबल वार्मिंग के त्वरण में बाधा उत्पन्न होती है। व्यक्तिगत स्तर पर ऊर्जा की जरूरतों को कम करना और किसी भी रूप में ऊर्जा बर्बाद न करना ग्लोबल वार्मिंग के खिलाफ उठाया जाने वाला सबसे महत्वपूर्ण कदम है।

हम जिस शालीनता की गहरी नींद में चले गए हैं, उससे हमें जगाने के लिए चेतावनी की घंटी बज रही है। मनुष्य प्रकृति के खिलाफ लड़ सकता है और अब समय आ गया है कि हम इसे स्वीकार करें। हमारी सभी वैज्ञानिक प्रगति और तकनीकी आविष्कारों के साथ, ग्लोबल वार्मिंग के नकारात्मक प्रभावों से लड़ना असंभव है। हमें यह याद रखना होगा कि हमें अपने पूर्वजों से पृथ्वी विरासत में नहीं मिली है, बल्कि इसे अपनी आने वाली पीढ़ी से उधार लेते हैं और जीवन के अस्तित्व के लिए उन्हें एक स्वस्थ ग्रह देने की जिम्मेदारी हमारे कंधों पर है। 

ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। दोनों एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और दुनिया भर में प्रमुख चिंता के दो मुद्दे हैं। पृथ्वी के वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड, सीएफ़सी, और अन्य प्रदूषक जैसे ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनता है जिससे जलवायु परिवर्तन होता है। पृथ्वी को हानिकारक पराबैंगनी किरणों से बचाने वाली ओजोन परत में ब्लैक होल बनने लगे हैं। मानवीय गतिविधियों ने जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग को जन्म दिया है। ग्लोबल वार्मिंग में औद्योगिक कचरे और धुएं का प्रमुख योगदान है। प्रभावित करने वाला एक अन्य कारक जीवाश्म ईंधन का जलना, वनों की कटाई और जलवायु परिवर्तन के कारणों में से एक है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण अंटार्कटिका, ग्रीनलैंड और आर्कटिक में पर्वतीय हिमनद सिकुड़ रहे हैं और जलवायु परिवर्तन का कारण बन रहे हैं। पवन और सौर जैसे ऊर्जा स्रोतों के लिए जीवाश्म ईंधन के उपयोग से स्विच करना। कोई भी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण खरीदते समय ऊर्जा बचत वाले सितारों के साथ सर्वोत्तम गुणवत्ता खरीदें। पानी बर्बाद न करें और अपने समुदाय में वर्षा जल संचयन को प्रोत्साहित करें। 

एक शब्द जिसका आज हम आम तौर पर सामना करते हैं, वह है ग्लोबल वार्मिंग। शब्द के साथ हमारा परिचय हमारी पाठ्यपुस्तकों और उन नकारात्मक परिणामों तक सीमित है जिनके बारे में हम पढ़ते हैं। लेकिन क्या ग्लोबल वार्मिंग वास्तव में एक सैद्धांतिक अवधारणा से कहीं अधिक है। ग्लोबल वार्मिंग मुख्य रूप से मानवीय गतिविधियों के कारण गर्मी के फंसने के कारण पृथ्वी के धीरे-धीरे गर्म होने की घटना को संदर्भित करता है। ग्लोबल वार्मिंग का एक प्रमुख परिणाम यह है कि इससे पृथ्वी के तापमान में वृद्धि होगी जिससे ध्रुवीय बर्फ की टोपियों का पिघलना, चरम जलवायु और इस तरह सामान्य कामकाज में व्यवधान जैसे गंभीर नकारात्मक प्रभाव होंगे। इसके खतरे केवल कुछ पहलुओं तक ही सीमित नहीं हैं बल्कि सर्वव्यापी हैं और पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व को खतरे में डाल सकते हैं। हालांकि ग्लोबल वार्मिंग के कई कारण हैं, कुछ प्रमुख कारण दूसरों की तुलना में अधिक योगदान करते हैं। ये कारक इसकी दर को तेज करते हैं:

  • मनुष्यों की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए जीवाश्म ईंधन के अत्यधिक जलने से वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों का प्रतिशत कई गुना बढ़ जाता है।
  • वनों की कटाई मानवीय जरूरतों के लिए पेड़ों की अंधाधुंध कटाई है।
  • सतत कृषि और पशुपालन भी मीथेन को पढ़कर ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनता है जो एक प्रमुख ग्रीनहाउस गैस है।
  • रेफ्रिजरेटर और एसी जैसे उपकरणों में इस्तेमाल होने वाले क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) जैसे विभिन्न रसायनों के परिणामस्वरूप भी काफी हद तक ग्लोबल वार्मिंग होती है।

एक प्रभावी निबंध लिखने के लिए ऐसे कौशल की आवश्यकता होती है जो बहुत कम लोगों के पास हो और उससे भी कम लोग जानते हों कि इसे कैसे लागू किया जाए। एक निबंध लिखते समय एक कठिन काम हो सकता है जो कई बार परेशान करने वाला हो सकता है, एक सफल निबंध का मसौदा तैयार करने के लिए कुछ प्रमुख बिंदुओं को शामिल किया जा सकता है। इनमें निबंध की संरचना पर ध्यान केंद्रित करना, इसकी अच्छी तरह से योजना बनाना और महत्वपूर्ण विवरणों पर जोर देना शामिल है। नीचे कुछ संकेत दिए गए हैं जो आपको बेहतर संरचना और अधिक विचारशील निबंध लिखने में मदद कर सकते हैं जो आपके पाठकों तक पहुंचेंगे:

  • निरंतरता और प्रासंगिकता सुनिश्चित करने के लिए निबंध की रूपरेखा तैयार करें और निबंध की संरचना में कोई व्यवधान न हो।
  • एक थीसिस स्टेटमेंट पर निर्णय लें जो आपके निबंध का आधार बनेगी। यह आपके निबंध का बिंदु होगा और पाठकों को आपके विवाद को समझने में मदद करेगा।
  • परिचय की संरचना, एक विस्तृत निकाय और उसके बाद निष्कर्ष का पालन करें ताकि पाठक बिना किसी असंगति के निबंध को एक विशेष तरीके से समझ सकें।
  • निबंध को व्यावहारिक और पढ़ने के लिए आकर्षक बनाने के लिए अपनी शुरुआत को आकर्षक बनाएं और अपने निष्कर्ष में समाधान शामिल करें।
  • इसे प्रकाशित करने से पहले इसे फिर से पढ़ें और निबंध को और अधिक व्यक्तिगत और पाठकों के लिए अद्वितीय और दिलचस्प बनाने के लिए उसमें अपनी प्रतिभा जोड़ें।  

वर्तमान में मानवीय गतिविधियों के कारण उत्पन्न ग्रीनहाउस गैसों के प्रभावस्वरूप पृथ्वी के दीर्घकालिक औसत तापमान में हुई वृद्धि को  वैश्विक  तापन/ग्लोबल वार्मिंग कहा जाता है ।

ग्लोबल वार्मिंग  या वैश्विक तापमान बढ़ने का मतलब है कि पृथ्वी लगातार गर्म होती जा रही है. विज्ञानिकों का कहना है कि आने वाले दिनों में सूखा बढ़ेगा, बाढ़ की घटनाएँ बढ़ेंगी और मौसम का मिज़ाज बुरी तरह बिगड़ा हुआ दिखेगा. इसका असर दिखने भी लगा है. ग्लेशियर पिघल रहे  हैं  और रेगिस्तान पसरते जा रहे  हैं .

वर्ल्ड मिटियोरॉलॉजिकल ऑर्गेनाइज़ेशन की रिपोर्ट में कहा गया है कि कार्बन डाइऑक्साइड, मिथेन और नाइट्रस ऑक्साइड की मात्रा औद्योगिक युग की शुरुआत के बाद से सबसे ज़्यादा है. इन गैसों से ही  ग्लोबल वार्मिंग  होती है.

हमें उम्मीद है कि इस ब्लॉग से आपको ग्लोबल वार्मिंग से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त हुई होगी। इसी और अन्य तरह के ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहिए।

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रश्मि पटेल विविध एजुकेशनल बैकग्राउंड रखने वाली एक पैशनेट राइटर और एडिटर हैं। उनके पास Diploma in Computer Science और BA in Public Administration and Sociology की डिग्री है, जिसका ज्ञान उन्हें UPSC व अन्य ब्लॉग लिखने और एडिट करने में मदद करता है। वर्तमान में, वह हिंदी साहित्य में अपनी दूसरी बैचलर की डिग्री हासिल कर रही हैं, जो भाषा और इसकी समृद्ध साहित्यिक परंपरा के प्रति उनके प्रेम से प्रेरित है। लीवरेज एडु में एडिटर के रूप में 2 साल से ज़्यादा अनुभव के साथ, रश्मि ने छात्रों को मूल्यवान मार्गदर्शन प्रदान करने में अपनी स्किल्स को निखारा है। उन्होंने छात्रों के प्रश्नों को संबोधित करते हुए 1000 से अधिक ब्लॉग लिखे हैं और 2000 से अधिक ब्लॉग को एडिट किया है। रश्मि ने कक्षा 1 से ले कर PhD विद्यार्थियों तक के लिए ब्लॉग लिखे हैं जिन में उन्होंने कोर्स चयन से ले कर एग्जाम प्रिपरेशन, कॉलेज सिलेक्शन, छात्र जीवन से जुड़े मुद्दे, एजुकेशन लोन्स और अन्य कई मुद्दों पर बात की है। Leverage Edu पर उनके ब्लॉग 50 लाख से भी ज़्यादा बार पढ़े जा चुके हैं। रश्मि को नए SEO टूल की खोज व उनका उपयोग करने और लेटेस्ट ट्रेंड्स के साथ अपडेट रहने में गहरी रुचि है। लेखन और संगठन के अलावा, रश्मि पटेल की प्राथमिक रुचि किताबें पढ़ना, कविता लिखना, शब्दों की सुंदरता की सराहना करना है।

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ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध (Global Warming Essay in hindi) - कारण और समाधान 100, 200, 500 शब्द

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आमतौर पर पृथ्वी के औसत तापमान में हो रही बढ़ोतरी को ग्लोबल वार्मिंग (Global warming) कहा जाता है। पृथ्वी के औसत तापमान के बढ़ने का कारण दुनिया में तेजी से हो रहे आधुनिकीकरण को माना जा रहा है जिससे हमारी धरती बदलाव के दौर से गुजर रही है। एक तरफ बढ़ती जनसंख्या और दूसरी ओर विकास के नाम पर दुनिया भर में बड़ी संख्या में उद्योगों की स्थापना की जा रही है। लेकिन जैसे-जैसे विकास की रफ्तार बढ़ी है, पृथ्वी की पारिस्थितिकी की स्थिति काफी हद तक खराब हो गई है।

ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध (100 Words Essay on Global Warming in hindi)

ग्लोबल वार्मिंग पर 200 शब्दों का निबंध (200 words essay on global warming in hindi), ग्लोबल वार्मिंग पर 500 शब्दों का निबंध (500 words essay on global warming in hindi).

ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध (Global Warming Essay in hindi) - कारण और समाधान 100, 200, 500 शब्द

पर्यावरण के खतरों पर चर्चा करते समय, "ग्लोबल वार्मिंग" वाक्यांश का अक्सर उपयोग किया जाता है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण और परिणाम अभी भी कई लोगों के लिए पूरी तरह जानकारी में नहीं हैं। इन दिनों कई प्रतियोगी परीक्षा से लेकर स्कूल,कॉलेज की परीक्षाओं में भी ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध (Essay on Global warming in hindi) संबंधी प्रश्न आ रहे हैं। यहां ग्लोबल वार्मिंग पर कुछ नमूना निबंध दिए गए हैं जिससे परीक्षार्थियों को ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध लिखने के लिए दृष्टिकोण मिलेंगे।

पृथ्वी के औसत वैश्विक तापमान में वृद्धि को ग्लोबल वार्मिंग के रूप में जाना जाता है। ग्लोबल वार्मिंग अधिकतर जीवाश्म ईंधन जलाने और वायुमंडल में खतरनाक प्रदूषकों के उत्सर्जन के कारण होती है। ग्लोबल वार्मिंग के परिणामस्वरूप जीवित चीजों को बहुत नुकसान हो सकता है। कुछ स्थानों पर तापमान अचानक बढ़ जाता है, जबकि कुछ स्थानों पर अचानक गिर जाता है।

ऊर्जा के लिए जीवाश्म ईंधन का उपयोग ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारण है। यह देखा गया है कि पिछले दस वर्षों में पृथ्वी का औसत तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है। यह चिंता का कारण है क्योंकि यह पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान पहुंचा सकता है और पर्यावरणीय गड़बड़ी पैदा कर सकता है। यदि हम अपने जंगलों में नष्ट हो चुकी वनस्पतियों को फिर से लगाने के लिए निर्णायक कार्रवाई करते हैं, तो हम ग्लोबल वार्मिंग को रोक सकते हैं। ग्लोबल वार्मिंग की दर को धीमा करने के लिए हम सौर, पवन और ज्वारीय ऊर्जा जैसे टिकाऊ ऊर्जा स्रोतों का भी उपयोग कर सकते हैं।

समय के साथ पृथ्वी के औसत वैश्विक तापमान में सतत वृद्धि को ग्लोबल वार्मिंग कहा जाता है। ऐसा कहा गया है कि विभिन्न कारणों से मनुष्यों द्वारा बड़े पैमाने पर वनों की कटाई इसके लिए जिम्मेदार है। हर साल, हम बहुत अधिक ईंधन का उपयोग करते हैं। मानव जनसंख्या बढ़ने के कारण लोगों की ईंधन जरूरतों को पूरा करना असंभव होता जा रहा है। प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग सावधानी से करना चाहिए क्योंकि वे सीमित हैं। यदि मनुष्य वनों और अन्य खनिज संपदा का अत्यधिक उपयोग करेगा तो पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित हो जाएगा। केवल तापमान वृद्धि ही ग्लोबल वार्मिंग का एकमात्र संकेत नहीं है। इसके अन्य परिणाम भी हैं।

तूफान, बाढ़ और हिमस्खलन सहित प्राकृतिक आपदाएँ पूरे पृथ्वी पर हो रही हैं। इन सबका सीधा संबंध ग्लोबल वार्मिंग से है। अपने पर्यावरण की रक्षा के लिए हमें ग्लोबल वार्मिंग के नकारात्मक प्रभावों से बचाव के लिए अपनी पारिस्थितिकी का पुनर्निर्माण करना होगा। इस विश्व को आने वाली पीढ़ियों के लिए एक अच्छी जगह बनाने के लिए हम सभी को मिलकर काम करना चाहिए। पेड़-पौधे लगाना एक ऐसा कार्य है जिसे करके हम समग्र रूप से अपनी दुनिया की स्थिति को बेहतर बना सकते हैं। हमारा मुख्य उद्देश्य पुनर्वनीकरण होना चाहिए। वनों का क्षेत्रफल बढ़ने से प्राकृतिक संतुलन बेहतर होगा। यदि हम अपने जीवनकाल में अधिक से अधिक पौधे लगाने के लिए प्रतिबद्ध हों, तो पृथ्वी एक बेहतर स्थान बन जाएगी।

विभिन्न कारकों के कारण सतही जलवायु में होने वाली क्रमिक वृद्धि को ग्लोबल वार्मिंग के रूप में जाना जाता है। यह पर्यावरण और मानवता दोनों के लिए गंभीर खतरा पैदा करता है। जलवायु परिवर्तन के प्रभावों में ग्लोबल वार्मिंग भी शामिल है। ग्लोबल वार्मिंग में मुख्य योगदानकर्ता ग्रीनहाउस गैसों का अपरिहार्य उत्सर्जन है। मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड दो मुख्य ग्रीनहाउस गैसें हैं। इस वार्मिंग के कई अन्य कारण और प्रभाव हैं, जो पृथ्वी के जीवन को खतरे में डाल रहे हैं।

ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार कारण (Reasons Responsible For Global Warming in hindi)

ग्लोबल वार्मिंग के कई कारण हैं। ये समस्याएँ प्रकृति और मानवजनित दोनों के कारण उत्पन्न होती हैं। वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की उपस्थिति के कारण पृथ्वी की सतह से परावर्तित होने वाली ऊष्मा किरणें वहीं फंस जाती हैं। इस घटना का परिणाम "ग्रीनहाउस प्रभाव" है। अत्यधिक कार्बन डाइऑक्साइड के कारण ग्लोबल वार्मिंग होता है। ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनने वाली प्राथमिक गैसों को ग्रीनहाउस गैसें कहा जाता है।

मुख्य ग्रीनहाउस गैसें मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, ओजोन और कार्बन डाइऑक्साइड हैं। जब इनकी सांद्रता असंतुलित हो जाती है तो ये गैसें ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनती हैं। ज्वालामुखी विस्फोट, सौर विकिरण और अन्य प्राकृतिक घटनाएँ कुछ उदाहरण हैं जो ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाते हैं। लोगों द्वारा कारों और जीवाश्म ईंधन के अत्यधिक उपयोग से भी कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर बढ़ता है। ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनने वाला सबसे चर्चित मुद्दा वनों की कटाई है। पेड़ों की कटाई के कारण हवा में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर बढ़ रहा है। ग्लोबल वार्मिंग में योगदान देने वाले अतिरिक्त कारणों में बढ़ती जनसंख्या, औद्योगीकरण, प्रदूषण आदि शामिल हैं।

जलवायु परिवर्तन हम पर कैसे प्रभाव डालता है (How Climate Change Impacts Us in hindi)

ग्लोबल वार्मिंग के कारण मौसम में कई बदलाव आते हैं, जिनमें लंबी गर्मी और कम सर्दी, अधिक तापमान, व्यापारिक हवाओं में बदलाव, साल भर होने वाली बारिश, ध्रुवीय बर्फ की चोटियों का पिघलना, कमजोर ओजोन अवरोध आदि शामिल हैं। इसके परिणामस्वरूप प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि हो सकती है, जिनमें गंभीर तूफान, चक्रवात, बाढ़ और कई अन्य आपदाएं शामिल हैं।

ग्लोबल वार्मिंग से होने वाले नुकसान से पौधे, जानवर और अन्य पर्यावरणीय तत्व सीधे प्रभावित होते हैं। समुद्र का बढ़ता स्तर, तेजी से ग्लेशियर का पिघलना और ग्लोबल वार्मिंग के अन्य महत्वपूर्ण प्रभाव हैं। जैसे-जैसे ग्लोबल वार्मिंग की स्थिति बिगड़ती जा रही है, समुद्री जीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है, जिससे समुद्री जीवन काफी हद तक नष्ट हो रहा है और अतिरिक्त समस्याएं पैदा हो रही हैं।

ग्लोबल वार्मिंग की रोकथाम (Preventing Global Warming in hindi)

ग्लोबल वार्मिंग रोकने के लिए उचित समाधान ढूंढना अब पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि ग्लोबल वार्मिंग एक गंभीर मुद्दा बन गया है और अंतरराष्ट्रीय मंचों और सम्मेलनों में विश्व स्तर पर इस पर चर्चा की जा रही है। अब समय आ गया है कि औद्योगीकरण के युग को नियंत्रित किया जाए और इसे टिकाऊ विकास के तरीके से जारी रखा जाए।

ग्लोबल वार्मिंग की समस्या को हल करने के लिए समुदायों से लेकर सरकारों तक सभी को मिलकर काम करने की जरूरत है। प्रदूषण पर नियंत्रण, जनसंख्या वृद्धि और प्राकृतिक संसाधनों का सीमित दोहन विचार करने योग्य कुछ प्रमुख कारक हैं। सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करना या दूसरों के साथ कारपूलिंग करना बहुत मददगार होगा। लोगों को रीसाइक्लिंग को बढ़ावा देना होगा। प्लास्टिक का उपयोग कम करना होगा। औद्योगिक कचरे और हवा में हानिकारण गैसों के उत्सर्जन पर नियंत्रण करने से भी मदद मिलेगी।

इस बात के स्पष्ट संकेत हैं कि ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि से धरती पर जीवन नष्ट हो जाएगा। ग्लोबल वार्मिंग मानवता के लिए सबसे बड़ा ख़तरा है और इसे नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता। साथ ही इसे संभालना भी मुश्किल है। इसलिए हमें ग्लोबल वार्मिंग रोकने वाले अभियान जैसे पेड़-पौधे लगाना, सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा का उपयोग, औद्योगिकीकरण को कम करने, ग्लाेबल वार्मिंग बढ़ाने वाली चीजों जैसे एसी वगैरह का उपयोग कम करके, प्रदूषण की रोकथाम आदि की मदद से हम इसके प्रभावों को कम कर सकते हैं।

Explore Career Options (By Industry)

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  • Entertainment
  • Manufacturing
  • Information Technology

Data Administrator

Database professionals use software to store and organise data such as financial information, and customer shipping records. Individuals who opt for a career as data administrators ensure that data is available for users and secured from unauthorised sales. DB administrators may work in various types of industries. It may involve computer systems design, service firms, insurance companies, banks and hospitals.

Bio Medical Engineer

The field of biomedical engineering opens up a universe of expert chances. An Individual in the biomedical engineering career path work in the field of engineering as well as medicine, in order to find out solutions to common problems of the two fields. The biomedical engineering job opportunities are to collaborate with doctors and researchers to develop medical systems, equipment, or devices that can solve clinical problems. Here we will be discussing jobs after biomedical engineering, how to get a job in biomedical engineering, biomedical engineering scope, and salary. 

Ethical Hacker

A career as ethical hacker involves various challenges and provides lucrative opportunities in the digital era where every giant business and startup owns its cyberspace on the world wide web. Individuals in the ethical hacker career path try to find the vulnerabilities in the cyber system to get its authority. If he or she succeeds in it then he or she gets its illegal authority. Individuals in the ethical hacker career path then steal information or delete the file that could affect the business, functioning, or services of the organization.

GIS officer work on various GIS software to conduct a study and gather spatial and non-spatial information. GIS experts update the GIS data and maintain it. The databases include aerial or satellite imagery, latitudinal and longitudinal coordinates, and manually digitized images of maps. In a career as GIS expert, one is responsible for creating online and mobile maps.

Data Analyst

The invention of the database has given fresh breath to the people involved in the data analytics career path. Analysis refers to splitting up a whole into its individual components for individual analysis. Data analysis is a method through which raw data are processed and transformed into information that would be beneficial for user strategic thinking.

Data are collected and examined to respond to questions, evaluate hypotheses or contradict theories. It is a tool for analyzing, transforming, modeling, and arranging data with useful knowledge, to assist in decision-making and methods, encompassing various strategies, and is used in different fields of business, research, and social science.

Geothermal Engineer

Individuals who opt for a career as geothermal engineers are the professionals involved in the processing of geothermal energy. The responsibilities of geothermal engineers may vary depending on the workplace location. Those who work in fields design facilities to process and distribute geothermal energy. They oversee the functioning of machinery used in the field.

Database Architect

If you are intrigued by the programming world and are interested in developing communications networks then a career as database architect may be a good option for you. Data architect roles and responsibilities include building design models for data communication networks. Wide Area Networks (WANs), local area networks (LANs), and intranets are included in the database networks. It is expected that database architects will have in-depth knowledge of a company's business to develop a network to fulfil the requirements of the organisation. Stay tuned as we look at the larger picture and give you more information on what is db architecture, why you should pursue database architecture, what to expect from such a degree and what your job opportunities will be after graduation. Here, we will be discussing how to become a data architect. Students can visit NIT Trichy , IIT Kharagpur , JMI New Delhi . 

Remote Sensing Technician

Individuals who opt for a career as a remote sensing technician possess unique personalities. Remote sensing analysts seem to be rational human beings, they are strong, independent, persistent, sincere, realistic and resourceful. Some of them are analytical as well, which means they are intelligent, introspective and inquisitive. 

Remote sensing scientists use remote sensing technology to support scientists in fields such as community planning, flight planning or the management of natural resources. Analysing data collected from aircraft, satellites or ground-based platforms using statistical analysis software, image analysis software or Geographic Information Systems (GIS) is a significant part of their work. Do you want to learn how to become remote sensing technician? There's no need to be concerned; we've devised a simple remote sensing technician career path for you. Scroll through the pages and read.

Budget Analyst

Budget analysis, in a nutshell, entails thoroughly analyzing the details of a financial budget. The budget analysis aims to better understand and manage revenue. Budget analysts assist in the achievement of financial targets, the preservation of profitability, and the pursuit of long-term growth for a business. Budget analysts generally have a bachelor's degree in accounting, finance, economics, or a closely related field. Knowledge of Financial Management is of prime importance in this career.

Underwriter

An underwriter is a person who assesses and evaluates the risk of insurance in his or her field like mortgage, loan, health policy, investment, and so on and so forth. The underwriter career path does involve risks as analysing the risks means finding out if there is a way for the insurance underwriter jobs to recover the money from its clients. If the risk turns out to be too much for the company then in the future it is an underwriter who will be held accountable for it. Therefore, one must carry out his or her job with a lot of attention and diligence.

Finance Executive

Product manager.

A Product Manager is a professional responsible for product planning and marketing. He or she manages the product throughout the Product Life Cycle, gathering and prioritising the product. A product manager job description includes defining the product vision and working closely with team members of other departments to deliver winning products.  

Operations Manager

Individuals in the operations manager jobs are responsible for ensuring the efficiency of each department to acquire its optimal goal. They plan the use of resources and distribution of materials. The operations manager's job description includes managing budgets, negotiating contracts, and performing administrative tasks.

Stock Analyst

Individuals who opt for a career as a stock analyst examine the company's investments makes decisions and keep track of financial securities. The nature of such investments will differ from one business to the next. Individuals in the stock analyst career use data mining to forecast a company's profits and revenues, advise clients on whether to buy or sell, participate in seminars, and discussing financial matters with executives and evaluate annual reports.

A Researcher is a professional who is responsible for collecting data and information by reviewing the literature and conducting experiments and surveys. He or she uses various methodological processes to provide accurate data and information that is utilised by academicians and other industry professionals. Here, we will discuss what is a researcher, the researcher's salary, types of researchers.

Welding Engineer

Welding Engineer Job Description: A Welding Engineer work involves managing welding projects and supervising welding teams. He or she is responsible for reviewing welding procedures, processes and documentation. A career as Welding Engineer involves conducting failure analyses and causes on welding issues. 

Transportation Planner

A career as Transportation Planner requires technical application of science and technology in engineering, particularly the concepts, equipment and technologies involved in the production of products and services. In fields like land use, infrastructure review, ecological standards and street design, he or she considers issues of health, environment and performance. A Transportation Planner assigns resources for implementing and designing programmes. He or she is responsible for assessing needs, preparing plans and forecasts and compliance with regulations.

Environmental Engineer

Individuals who opt for a career as an environmental engineer are construction professionals who utilise the skills and knowledge of biology, soil science, chemistry and the concept of engineering to design and develop projects that serve as solutions to various environmental problems. 

Safety Manager

A Safety Manager is a professional responsible for employee’s safety at work. He or she plans, implements and oversees the company’s employee safety. A Safety Manager ensures compliance and adherence to Occupational Health and Safety (OHS) guidelines.

Conservation Architect

A Conservation Architect is a professional responsible for conserving and restoring buildings or monuments having a historic value. He or she applies techniques to document and stabilise the object’s state without any further damage. A Conservation Architect restores the monuments and heritage buildings to bring them back to their original state.

Structural Engineer

A Structural Engineer designs buildings, bridges, and other related structures. He or she analyzes the structures and makes sure the structures are strong enough to be used by the people. A career as a Structural Engineer requires working in the construction process. It comes under the civil engineering discipline. A Structure Engineer creates structural models with the help of computer-aided design software. 

Highway Engineer

Highway Engineer Job Description:  A Highway Engineer is a civil engineer who specialises in planning and building thousands of miles of roads that support connectivity and allow transportation across the country. He or she ensures that traffic management schemes are effectively planned concerning economic sustainability and successful implementation.

Field Surveyor

Are you searching for a Field Surveyor Job Description? A Field Surveyor is a professional responsible for conducting field surveys for various places or geographical conditions. He or she collects the required data and information as per the instructions given by senior officials. 

Orthotist and Prosthetist

Orthotists and Prosthetists are professionals who provide aid to patients with disabilities. They fix them to artificial limbs (prosthetics) and help them to regain stability. There are times when people lose their limbs in an accident. In some other occasions, they are born without a limb or orthopaedic impairment. Orthotists and prosthetists play a crucial role in their lives with fixing them to assistive devices and provide mobility.

Pathologist

A career in pathology in India is filled with several responsibilities as it is a medical branch and affects human lives. The demand for pathologists has been increasing over the past few years as people are getting more aware of different diseases. Not only that, but an increase in population and lifestyle changes have also contributed to the increase in a pathologist’s demand. The pathology careers provide an extremely huge number of opportunities and if you want to be a part of the medical field you can consider being a pathologist. If you want to know more about a career in pathology in India then continue reading this article.

Veterinary Doctor

Speech therapist, gynaecologist.

Gynaecology can be defined as the study of the female body. The job outlook for gynaecology is excellent since there is evergreen demand for one because of their responsibility of dealing with not only women’s health but also fertility and pregnancy issues. Although most women prefer to have a women obstetrician gynaecologist as their doctor, men also explore a career as a gynaecologist and there are ample amounts of male doctors in the field who are gynaecologists and aid women during delivery and childbirth. 

Audiologist

The audiologist career involves audiology professionals who are responsible to treat hearing loss and proactively preventing the relevant damage. Individuals who opt for a career as an audiologist use various testing strategies with the aim to determine if someone has a normal sensitivity to sounds or not. After the identification of hearing loss, a hearing doctor is required to determine which sections of the hearing are affected, to what extent they are affected, and where the wound causing the hearing loss is found. As soon as the hearing loss is identified, the patients are provided with recommendations for interventions and rehabilitation such as hearing aids, cochlear implants, and appropriate medical referrals. While audiology is a branch of science that studies and researches hearing, balance, and related disorders.

An oncologist is a specialised doctor responsible for providing medical care to patients diagnosed with cancer. He or she uses several therapies to control the cancer and its effect on the human body such as chemotherapy, immunotherapy, radiation therapy and biopsy. An oncologist designs a treatment plan based on a pathology report after diagnosing the type of cancer and where it is spreading inside the body.

Are you searching for an ‘Anatomist job description’? An Anatomist is a research professional who applies the laws of biological science to determine the ability of bodies of various living organisms including animals and humans to regenerate the damaged or destroyed organs. If you want to know what does an anatomist do, then read the entire article, where we will answer all your questions.

For an individual who opts for a career as an actor, the primary responsibility is to completely speak to the character he or she is playing and to persuade the crowd that the character is genuine by connecting with them and bringing them into the story. This applies to significant roles and littler parts, as all roles join to make an effective creation. Here in this article, we will discuss how to become an actor in India, actor exams, actor salary in India, and actor jobs. 

Individuals who opt for a career as acrobats create and direct original routines for themselves, in addition to developing interpretations of existing routines. The work of circus acrobats can be seen in a variety of performance settings, including circus, reality shows, sports events like the Olympics, movies and commercials. Individuals who opt for a career as acrobats must be prepared to face rejections and intermittent periods of work. The creativity of acrobats may extend to other aspects of the performance. For example, acrobats in the circus may work with gym trainers, celebrities or collaborate with other professionals to enhance such performance elements as costume and or maybe at the teaching end of the career.

Video Game Designer

Career as a video game designer is filled with excitement as well as responsibilities. A video game designer is someone who is involved in the process of creating a game from day one. He or she is responsible for fulfilling duties like designing the character of the game, the several levels involved, plot, art and similar other elements. Individuals who opt for a career as a video game designer may also write the codes for the game using different programming languages.

Depending on the video game designer job description and experience they may also have to lead a team and do the early testing of the game in order to suggest changes and find loopholes.

Radio Jockey

Radio Jockey is an exciting, promising career and a great challenge for music lovers. If you are really interested in a career as radio jockey, then it is very important for an RJ to have an automatic, fun, and friendly personality. If you want to get a job done in this field, a strong command of the language and a good voice are always good things. Apart from this, in order to be a good radio jockey, you will also listen to good radio jockeys so that you can understand their style and later make your own by practicing.

A career as radio jockey has a lot to offer to deserving candidates. If you want to know more about a career as radio jockey, and how to become a radio jockey then continue reading the article.

Choreographer

The word “choreography" actually comes from Greek words that mean “dance writing." Individuals who opt for a career as a choreographer create and direct original dances, in addition to developing interpretations of existing dances. A Choreographer dances and utilises his or her creativity in other aspects of dance performance. For example, he or she may work with the music director to select music or collaborate with other famous choreographers to enhance such performance elements as lighting, costume and set design.

Social Media Manager

A career as social media manager involves implementing the company’s or brand’s marketing plan across all social media channels. Social media managers help in building or improving a brand’s or a company’s website traffic, build brand awareness, create and implement marketing and brand strategy. Social media managers are key to important social communication as well.

Photographer

Photography is considered both a science and an art, an artistic means of expression in which the camera replaces the pen. In a career as a photographer, an individual is hired to capture the moments of public and private events, such as press conferences or weddings, or may also work inside a studio, where people go to get their picture clicked. Photography is divided into many streams each generating numerous career opportunities in photography. With the boom in advertising, media, and the fashion industry, photography has emerged as a lucrative and thrilling career option for many Indian youths.

An individual who is pursuing a career as a producer is responsible for managing the business aspects of production. They are involved in each aspect of production from its inception to deception. Famous movie producers review the script, recommend changes and visualise the story. 

They are responsible for overseeing the finance involved in the project and distributing the film for broadcasting on various platforms. A career as a producer is quite fulfilling as well as exhaustive in terms of playing different roles in order for a production to be successful. Famous movie producers are responsible for hiring creative and technical personnel on contract basis.

Copy Writer

In a career as a copywriter, one has to consult with the client and understand the brief well. A career as a copywriter has a lot to offer to deserving candidates. Several new mediums of advertising are opening therefore making it a lucrative career choice. Students can pursue various copywriter courses such as Journalism , Advertising , Marketing Management . Here, we have discussed how to become a freelance copywriter, copywriter career path, how to become a copywriter in India, and copywriting career outlook. 

In a career as a vlogger, one generally works for himself or herself. However, once an individual has gained viewership there are several brands and companies that approach them for paid collaboration. It is one of those fields where an individual can earn well while following his or her passion. 

Ever since internet costs got reduced the viewership for these types of content has increased on a large scale. Therefore, a career as a vlogger has a lot to offer. If you want to know more about the Vlogger eligibility, roles and responsibilities then continue reading the article. 

For publishing books, newspapers, magazines and digital material, editorial and commercial strategies are set by publishers. Individuals in publishing career paths make choices about the markets their businesses will reach and the type of content that their audience will be served. Individuals in book publisher careers collaborate with editorial staff, designers, authors, and freelance contributors who develop and manage the creation of content.

Careers in journalism are filled with excitement as well as responsibilities. One cannot afford to miss out on the details. As it is the small details that provide insights into a story. Depending on those insights a journalist goes about writing a news article. A journalism career can be stressful at times but if you are someone who is passionate about it then it is the right choice for you. If you want to know more about the media field and journalist career then continue reading this article.

Individuals in the editor career path is an unsung hero of the news industry who polishes the language of the news stories provided by stringers, reporters, copywriters and content writers and also news agencies. Individuals who opt for a career as an editor make it more persuasive, concise and clear for readers. In this article, we will discuss the details of the editor's career path such as how to become an editor in India, editor salary in India and editor skills and qualities.

Individuals who opt for a career as a reporter may often be at work on national holidays and festivities. He or she pitches various story ideas and covers news stories in risky situations. Students can pursue a BMC (Bachelor of Mass Communication) , B.M.M. (Bachelor of Mass Media) , or  MAJMC (MA in Journalism and Mass Communication) to become a reporter. While we sit at home reporters travel to locations to collect information that carries a news value.  

Corporate Executive

Are you searching for a Corporate Executive job description? A Corporate Executive role comes with administrative duties. He or she provides support to the leadership of the organisation. A Corporate Executive fulfils the business purpose and ensures its financial stability. In this article, we are going to discuss how to become corporate executive.

Multimedia Specialist

A multimedia specialist is a media professional who creates, audio, videos, graphic image files, computer animations for multimedia applications. He or she is responsible for planning, producing, and maintaining websites and applications. 

Quality Controller

A quality controller plays a crucial role in an organisation. He or she is responsible for performing quality checks on manufactured products. He or she identifies the defects in a product and rejects the product. 

A quality controller records detailed information about products with defects and sends it to the supervisor or plant manager to take necessary actions to improve the production process.

Production Manager

A QA Lead is in charge of the QA Team. The role of QA Lead comes with the responsibility of assessing services and products in order to determine that he or she meets the quality standards. He or she develops, implements and manages test plans. 

Process Development Engineer

The Process Development Engineers design, implement, manufacture, mine, and other production systems using technical knowledge and expertise in the industry. They use computer modeling software to test technologies and machinery. An individual who is opting career as Process Development Engineer is responsible for developing cost-effective and efficient processes. They also monitor the production process and ensure it functions smoothly and efficiently.

AWS Solution Architect

An AWS Solution Architect is someone who specializes in developing and implementing cloud computing systems. He or she has a good understanding of the various aspects of cloud computing and can confidently deploy and manage their systems. He or she troubleshoots the issues and evaluates the risk from the third party. 

Azure Administrator

An Azure Administrator is a professional responsible for implementing, monitoring, and maintaining Azure Solutions. He or she manages cloud infrastructure service instances and various cloud servers as well as sets up public and private cloud systems. 

Computer Programmer

Careers in computer programming primarily refer to the systematic act of writing code and moreover include wider computer science areas. The word 'programmer' or 'coder' has entered into practice with the growing number of newly self-taught tech enthusiasts. Computer programming careers involve the use of designs created by software developers and engineers and transforming them into commands that can be implemented by computers. These commands result in regular usage of social media sites, word-processing applications and browsers.

Information Security Manager

Individuals in the information security manager career path involves in overseeing and controlling all aspects of computer security. The IT security manager job description includes planning and carrying out security measures to protect the business data and information from corruption, theft, unauthorised access, and deliberate attack 

ITSM Manager

Automation test engineer.

An Automation Test Engineer job involves executing automated test scripts. He or she identifies the project’s problems and troubleshoots them. The role involves documenting the defect using management tools. He or she works with the application team in order to resolve any issues arising during the testing process. 

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ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध (Global Warming Essay in Hindi)

पृथ्वी के सतह पर औसतन तापमान का बढ़ना ग्लोबल वार्मिंग (वैश्विक तापमान) कहलाता है। ग्लोबल वार्मिंग मुख्य रूप से मानव प्रेरक कारकों के कारण होता है। औद्योगीकरण में ग्रीन हाउस गैसों का अनियंत्रित उत्सर्जन तथा जीवाश्म ईंधन का जलना ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारण है। ग्रीन हाउस गैस वायुमंडल में सूर्य की गर्मी को वापस जाने से रोकता है यह एक प्रकार के प्रभाव है जिसे “ग्रीन हाउस गैस प्रभाव” के नाम से जाना जाता है । इसके फलस्वरूप पृथ्वी के सतह पर तापमान बढ़ रहा है। पृथ्वी के बढ़ते तापमान के फलस्वरूप पर्यावरण प्रभावित होता है अतः इस पर ध्यान देना आवश्यक है।

ग्लोबल वार्मिंग पर छोटे तथा बड़े निबंध (Short and Long Essay on Global Warming in Hindi, Global Warming par Nibandh Hindi mein)

ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध (250 – 300 शब्द).

पर्यावरण में कार्बन डाइऑक्साइड के मात्रा में वृद्धि के कारण पृथ्वी के सतह पर निरंतर तापमान का बढ़ना ग्लोबल वार्मिंग है। ग्लो पृथ्वी का बढ़ता तापमान विभिन्न आशंकाओं (खतरों) को जन्म देता है, साथ ही इस ग्रह पर जीवन के अस्तित्व के लिए संकट पैदा करता है।

ग्लोबल वार्मिंग के कारण

जीवाश्म ईंधन के दोहन, उर्वरकों का उपयोग, वनों को कांटना, बिजली की अत्यधिक खपत, फ्रिज में उपयोग होने वाले गैस इत्यादि के कारणवश वातावरण में CO2, CO  का अत्यधिक उत्सर्जन हो रहा है।CO2 के स्तर में बढ़ोत्तरी “ग्रीन हाउस गैस प्रभाव” का कारक है, जो सभी ग्रीन हाउस गैस (जलवाष्प, CO2, मीथेन, ओजोन) थर्मल विकरण को अवशोषित करता है, तथा सभी दिशाओं में विकीर्णं होकर और पृथ्वी के सतह पर वापस आ जाते हैं जिससे सतह का तापमान बढ़ कर ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारण बनता है।

ग्लोबल वार्मिंग का निवारण

हमें पेड़ो की अन्धाधुन कटाई पर रोक लगाना चाहिए, बिजली का उपयोग कम करना चाहिए, लकड़ी को जलाना बंद करना चाहिए आदि।ग्लोबल वार्मिंग दुनिया के सभी देशों के लिए एक बड़ी समस्या है, जिसका समाधान सकारात्मक शुरूआत के साथ करना चाहिए।

ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव से जीवन पर खतरा बढ़ता जा रहा है। हमें सदैव के लिए बुरी आदतों का त्याग करना चाहिए क्योंकी यह CO2, COके स्तर में वृद्धि कर रहा है और ग्रीन हाउस गैस के प्रभाव से पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है।

ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध – Global Warming par Nibandh (400 शब्द)

आज के समय में ग्लोबल वार्मिंग एक बड़ी पर्यावरण समस्या है जिसका हम सब सामना कर रहे हैं, तथा जिसका समाधान स्थायी रूप से करना आवश्यक हो गया है। वास्तव में पृथ्वी के सतह पर निरंतर तथा स्थायी रूप से तापमान का बढ़ना, ग्लोबल वार्मिंग प्रक्रिया है। सभी देशों द्वारा विश्व स्तर पर इस विषय पर व्यापक रूप से चर्चा होनी चाहिए। यह दशकों से प्रकृति के संतुलन, जैव विविधता तथा जलवायु परिस्थियों को प्रभावित करता आ रहा है।

ग्लोबल वार्मिंग के प्रमुख कारक

ग्रीन हाउस गैस जैसे CO 2 , मीथेन, पृथ्वी पर बढ़ते ग्लोबल वार्मिंग मुख्य कारक हैं। इसका सीधा प्रभाव समुद्री स्तर का विस्तार, पिघलती बर्फ की चट्टाने, ग्लेशियर, अप्रत्याशित जलवायु परिवर्तन पर होता है, यह जीवन पर बढ़ते मृत्यों के संकट का प्रतिनिधित्व करता है। आकड़ों के अनुसार यह अनुमान लगाया जा रहा है की मानव जीवन के बढ़ते मांग के कारण बीसवीं शताब्दी के मध्य से तापमान में बहुत अधिक बढ़ोत्तरी आयी है जिसके फलस्वरूप वैश्विक स्तर पर वायुमंडलीय ग्रीन हाउस गैस सांद्रता के मात्रा में भी वृद्धि हुई है।

पिछली सदी के 1983, 1987, 1988, 1989, और 1991 सबसे गर्म छ: वर्ष रहे हैं, यह मापा गया है। इसने ग्लोबल वार्मिंग में अत्यधिक वृद्धि किया जिसके फलस्वरूप प्राकृतिक आपदाओं का अनपेक्षित प्रकोप सामने आया जैसे- बाढ़, चक्रवात, सुनामी, सूखा, भूस्खलन, भोजन की कमी, बर्फ पिघलना, महामारी रोग, मृत्यों आदि इस कारणवश प्रकृति के घटना चक्र में असंतुलन उत्पन्न होता है जो इस ग्रह पर जीवन के अस्तित्व के समाप्ति का संकेत है।

ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि के कारण, पृथ्वी से वायुमंडल में जल-वाष्पीकरण अधिक होता है जिससे बादल में ग्रीन हाउस गैस का निर्माण होता है जो पुनः ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनता है। जीवाश्म ईंधन का जलना, उर्वरक का उपयोग, अन्य गैसों मे वृद्धि जैसे- CFCs, ट्रोपोस्फेरिक ओजोन, और नाइट्रस ऑक्साइड भी ग्योबल वार्मिंग के कारक हैं। तकनीकी आधुनीकरण, प्रदुषण विस्फोट, औद्योगिक विस्तार के बढ़ते मांग, जंगलों की अन्धाधुन कटाई तथा शहरीकरण ग्लोबल वार्मिंग वृद्धि में प्रमुख रूप से सहायक हैं।

हम जंगल की कटाई तथा आधुनिक तकनीक के उपयोग से प्राकृतिक प्रक्रियाओं को विक्षुब्ध (Disturb) कर रहे हैं। जैसे वैश्विक कार्बन चक्र, ओजोन के परत में छेद्र बनना तथा UV तंरगों का पृथ्वी पर आगमन जिससे ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि हो रही है।

हवा से कार्बन डाइऑक्साइड हटाने का एक मुख्य स्त्रोत पेड़ है। तथा पर्यावरण संतुलन बनाये रखने के लिए हमें वनों की कटाई पर रोक लगाना चाहिए तथा ज्यादा से ज्यादा लोगों द्वारा वृक्षारोपड़ किया जाना चाहिए यह ग्लोबल वार्मिंग के स्तर में अत्यधिक कमी ला सकता है। जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण तथा विनाशकारी प्रोद्यौगिकियों का कम उपयोग भी एक अच्छी पहल है, ग्लोबल वार्मिंग नियंत्रण के लिए।

ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध – Global Warming per Nibandh (600 शब्द)

ग्लोबल वार्मिंग के विभिन्न कारक हैं, जिसमें कुछ प्रकृति प्रदत्त हैं तथा कुछ मानव निर्मित कारक हैं, ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि के सबसे प्रमुख कारकों में ग्रीन हाउस गैस है जो कुछ प्राकृतिक प्रक्रियाओं व मानवीय क्रियाओं से उत्पन्न होता है। बीसवीं शताब्दी में, जनसंख्या वृद्धि, ऊर्जा का अत्यधिक उपयोग से ग्रीन हाउस गैस के स्तर में वृद्धि हुई है। लगभग हर जरूरत को पूरा करने के लिए आधुनिक दुनिया में औद्योगीकरण की बढ़ती मांग, जिससे वातावरण में विभिन्न तरह के ग्रीन हाउस गैस की रिहाई होती है।

कार्बन डाइऑक्साइड CO 2 तथा सल्फर डाइऑक्साइड SO 2 की मात्रा हाल ही के वर्षों में दस गुना बढ़ गई है। विभिन्न प्राकृतिक, औद्योगिक क्रियाएं जिसमें प्रकाश संश्लेषण और ऑक्सीकरण भी सम्मिलित है, इन सब से कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में वृद्धि होती है। अन्य ग्रीन हाउस गैस मीथेन, नाइट्रोजन के ऑक्साइड (नाइट्रस आक्साइड), हॉलोकार्बन, क्लोरोफ्लोरो कार्बन (CFCs), क्लोरीन और ब्रोमीन यौगिक इत्यादि कार्बनिक सामाग्री का अवायवीय अपघटन है। कुछ ग्रीन हाउस गैस वायुमंडल में एकत्र होते है और वायुमंडल के संतुलन को विक्षुब्ध करते हैं। उन में गर्म विकरणों को अवशोंषित करने की क्षमता होती है और इसलिए पृथ्वी के सतह पर तापमान में वृद्धि होती है।

ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव

ग्लोबल वार्मिंग के स्त्रोतों में वृद्धि से साफ तौर पर ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव देखा जा सकता है। US भूगर्भीय सर्वेक्षण (US Geological Survey) के अनुसार मोंटाना ग्लेशियर नेशनल पार्क पर 150 ग्लेशियर मौजुद थे पर ग्लोबल वार्मिंग के वजह से वर्तमान में मात्र 25 ग्लेशियर बचे हैं। अधिक स्तर पर जलवायु में परिवर्तन तथा तापमान से ऊर्जा (वायुमंडल के उपरी सतह पर ठंडा तथा ऊष्णकटिबंधीय महासागर के गर्म होने से) लेकर तूफान अधिक खतरनाक, शक्तिशाली और मजबूत बन जाते हैं। 2012 को 1885 के बाद सबसे गर्म वर्ष दर्ज किया है तथा 2003 को 2013 के साथ सबसे गर्म वर्ष के रूप में देखा गया है।

ग्लोबल वार्मिंग के फलस्वरूप वातावरण के जलवायु में, बढ़ती गर्मी का मौसम, कम होता ठंड का मौसम, बर्फ के चट्टानों का पिघलना, तापमान का बढ़ना, हवा परिसंचरण पैटर्न में बदलाव, बिन मौसम के वर्षा का होना, ओजोन परत में छेद्र, भारी तूफान की घटना, चक्रवात, सूखा, बाढ़ और इसी तरह के अनेक प्रभाव हैं।

ग्लोबल वार्मिंग का समाधान

सरकारी एजेंसियों, व्यवसाय प्रधान, निजी क्षेत्र, NGOs आदि द्वारा बहुत से कार्यक्रम, ग्लोबल वार्मिंग कम करने के लिए चलाएं तथा क्रियान्वित किए जा रहे हैं। ग्लोबल वर्मिंग के वजह से पहुचने वाले क्षति में कुछ क्षति ऐसे हैं (बर्फ की चट्टानों का पिघलना) जिसे किसी भी समाधान के माध्यम से पुनः प्राप्त नहीं किया जा सकता है। जो भी हो हमें रूकना नहीं चाहिए और सबको बेहतर प्रयास करना चाहिए ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव को कम करने के लिए। हमें ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन कम करना चाहिए तथा वातावरण में हो रहे कुछ जलवायु परिवर्तन जो वर्षों से चला आ रहा है उन्हें अपनाने की कोशिश करनी चाहिए।

ग्लोबल वार्मिंग कम करने के उपाय, हमें बिजली के स्थान पर स्वच्छ ऊर्जा जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा तथा भू-तापिय ऊर्जा द्वारा उत्पादित ऊर्जा का उपयोग करना चाहिए। कोयला, तेल के जलने के स्तर को कम करना चाहिए, परिवहन और ईलेक्ट्रिक उपकरणों का उपयोग कम चाहिए इससे ग्लोबल वार्मिंग का स्तर काफी हद तक कम होगा।

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उदारीकरण, निजीकरण एवं वैश्वीकरण की नीति (LPG सुधार की नीति)

भारत सरकार ने 1991 में नए आर्थिक सुधारों की घोषणा की थी जिसे नई आर्थिक नीति (न्यू इकोनामिक पॉलिसी) या आमतौर पर LPG सुधार के नाम से जाना जाता है | यहां “L” का तात्पर्य लिबरलाइजेशन (उदारीकरण); “P” का अर्थ प्राइवेटाइजेशन (निजीकरण) और “G” का अर्थ ग्लोबलाइजेशन (वैश्वीकरण या भूमंडलीकरण) से है | इस दिन से भारत में एक नए आर्थिक युग की शुरुआत हुई जिसका मुख्य लक्ष्य आर्थिक समृद्धि को प्राप्त करना एवं देश की अर्थव्यवस्था में बुनियादी सुधार करना था | इन व्यापक सुधारों को 3 माध्यमों से लागू किया गया : उदारीकरण , निजीकरण एवं वैश्वीकरण | ये सुधार 4 चरणों में लागू किये गये और कमोबेश आज तक जारी हैं | यह सुधार अकारण नहीं हुए, इनके पीछे एक पृष्ठभूमि या समय की एक मांग थी जिस पर हम एक दृष्टि डालते हैं | इस लेख में आर्थिक सुधारों के विभिन्न पहलुओं की विस्तृत चर्चा की गई है | अंग्रेजी माध्यम में इस लेख को पढने के लिए देखें LPG Reforms in India

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Download the e-book now, 1991 के आर्थिक सुधारों की पृष्ठभूमि.

1980 के दशक में अर्थव्यवस्था में अकुशल प्रबंधन तथा राजनैतिक उथल-पुथल के कारण 1990 के दशक में देश में आर्थिक संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई । सरकार का व्यय उसके राजस्व से इतना अधिक हो गया कि ऋण के द्वारा व्यय धारण क्षमता से कहीं अधिक हो गया । देश में मुद्रास्फीति चरम पर पहुँच गई । आयात की तीव्र वृद्धि और निर्यात में शिथिलता के कारण व्यापार घाटा अत्यधिक हो गया और सरकार भुगतान संतुलन (Balance of Payment) की समस्या से जूझ रही थी । विदेशी मुद्रा के सुरक्षित भंडार इतने कम हो गए थे कि वे देश की दो सप्ताह की आयात आवश्यकताओं को भी पूरा कर पाने में समर्थ नही थे। अंतर्राष्ट्रीय ऋण की ब्याज चुकाने के लिए भारत सरकार के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा नहीं बची थी और सरकार को सोना गिरवी रखना पड़ा । यह ऐसा समय था जब कोई देश या अतंर्राष्ट्रीय निवेशक भी भारत में निवेश नहीं करना चाहता था। ऐसी संकट की स्थिति में भी सरकार को विकास नीतियों की आवश्यकता थी क्योंकि राजस्व कम होने पर भी बेरोजगारी, गरीबी और जनसंख्या विस्फोट के कारण सरकार को अपने राजस्व से अधिक खर्च करना पड़ा। इस प्रकार देश की अर्थव्यवस्था दोहरे संकट में थी क्योंकि सरकार को प्रतिरक्षा और सामाजिक क्षेत्रों पर अपने संसाधनों का एक बड़ा अंश खर्च करना पड़ रहा था और यह स्पष्ट था कि उन क्षेत्रों से किसी शीघ्र प्रतिफल की संभावना नहीं थी। इन सब के अलावे खाड़ी युद्ध के कारण कच्चे तेल की कीमतें बहुत ज्यादा बढ़ गई थीं | ऐसी स्थिति में सरकार ने ‘विश्व बैंक’ (I.B.R.D) और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (I.M.F) जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं से मदद मांगी । इन संस्थाओं ने भारत को 7 बिलियन डॉलर का ऋण दिया , किंतु उस ऋण को पाने के लिए इन संस्थाओं ने भारत सरकार पर कुछ शर्तें लगाईं; जैसे:

  • भारत सरकार उदारीकरण की नीति अपनाएगी ,अर्थात उद्योगों को विभिन्न प्रकार की रियायतें दी जाएंगी ,
  • निजी क्षेत्र पर लगे प्रतिबंधों को हटाया जाएगा तथा अनेक क्षेत्रों में सरकारी हस्तक्षेप कम किया जाएगा,
  • भारत सरकार अपनी मुद्रा का 22% अवमूल्यन करेगी जिससे निर्यात को बढ़ावा मिले ,
  • आयात शुल्क को 130% से घटा कर 30% किया जाएगा (इस लक्ष्य को भारत ने 2000-01 में प्राप्त किया और वर्तमान में यह स्वैच्छिक रूप से 15% निर्धारित किया गया है),
  • उत्पाद शुल्क में 20% की बढ़ोतरी की जाएगी ,
  • सभी सरकारी खर्चों में 10% की कमी की जाएगी,
  • साथ ही यह भी अपेक्षा की गई कि भारत और अन्य देशों के बीच विदेशी व्यापार पर लगे प्रतिबंध भी हटाए जायेंगे और देश वैश्वीकरण की दिशा में अग्रसर होगा |

भारत ने विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की ये शर्तें मान लीं और 23 जुलाई 1991 को नई आर्थिक नीति-1991 की घोषणा की गई । तब देश के प्रधानमंत्री पी.वी.नरसिम्हा राव तथा वित्त मंत्री मनमोहन सिंह थे | इस नई आर्थिक नीति में व्यापक आर्थिक सुधारों को सम्मिलित किया गया। जिसे 2 उपसमूहों में विभाजित किया जा सकता है: स्थायित्वकारी सुधार तथा संरचनात्मक सुधार के उपाय। स्थायित्वकारी सुधार अल्पकालिक होते हैं, जिनका उद्देश्य भुगतान संतुलन में आ गई कुछ त्रुटियों को दूर करना और मुद्रास्फीति का नियंत्रण करना था। सरल शब्दों में, इसका अर्थ पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार बनाए रखने और बढ़ती हुई कीमतों पर अंकुश रखने की आवश्यकता थी। जबकि , संरचनात्मक सुधार वे दीर्घकालिक उपाय हैं जिनका उद्देश्य अर्थव्यवस्था की सर्वांगीन कुशलता है |

1.उदारीकरण (Liberalisation)

उदारीकरण का अर्थ है बाज़ार को मुक्त करना अथवा उसपर से अनावश्यक सरकारी नियन्त्रण को कम करना | एक समय ऐसा आया जब आर्थिक गतिविधियों के नियमन के लिए बनाए गए नियम-कानून ही देश की वृद्धि और विकास के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा बन गए। इस दौर को कोटा-परमिट राज के नाम से जाना जाता था जहाँ किसी भी प्रकार की व्यावसायिक गतिविधि के लिए औद्योगिक अनुज्ञप्ति (लाइसेंस) की मांग की जाती थी | यह एक जटिल ,लम्बी और उद्योग -विरुद्ध व्यवस्था थी जो केवल लाल -फीताशाही को बढ़ावा देती थी | उदारीकरण इन्हीं जटिलताओं व प्रतिबंधों को दूर कर अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों को ‘मुक्त’ करने की नीति थी। वैसे तो औद्योगिक लाइसेंस प्रणाली, आयात-निर्यात नीति, राजकोषीय और विदेशी निवेश नीतियों में उदारीकरण 1980 के दशक में ही आरंभ हो गए थे किंतु, 1991 की सुधारवादी नीतियाँ कहीं अधिक व्यापक थीं। उदारीकरण नीति के कुछ प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित है:

  • घरेलू उद्योगों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ाना तथा इस माध्यम से आर्थिक विकास को सुनिश्चित करना ;
  • नियमित आयात और निर्यात के साथ अन्य देशों के साथ विदेशी व्यापार को प्रोत्साहित करना;
  • विदेशी पूंजी और प्रौद्योगिकी को बढ़ाना;
  • देश के वैश्विक बाजार सीमाओं का विस्तार करना और देश के कर्ज के बोझ को कम करने का प्रयास करना इत्यादि |

उदारीकरण नीति के तहत कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्रों में किए गए सुधार हैं- औद्योगिक क्षेत्रक, वित्तीय क्षेत्रक, कर-सुधार, विदेशी विनिमय बाज़ार, व्यापार तथा निवेश क्षेत्र |

औद्योगिक क्षेत्र का विनियमीकरण

1991 के सुधारों से पहले देश में कोटा-परमिट राज व्यवस्था थी, जिसमें फर्म स्थापित करने, बंद करने या उत्पादन की मात्रा का निर्धारण करने के लिए किसी न किसी सरकारी अधिकारी की अनुमति प्राप्त करनी होती थी | अनेक उद्योगों को सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित रखा गया था और उनमें निजी उद्यमियों का प्रवेश ही निषिद्ध था | कुछ वस्तुओं का उत्पादन केवल लघु उद्योग ही कर सकते थे और सभी निजी उद्यमियों को कुछ औद्योगिक उत्पादों की कीमतों के निर्धारण तथा वितरण के बारे में भी अनेक नियंत्रणों का पालन करना पड़ता था। 1991 के बाद से आरंभ हुई सुधार नीतियों ने इनमें से अनेक प्रतिबंधों को समाप्त कर दिया। निम्नलिखित 6 उत्पाद श्रेणियों को छोड़ अन्य सभी उद्योगों के लिए लाइसेंसिंग व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया:-

  • जोखिम भरे रसायनो व औद्योगिक विस्फोटक,
  • इलेक्ट्रोनिकी,

अब सार्वजनिक क्षेत्रक के लिए सुरक्षित उद्योगों में भी केवल कुछ मुख्य गतिविधियाँ,जैसे परमाणु ऊर्जा उत्पादन,रक्षा क्षेत्र और रेल परिवहन इत्यादि ही बचे हैं। लघु उद्योगों द्वारा उत्पादित अधिकांश वस्तुएँ भी अब अनारक्षित श्रेणी में आ गई हैं। अनेक उद्योगों में अब कीमत निर्धारण का कार्य बाज़ार स्वयं करता है जो कि उदारीकरण का लक्ष्य है।

वित्तीय क्षेत्र के सुधार

वित्त के क्षेत्र में व्यावसायिक और निवेश बैंक, स्टॉक एक्सचेंज तथा विदेशी मुद्रा बाज़ार जैसी वित्तीय संस्थाएँ सम्मिलित हैं। भारत में वित्तीय क्षेत्र के नियमन का दायित्व भारतीय रिजर्व बैंक(RBI) का है। वित्तीय क्षेत्र की सुधार नीतियों का एक प्रमुख उद्देश्य यह भी है कि रिजर्व बैंक को इस क्षेत्र का केवल नियंत्रक न बना कर उसे इस क्षेत्र का एक सहायक बनाया जाए । इसका अर्थ है कि वित्तीय क्षेत्रक रिजर्व बैंक से सलाह किए बिना ही कई मामलों में अपने निर्णय लेने में स्वतंत्र हो जाए ।

वित्तीय क्षेत्र की सुधार नीतियों के तहत बैंकों की पूँजी में विदेशी भागीदारी की सीमा 74 प्रतिशत कर दी गई। कुछ निश्चित शर्तों को पूरा करनेवाले बैंक अब रिज़र्व बैंक की अनुमति के बिना ही नई शाखाएँ खोल सकते हैं तथा पुरानी शाखाओं के जाल को अधिक युक्तिसंगत बना सकते हैं। यद्यपि बैंकों को अब देश-विदेश से और अधिक संसाधन जुटाने की भी अनुमति है पर खाता धारकों और देश के हितों की रक्षा के उद्देश्य से कुछ नियंत्रक शक्ति अभी भी रिजर्व बैंक के पास ही हैं। विदेशी निवेश संस्थाओं (F.I.I) तथा व्यापारी बैंक, म्युचुअल फंड और पेंशन कोष आदि को भी अब भारतीय वित्तीय बाजारों में निवेश की अनुमति मिल गई है। इस प्रकार वित्तीय समावेशन(financial inclusion) को भी बढ़ावा मिला है |

कर व्यवस्था में सुधार: इन सुधारों का संबंध राजकोषीय नीतियों से है जिसके अंतर्गत सरकार की कराधान पद्धति (taxation) और सार्वजनिक व्यय नीतियां आती है । इस नीति के तहत 1991 के बाद से व्यक्तिगत आय पर लगाए गए करों की दरों में निरंतर कमी की गई है ताकि दरों को कम कर कर -चोरी से होने वाले नुकसान से बचा जा सके । यह तर्क दिया जाता है कि करों की दरें अधिक ऊँची नहीं हों, तो बचतों को बढ़ावा मिलता है और लोग अपेक्षाकृत अधिक ईमानदारी से अपनी आय का विवरण देते हैं। निगम कर की दर में भी कमी की गई ताकि कंपनियों के लिए सकारात्मक वातावरण तैयार किया जा सके ।

विदेशी विनिमय सुधार: विदेशी विनिमय क्षेत्र में सुधार के तहत 1991 में भुगतान संतुलन की समस्या के तत्कालिक निदान के लिए अन्य देशों की और मुद्रा की तुलना में रुपये का अवमूल्यन किया गया। इससे निर्यात को बढ़ावा मिला और देश में विदेशी मुद्रा के भंडार में वृद्धि हुई। इसके कारण व्यापार संतुलन साम्य भी स्थापित हुआ |

2.निजीकरण (Privatisation)

इसका तात्पर्य है, किसी सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम के स्वामित्व या प्रबंधन में निजी क्षेत्र को भागीदारी प्रदान करना । निजीकरण के निम्न तरीके होते हैं :

विनिवेश (Disinvestment) :  निजीकरण की सर्व विदित पद्धति आम जनता को सार्वजानिक उपक्रम की इक्विटी बेचना है। इसे ही विनिवेश कहते हैं तथा यह पूर्ण या आंशिक हो सकता है। अर्थात् सरकार एक उपक्रम में अपना संपूर्ण हिस्सा या इसका कुछ प्रतिशत बेच सकती है। यह भी दो माध्यम से किया जा सकता है:1.सीधी बिक्री, और 2.इक्विटी की पेशकश । किंतु इसमें चुनौती यह है कि कई बार विदेशी निवेशक बिक्री के लिए पेशकश किए गए उपक्रमों के बारे में पूरी जानकारी नहीं मिलने के कारण इस प्रक्रिया में हिस्सा नहीं ले पाते हैं । इसके अलावा यह प्रक्रिया खर्चीली और लम्बी हो सकती है क्योंकि इसमें प्रत्येक सरकारी परिसम्पत्ति को अलग-अलग बेचने के लिए तैयारी करनी पड़ती है तथा यह भी सुनिश्चित करना पड़ता है कि सभी नियमों का पालन किया गया हो ।

प्रत्यावस्थापन (रेस्टिट्यूशन): प्रत्यावस्थापन का अर्थ है सरकारी परिसंपत्तियों को उनके पूर्व निजी स्वामियों को

वापस सौंपना | यह तब किया जाता है यदि सरकार को मूल अधिग्रहण अनौचित्यपूर्ण प्रतीत होता है | यूरोपिय अर्थव्यवस्थाओं के संक्रमण में प्रत्यावस्थापन एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा रहा है।

प्रबन्धन कर्मचारियों को स्वामित्व का हस्तांतरण करना (Management Employee Buyouts ): इस पद्धति के अन्तर्गत एक उपक्रम के शेयरों को प्रबन्धकों और अन्य कर्मचारियों के समूह को बेच दिया जाता है । इस प्रक्रिया का कार्यान्वयन द्रुत एवं सरल है। दूसरा लाभ यह है कि कर्मचारी और प्रबन्धक जो उस उपक्रम के बारे में सबसे अच्छी तरह से जानते हैं वही इसके स्वामी बन जाते हैं। इससे सम्बन्धित उपक्रम के राजस्व में वृद्धि की संभावनाएं भी बढ़ जाती हैं |

सामूहिक निजीकरण (Mass Privatization) : सामूहिक निजीकरण में सरकार उपक्रमों को एक वाउचर प्रदान करती है | इन वाउचरों का उपयोग उपक्रमों के शेयरों को खरीदने में किया जा सकता है। इस पद्धति को चेक गणराज्य में काफी सफलता मिली। वाउचर निजीकरण से घरेलू पूँजी के अभाव की समस्या से निपटने में सहायता मिलती है और साथ ही साथ इसमें भ्रस्टाचार की गुंजाइश से भी बचा जा सकता है और उन आरोपों से भी बचा जा सकता है जिसमें यह कहा जाता है कि राष्ट्रीय परिसम्पत्तियाँ को औने-पौने दाम पर बेच दिया गया ।

यह अपेक्षा की गई थी कि निजी पूँजी और प्रबंधन क्षमताओं का उपयोग इन सार्वजनिक उद्यमों के निष्पादन को सुधारने में सहायक सिद्ध होगा। सरकार को यह भी आशा थी कि निजीकरण से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश(FDI) को भी बढ़ावा मिलेगा। सरकार ने सार्वजनिक उपक्रमों को प्रबंधकीय निर्णयों में स्वायत्तता प्रदान कर उनकी कार्यकुशलता को सुधारने का प्रयास किया है। उदाहरण के लिए, कुछ सार्वजनिक उपक्रमों को ‘महारत्न’, ‘नवरत्न’ और ‘लघुरत्न’ का विशेष दर्जा दिया गया है | निजीकरण के कुछ प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं :

  • सरकारी उपक्रमों की वित्तीय स्थिति को सुधारना;
  • लोक क्षेत्र की कंपनियों के कार्यभार को कम करना:
  • उत्पादकता एवं आय में वृद्धि ;
  • विनिवेश से धन बढ़ाना;
  • सरकारी संगठनों की कुशलता में वृद्धि ;
  • उपभोक्ता को बेहतर वस्तु और सेवाएं उपलब्ध कराना ;
  • एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा उत्पन्न करना, तथा
  • भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment) को प्रोत्साहित करना ।

3.वैश्वीकरण (Globalisation)

आमतौर पर वैश्वीकरण को किसी एक देश की अर्थव्यवस्था का विश्व अर्थव्यवस्था के साथ एकीकरण के रूप में देखा जाता है, किंतु वैश्वीकरण केवल एक आर्थिक घटना नहीं है | वैश्वीकरण सम्पूर्ण विश्व में व्यक्ति,वस्तुओं,सेवाओं ,मुद्रा ,तकनीक व यहाँ तक की संस्कृति का भी निर्बाध प्रवाह है । यह उन सभी नीतियों का परिणाम है, जिनका उद्देश्य है विश्व को परस्पर निर्भर और अधिक एकीकृत करना। इसके आर्थिक, सामाजिक और भौगोलिक व सांस्कृतिक पहलु होते हैं | साधारण शब्दों में यह समग्र विश्व को एक बनाने या सीमामुक्त विश्व की रचना करने का प्रयास है। यही कारण है की इसे “भू-मंडलीकरण” के नाम से भी जानते हैं | इसके निम्नलिखित आयाम हैं :

आउटसोर्सिंग : यह वैश्वीकरण की प्रक्रिया का एक विशिष्ट परिणाम है जिसकी चर्चा के बिना वैश्वीकरण की चर्चा अधूरी है । वस्तुतः प्रोद्योगिकी ही वह मुख्य कारक है जिसने वैश्वीकरण की प्रक्रिया को संभव बनाया है | आउटसोर्सिंग में कंपनियाँ किसी बाहरी संस्था (Sorce) से सेवाएँ प्राप्त करती हैं, जिन्हें पहले देश के भीतर ही प्रदान किया जाता था जैसे कि कानूनी सलाह, कंप्यूटर सेवा, विज्ञापन, सुरक्षा आदि, और इन सेवाओं को ज़रूरतमंद संस्था को बेचती हैं । संचार के माध्यमों में आई क्रांति व प्रौद्योगिकी के प्रसार ने अब इन सेवाओं को ही एक विशिष्ट आर्थिक गतिविधि का स्वरूप प्रदान कर दिया है। इसी कारण, विदेशों से इन सेवाओं को प्राप्त करने (जिसे बाह्य प्रापण कहा जाता है) की प्रवृत्ति बहुत सशक्त हो गई है। अनेक विकसित देशों की कंपनियाँ भारत की छोटी-छोटी संस्थाओं से ये सेवाएँ प्राप्त कर रही हैं। आधुनिक संचार साधनों के माध्यमों जैसे, इंटरनेट आदि इन सेवाओं से जुड़ी रचनाओं, ध्वनियों और दृश्यों की जानकारी को तुरंत दूसरे देशों तक प्रसारित कर दिया जाता है। अब तो अधिकांश बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ-साथ अनेक छोटी बड़ी कंपनियाँ भारत से ये सेवाएँ प्राप्त करने लगी हैं, क्योंकि भारत में इस तरह के कार्य बहुत कम लागत में और उचित रूप से निष्पादित हो जाते हैं। भारत की निम्न मजदूरी दरें तथा कुशल श्रम शक्ति की उपलब्धता ने सुधारोपरांत इसे विश्व स्तरीय आउटसोर्सिंग का एक गंतव्य बना दिया है।

विश्व व्यापार संगठन(WTO) की भूमिका : व्यापार और सीमा शुल्क महासंधि (GATT) की उत्तराधिकारी संस्था विश्व व्यापार संगठन (WTO) का गठन इस उद्देश्य से किया गया कि सभी देशों को विश्व व्यापार में समान अवसर सुलभ कराया जा सके | विश्व व्यापार संगठन का ध्येय ऐसी नियम आधारित व्यवस्था की स्थापना है, जिसमें कोई देश अपने व्यापारिक हितों को साधने के लिए मनमाने ढंग से व्यापार के मार्ग में बाधाएँ खड़ी नहीं कर पाए। ऐसा करने से केवल व्यापार विकसित देशों के पक्ष में चला जाता है और अविकसित देशों को नुकसान होता है | साथ ही, इसका ध्येय सेवाओं के सृजन और व्यापार को प्रोत्साहन देना भी है, ताकि विश्व के संसाधनों का अनुकूलतम प्रयोग हो सके । विश्व व्यापार संगठन की संधियों में द्विपक्षीय और बहुपक्षीय व्यापार को बढ़ाने हेतु इसमें वस्तुओं के साथ-साथ सेवाओं के विनिमय को भी स्थान दिया गया है। ऐसा सभी सदस्य देशों के प्रशुल्क और अप्रशुल्क अवरोधकों को हटाकर तथा अपने बाज़ारों को सदस्य देशों के लिए खोलकर किया गया है। विश्व व्यापार संगठन के एक महत्वपूर्ण सदस्य के रूप में भारत विकासशील विश्व के हितों का संरक्षण करते हुए न्यायपूर्ण विश्वस्तरीय व्यापार व्यवस्था के नियमों तथा सुरक्षात्मक व्यवस्थाओं की रचना में सक्रिय भागीदार रहा है। भारत ने व्यापार के उदारीकरण की अपनी प्रतिबद्धता को बनाए रखा है। इसके लिए इसने आयात पर से अनेक परिमाणात्मक प्रतिबंध हटाए हैं और प्रशुल्क दरों को भी बहुत कम किया है।

कुछ जानकारों का मानना है कि विश्व व्यापार संगठन में भारत की सदस्यता का कोई औचित्य नहीं है, क्योंकि विश्व व्यापार का अधिकांश भाग तो विकसित देशों के बीच ही होता है। उनका यह भी मानना है कि विकसित देश अपने देशों में जहाँ कृषि सहायिकी दिये जाने को लेकर शिकायत करते हैं, वहीं विकासशील देश अपने बाज़ारों को विकसित देशों के लिए खोले जाने को मजबूर करने को लेकर छला हुआ महसूस करते हैं (WTO के 3 अनुदान वर्गों जिन्हें Blue, Green व Amber box कहा जाता है, से जुड़े विवाद हमेशा चर्चा में रहते हैं )। वे देश विकासशील देशों को अपने बाज़ारों में किसी न किसी बहाने प्रवेश करने से रोकने का प्रयास भी करते हैं और उनकी कोशिश हेमशा यही रहती है की व्यापार को अपने पक्ष में रखा जाए | इस तर्क का आधार यह है कि वैश्वीकरण असमानता को जन्म देता है |

वैश्वीकरण से सम्बद्ध समस्याएँ

वैश्वीकरण को ले कर एक चिंता यह जाहिर की जाती है कि वैश्वीकरण के कारण राज्य(सरकार) की क्षमता में कमी आती है।वैश्वीकरण के कारण पूरी दुनिया में कल्याणकारी राज्य की धारणा अब पुरानी पड़ गई है और इसकी जगह न्यूनतम हस्तक्षेपकारी राज्य(Minimalist state) ने ले ली है। राज्य अब कुछेक मुख्य कामों तक ही अपने को सीमित रखता है, जैसे कानून और व्यवस्था को बनाये रखना तथा अपने नागरिकों की सुरक्षा करना । इस तरह , राज्य ने अपने को पहले के कई ऐसे लोक-कल्याणकारी कार्यों से दूर कर लिया है जिनका लक्ष्य आर्थिक और सामाजिक-कल्याण होता था। लोक कल्याणकारी राज्य की जगह अब “बाज़ार” आर्थिक और सामाजिक प्राथमिकताओं का प्रमुख निर्धारक है और भविष्य में बाज़ार ही सब कुछ तय करेगा |

लेकिन हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि वैश्वीकरण से हमेशा राज्य की ताकत में कमी नहीं आती | वैश्वीकरण की अवधारणा के बाद भी राजनीतिक समुदाय के आधार के रूप में राज्य की प्रधानता को कोई चुनौती नहीं मिली है और राज्य इस अर्थ में आज भी प्रमुख है। विश्व की राजनीति में अब भी विभिन्न देशों के बीच मौजूद पुरानी ईर्ष्या और प्रतिद्वंद्विता है जो इनके एकीकरण में बाधक है । कुल मिलकर , राज्य अभी भी महत्वपूर्ण बने हुए हैं। बल्कि एक तर्क तो यह भी दिया जाता है कि कुछ मामलों में वैश्वीकरण के फलस्वरूप राज्य की ताकत में इजाफा हुआ है। अब राज्यों के हाथ में अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी मौजूद है जिसके बल पर वे ज्यादा कारगर ढंग से काम कर सकते हैं और उनकी क्षमता बढ़ी है । ई-गवर्नेंस और सुशासन को इसी सन्दर्भ में देखा जा सकता है,जो की इन वैश्विक तकनीकों के कारण ही सम्भव हो सके है |

वैश्वीकरण की आलोचना इसलिए भी की जाती है कि इसे राज्य की संप्रभुता, लोकतंत्र और अधिकांश विकासशील देशों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए गंभीर खतरा माना जाता है। अंतराष्ट्रीय संगठन जैसे विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) तथा संयुक्त राज्य अमेरिका,यूरोप इत्यादि जैसी महाशक्तियां , निर्णयों को अपनाने के लिए दबाव डाल सकते है। इस बिंदु पर , जब 1991 में भारत में उदारीकरण ,निजीकरण एवं वैश्वीकरण की नीति अपनाई गई थी तब विपक्षी पार्टियों,विशेष कर वाम दलों ने सरकार का विरोध किया था |

वैश्वीकरण को पारिस्थितिक प्रणाली के लिए खतरे के रूप में भी देखा जाने लगा है। अधिकांश विकासशील और विकसित राष्ट्र प्राकृतिक पर्यावरण के संरक्षण के लिए बहुत कम ध्यान देते हैं। हाल के दशकों में वैश्विक तापन (ग्लोबल वार्मिंग) की दर बहुत अधिक रहीं है। इसके परिणामस्वरूप, महासागरों के औसत तापमान में वृद्धि हुई हैं, ग्लेशियरों (Glaciers) में गिरावट आई है ,हिमपात अधिक हुए है और इस प्रकार जलवायु परिवर्तन तीव्र हुआ है । पिछले 50 वर्षों में वातावरण में कार्बन डाइऑक्साउड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड इत्यादि हरित गृह गैसों (Green House Gases) का सांद्रण भी तीव्र गति से बढ़ा है । इन सब के पीछे कहीं न कहीं आर्थिक विकास को दोष दिया जाता है |

आर्थिक सुधारों की समीक्षा

1991 के आर्थिक सुधारों के सकारात्मक पहलुओं की यदि बात की जाए तो निश्चित रूप से आर्थिक विकास प्राप्त करना आर्थिक इस का एक प्रमुख उद्देश्य था,और इसमें यह काफी हद तक सफल भी रहा है । आर्थिक संवृद्धि प्राप्त करने के लिए राष्ट्रीय आय और प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि तथा कृषि और औद्योगिक क्षेत्रकों के उत्पादन में भी वृद्धि को प्राप्त करना आवश्यक है। सकल घरेलू उत्‍पाद (G.D.P) की औसत वृद्धि दर (फैक्‍टर लागत पर) जो 1951–91 के दौरान 4.34 प्रति‍शत थी, 1991-2011 के दौरान 6.24 प्रति‍शत के दर से बढ़ी । वहीं 2015 में भारतीय अर्थव्यवस्था 2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के स्तर से भी आगे निकल गयी। 1950 से 1980 के तीन दशकों में सकल राष्ट्रीय उत्पाद (G.N.P) की विकास दर केवल 1.49 प्रतिशत थी। 1980 के दशक में प्रारम्भिक आर्थिक उदारवाद ने प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय उत्पाद की विकास दर को बढ़ाकर प्रतिवर्ष 2.89 प्रतिशत कर दिया। जबकि 1991 के आर्थिक सुधारों के बाद प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय उत्पाद की दर बढ़कर 4.19 प्रतिशत तक पहुंच गई। 2001 में यह 6.78 प्रतिशत तक पहुंच गई। इसी प्रकार, प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हुई है | उदाहरण के लिए, नियोजन के प्रथम 30 वर्षों की अवधि में प्रति व्यक्ति आय में 1.2 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से वृद्धि हुई। हालिया समय में, यह वृद्धि दर कुछ तीव्र हुई है। कृषि में, खाद्यान्नों का उत्पादन प्रथम योजना के आरंभ में 5.1 करोड़ टन से बढ़कर 2011-12 में 25.74 करोड़ टन हो गया है। विशेष रूप से चावल और गेहूं का उत्पादन आशातीत रहा है | सुधारों के दौरान औद्योगिक विकास के संदर्भ में एक प्रमुख उपलब्धि उद्योगों की विविधता रही है। परिवहन् तथा दूरसंचार का विस्तार हुआ है, विजली के उत्पादन और वितरण में वृद्धि तथा इस्पात, एल्यूमीनियम, इंजीनियरिंग माल, रसायन और पैट्रोलियम उत्पादों में यथेष्ठ उन्नति हुई है। नियोजन की अवधि में उपभोक्ता वस्तुओं तथा अन्य आवश्यक वस्तुओं की प्रति व्यक्ति उपलब्धता में भी यथेष्ट वृद्धि हुई है। इसके अलावा , नियोजन के कारण दुनिया भर से नई तकनीकें देश में आई ,वैश्विक सामीप्य (connectivity) में बढ़ोतरी हुई और वैश्विक प्रतिस्पर्धा के कारण आज दुनिया भर के उत्पाद अच्छी गुणवत्ता व कम कीमत पर उपलब्ध हैं | आधारभूत अवसंरचना का सृजन हुआ जिसके कारण शिक्षा -स्वस्थ्य में सुधार,विज्ञान -प्रोद्योगिकी का विकास,एवं व्यापार में विकास हुआ |

किंतु आर्थिक सुधारों की समीक्षा करते समय हमें इसके नकारात्मक पक्ष को भी नहीं भूलना चाहिए | आलोचक मानते हैं कि वैश्वीकरण के कारण संस्कृति ह्रास, पश्चिमीकरण, जीवन शैली में परिवर्तन एवं उपभोक्तावाद की एक संस्कृति विकसित हुई जिसमे आज इनसान वस्तु से अधिक कुछ नहीं रह गया और पूरी दुनिया केवल एक बाज़ार बन के रह गई है | गरीबी,बेरोजगारी,भ्रस्टाचार जैसी समस्याओं को दूर करने में ये सुधार असफल रहे हैं |

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Opportunities and Challenges of Green Hydrogen in India

  Syllabus: Energy sector

  Context: India is making strides in embracing green hydrogen as a promising alternative fuel, evident from the Ministry of New and Renewable Energy’s Rs 496 crore scheme supporting pilot projects .

Definition of Green Hydrogen :

Green hydrogen is produced through a process called electrolysis , where water is split into hydrogen and oxygen using renewable energy sources such as solar or wind power.

In August 2023, the Union Ministry of New & Renewable Energy, Government of India, provided a definition for green hydrogen , specifying it as having a well-to-gate emission (encompassing water treatment, electrolysis, gas purification, drying and compression of hydrogen)  not exceeding 2 kg CO2 equivalent per kg H2 . In contrast, grey hydrogen (produced using fossil fuels), on average, emits 10 kg of CO2 per kg of H2 produced .

globalisation essay in hindi

Nodal Agency: The Bureau of Energy Efficiency (BEE) (under the Union Ministry of Power) is the nodal authority responsible for accrediting agencies for monitoring, verifying and certifying green hydrogen production projects.

Initiatives for Green Hydrogen:

  • Oil India Limited (OIL) recently commissioned  India’s first 99% pure green hydrogen plant in eastern Assam’s Jorhat
  • NTPC (in Kawas, Surat)has started India’s 1st Green Hydrogen Blending operation in the Piped Natural gas (PNG) Network.
  • The Petroleum and Natural Gas Regulatory Board (PNGRB) has given approval for a 5% blending of green hydrogen with PNG (later to be scaled to 20%)
  • Pune Municipal Corporation (PMC) has collaborated with business management consultant
  • The Green Billions (TGBL) to manage its waste and generate it into useable green hydrogen (under the waste-to-hydrogen project)
  • Strategic Clean Energy Partnership (SCEP )to mobilise finance and speed up green energy development
  • The Union Minister of Petroleum & Natural Gas launched India’s inaugural Green Hydrogen Fuel Cell Bus in New Delhi in September 2023.

Significance of Green Hydrogen energy:

  • Emission reduction: IEA (International Energy Agency) points out, that the method of obtaining green hydrogen would save the 830 million tonnes of CO2 that are emitted annually when Hydrogen is produced using fossil fuels.
  • Viable alternative: With green hydrogen, if the production costs fall by 50 % by 2030 , it could certainly evolve as one of the fuels of the future. Also, hydrogen is easy to store , which allows it to be used subsequently for other purposes and at times other than immediately after its production.
  • Energy Security and Independence : As fossil fuels are finite and susceptible to global supply fluctuations, green hydrogen fosters energy independence.
  • Creating New Industries and Jobs : According to IRENA, the green sector employed 11 million people in 2018, with projections of over 42 million jobs by 2050.
  • Decarbonizing Difficult-to-Decarbonize Sectors : Sectors like heavy industry and aviation, hard to decarbonize, can benefit from green hydrogen substitution. This helps mitigate their significant carbon emissions.

Applications of Green Hydrogen:

Challenges in  Green Hydrogen  Production:

Government Initiatives for Bio and Green Hydrogen:

The Ministry of New and Renewable Energy (MNRE) (In collaboration with the Ministry of Road Transport & Highways) in India has launched a new pilot project for the production of Green Hydrogen with the following components:

  • Funding Allocation : Rs 496 crore allocated until 2025-26.
  • Pilot Project Support : Focus on testing green hydrogen as a vehicle fuel.
  • Infrastructure Development : Establishment of hydrogen refuelling stations.
  • Project Execution : Selected company or consortium as executing agency.
  • Viability Gap Funding (VGF): Approval by MNRE based on project appraisal.
  • Timeframe : Completion of pilot projects within two years.

To learn about Bio-hydrogen Click here

Way forward:

  • Reduce Production Cost: Develop efficient technologies for electrolysis. Integrate green hydrogen production with renewable energy.
  • Implement Regulatory Incentives : Offer tax credits and subsidies to promote adoption.
  • Improve Infrastructure: Establish dedicated infrastructure and supply chains. Develop efficient and cost-effective supply chains.
  • Coordinate Among Stakeholders: Ensure alignment of policies, standards, and regulations.
  • Raise Awareness and Capacity: Educate potential users and producers about benefits. Demonstrate safety and feasibility in various sectors.
  • Develop skills and competencies for production and utilization.

Insta Links:

India’s green hydrogen challenge

Mains Links:

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वैश्वीकरण पर निबंध (Globalization Essay In Hindi)

वैश्वीकरण पर निबंध (Globalization Essay In Hindi Language)

आज   हम वैश्वीकरण पर निबंध (Essay On Globalization In Hindi) लिखेंगे। वैश्वीकरण पर लिखा यह निबंध बच्चो (kids) और class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए लिखा गया है।

वैश्वीकरण पर लिखा हुआ यह निबंध (Essay On Globalization In Hindi) आप अपने स्कूल या फिर कॉलेज प्रोजेक्ट के लिए इस्तेमाल कर सकते है। आपको हमारे इस वेबसाइट पर और भी कही विषयो पर हिंदी में निबंध मिलेंगे , जिन्हे आप पढ़ सकते है।

वैश्वीकरण या ग्लोबलाइजेशन का अर्थ होता है, किसी व्यापार को पूरी दुनिया तक फैलाना। लेकिन पिछले कुछ दशकों में वैश्वीकरण या ग्लोबलाइजेशन का अर्थ केवल इतना ही नहीं रह गया है। अब वैश्वीकरण या ग्लोबलाइजेशन अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं के बीच उत्पादों, व्यापार, तकनीकी, दर्शन, व्यवसाय, कारोबार, कम्पनी आदि के उपर भी लागू होता है।

वैश्वीकरण या ग्लोबलाइजेशन एक बहुत ही अहम प्रक्रिया है। यह पूरी दुनिया को जोड़ती है। इससे आर्थिक मजबूती देखने को मिलती है। यह देश दुनिया के बाजारों का एक सफल आंतरिक संपर्क का निर्माण करता है।

आज के समय में हम मैकडॉनल्ड (McDonalds) से काफी भलीभांति परिचित होंगे। यह एक वैश्वीकरण या ग्लोबलाइजेशन का ही उदाहरण है। आज के समय में मैकडॉनल्ड्स पूरे विश्व भर में प्रसिद्ध है और कई देशों में मैकडॉनल्स अपना व्यापार करता है।

पिछले दशकों में पूरी दुनिया में बहुत तेजी से ग्लोबलाइजेशन या वैश्वीकरण हुआ है। पूरे विश्व भर में आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक पारस्परिकता में तकनीकी, दूर संचार, यातायात आदि के क्षेत्र में काफी तेजी से वृद्धि होना, ग्लोबलाइजेशन या वैश्वीकरण का ही परिणाम है।

ग्लोबलाइजेशन या वैश्वीकरण के प्रभाव

पिछले कुछ दर्शकों ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार को बिल्कुल नई दिशा दे दी है। ग्लोबलाइजेशन या वैश्वीकरण ने न केवल अंतरराष्ट्रीय बाजार बल्कि राष्ट्रीय बाजार को भी सकारात्मक रूप से प्रभावित किया है। हालांकि हमें कई रूप में ग्लोबलाइजेशन या वैश्वीकरण प्रकृति के लिए लाभदयक साबित नहीं हुआ। जिसके नकारात्मक परिणाम हमें भुगतने पड़ रहे हैं।

हमने पिछले कुछ वर्षों में इस बात पर गौर किया कि, हमारे बीच ऑनलाइन शॉपिंग का चलन बढ़ गया है। अब हम देश विदेश से अपने लिए किसी भी चीज को आसानी से मंगवा सकते हैं।

यह वैश्वीकरण का ही प्रतीक है। पहले ऐसा करने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती थी। अक्सर अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं का व्यापार केवल प्रधानमंत्री तथा मंत्रियों का कार्य माना जाता था। लेकिन अब अंतरराष्ट्रीय व्यापार के क्षेत्र में काफी छूट मिल गई है। यही कारण है कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार में तेजी से वृद्धि हो रही है।

हालांकि ग्लोबलाइजेशन और वैश्वीकरण की प्रक्रिया में प्रकृति को काफी नुकसान हुआ है। इन नुकसान की भरपाई करने के लिए अंतरराष्ट्रीय कंपनियां पर्यावरण के प्रति कई बड़े कदम उठा रही हैं और बड़े स्तर पर पर्यावरण जागरूकता फैलाने की कोशिश की जा रही है।

वैश्वीकरण या ग्लोबलाइजेशन के कारण ही विकसित देशों की कंपनियां अपना व्यापार पूरी दुनिया में फैलाने में सफल हुई है। वैश्वीकरण के कारण कई देशों की आर्थिक स्थिति मजबूत हुई है।

सभी लोग ज्यादा से ज्यादा मात्रा में उत्पादक होने की कोशिश करते हैं। यह हमें एक प्रतियोगी संसार की ओर ले जा रहा है। यह एक ऐसे बाजार का निर्माण करता है, जहां पर बहुत ज्यादा प्रतियोगिता होती है और ग्राहक का ध्यान सबसे पहले रखा जाता है।

ग्लोबलाइजेशन या वैश्वीकरण के फायदे

वैश्वीकरण के कारण हमें काफी सारी सेवाओं का लाभ हुआ है। इसका सबसे बड़ा उदाहण शिक्षा क्षेत्र में भी देखा जा सकता है। वैश्वीकरण या ग्लोबलाइजेशन के कारण ही भारतीय छात्र इंटरनेट से परिचित हुए। इंटरनेट के कारण भारत में एक नई क्रांति आई है।

इंटरनेट के माध्यम से ही भारतीय छात्र अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय से जुड़ने में सफलता प्राप्त कर रहे हैं। इससे भारतीय छात्रों को बहुत लाभ हुआ है। इतना ही नहीं वैश्वीकरण या ग्लोबलाइजेशन के चलते हमें स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी वृद्धि देखने को मिलती है।

वैश्वीकरण में ग्लोबलाइजेशन के चलते ही हमें कई मशीनें अपने देश में उपलब्ध कराई जाती हैं। स्वास्थ्य को नियमित करने वाली विद्युत मशीन आदि वैश्वीकरण या ग्लोबलाइजेशन के कारण हम तक पहुंचाई जाती हैं।

यह तो हम सभी जानते हैं कि हमारा देश कृषि प्रधान देश है। वैश्वीकरण और ग्लोबलाइजेशन ने कृषि क्षेत्र में भी अपनी अहम भूमिका निभाई है। ग्लोबलाइजेशन के कारण कृषि क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के बीजों की किस्मों को लाकर, उत्पादन बड़े स्तर पर प्रभावित हुआ है। इसी प्रकार से रोजगार के क्षेत्र में भी वैश्वीकरण और ग्लोबलाइजेशन ने अपनी अहम भूमिका निभाई है।

वैश्वीकरण या ग्लोबलाइजेशन का पर्यावरण पर प्रभाव

किसी सिक्के के दो पहलू की तरह वैश्वीकरण या ग्लोबलाइजेशन के भी दो प्रभाव हमें देखने को मिलते हैं। एक है इसका सकारात्मक प्रभाव और दूसरा है इसका नकारात्मक प्रभाव। वैश्वीकरण या ग्लोबलाइजेशन की सकारात्मकता को हम कई क्षेत्रों में महसूस कर सकते हैं।

लेकिन यह बात किसी से छुपी नहीं है कि वैश्वीकरण या ग्लोबलाइजेशन ने पर्यावरण को बुरी तरह से प्रभावित किया है। राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय कंपनियां अपना अंतरिक मुनाफा बढ़ाने के लिए पर्यावरण को हानि पहुंचाते जा रही हैं। दुनिया भर में प्रदूषण कंट्रोल में नहीं है। विश्व भर की कई औद्योगिक राजधानियां प्रदूषण की समस्या का सामना कर रही हैं।

प्रदूषण के कारण होने वाली बीमारियों में भी इजाफा देखा गया है। छोटे-छोटे बच्चे भी आम प्रदूषण के कारण होने वाली बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। विश्व भर के सामान्य तापमान में भी वृद्धि आई है। धरती का तापमान लगातार गर्म होता जा रहा है।

हवा के साथ साथ पानी भी प्रदूषित होता जा रहा है। हालांकि कई वैश्विक कंपनियों ने इसके दुष्प्रभाव को कम करने की पूरी कोशिश की है। कंपनियां इसके नकारात्मक प्रभाव से निपटने के लिए अलग-अलग तरह के प्रयास कर रही हैं। कंपनियों को हरियाली सुरक्षित रखने का प्रयास करना चाहिए और ऐसी तकनीक का इस्तेमाल करना चाहिए, जिससे कि पर्यावरण को कुछ नुकसान ना हो।

यह बिल्कुल सच है कि वैश्वीकरण या ग्लोबलाइजेशन के कारण है हम एक नई किस्म की दुनिया से अवगत हुए हैं। आज के समय में सब कुछ काफी आसान हो गया है। दुनिया में हर चीज आज हमारे पास मौजूद होती है। यह सब वैश्वीकरण या ग्लोबलाइजेशन के बदौलत ही संभव हो पाया है।

वैश्वीकरण या ग्लोबलाइजेशन कई मायनों में हमारे लिए लाभदायक साबित हुआ है। लेकिन इसके दुष्प्रभावों को अनदेखा नहीं किया जा सकता। हमें कोशिश करनी चाहिए कि हम इसके दुष्प्रभावों को कम कर सके।

बड़े स्तर पर पर्यावरण के प्रति जागरूक करने वाले कार्यक्रम समय-समय पर आयोजित किए जाते रहते हैं। लेकिन तब भी किसी ऐसी तकनीक को विकसित करने की जरूरत है, जिससे कि वैश्वीकरण और पर्यावरण दोनों ही सुरक्षित रहे।

इन्हे भी पढ़े :-

  • मेक इन इंडिया पर निबंध (Make In India Essay In Hindi)

तो यह था वैश्वीकरण पर निबंध , आशा करता हूं कि वैश्वीकरण पर हिंदी में लिखा निबंध (Hindi Essay On Globalization) आपको पसंद आया होगा। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा है , तो इस लेख को सभी के साथ शेयर करे।

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Is India Really the Next China?

The case for its economic ascent is strong, but government policies still stand in the way..

This article appears in the Spring 2024 print issue of FP. Read more from the issue.

This article appears in the Spring 2024 issue of Foreign Policy. Subscribe now to read every story from the issue.

Will India be the next China? As China’s economy spirals downward and optimism about India’s growth reverberates around the world, that question can no longer be dismissed as the fevered fantasy of nationalists. It needs to be taken seriously—not least because the world is already behaving as if India is a major power.

Consider this: In 2023, suspicion swirled that the Indian government was connected to the killing of a Canadian citizen on Canadian soil and a plot to kill a U.S. citizen on U.S. soil—a remarkable set of allegations. Yet even more remarkable than the allegations were the reactions. The U.S. government opted to douse the potentially incendiary fallout, saying little, merely allowing the case to wend its way through the courts. In other words, Indian hubris was accommodated, not chastised. It was a testament to India’s newfound political standing.

As for the economy, it is true that the Chinese experience of the last 40 years was a very specific type of miracle that is unlikely to be replicated. Even so, there is a case for India because it is no longer the economically constrained giant that it once was.

For the past quarter century, India’s development was hobbled by its infrastructure, inadequate to the nation’s own manufacturing needs and patently insufficient for foreign firms considering India as an export base. Over the last decade, however, its infrastructure has been transformed. The government of Prime Minister Narendra Modi has built roads, ports, airports, railways, power, and telecommunications, in such quantities that it has rendered the country almost unrecognizable from what it was just a few years ago. To give just one example, around 34,000 miles of national highways have been built since the current government came to power in 2014.

The nation’s digital infrastructure has also been transformed. Once creaky and technologically backward, it is now cutting-edge, with ordinary Indians using smartphones to pay for even the most routine shopping transactions. Even more crucially, the digital network now serves all Indians, allowing the government to introduce programs such as direct cash transfers to those in need, while the private sector has used it as a platform for entrepreneurship and innovation.

At the same time, the Modi government’s “New Welfarism” has enhanced Indians’ quality of life. This distinctive approach prioritizes the public delivery of essentially private goods and services, providing voters with clean fuel, sanitation, power, housing, water, and bank accounts while making clear to them that the benefactor is the prime minister. As a result of these programs, the state is now able to cushion the vulnerable with employment and free food during times of hardship like the COVID-19 pandemic. The capacity of the Indian state to build and deliver better—and at scale—has been remarkable.

Join FP Live for a discussion about the magazine’s India issue on Tuesday, April 16, at 11 a.m. EDT. Subscriber questions are encouraged. Register here .

These are major policy achievements, the fruit of cumulative and national efforts. Many of these initiatives were, in fact, started by previous central and state governments, though the Modi government deserves important credit for their accelerating progress. And there are signs that they are producing results.

To begin with, India has received a major new impetus to its skill-based service exports. India’s services first boomed in the early 2000s but plateaued after the 2008-09 global financial crisis. Now, they have seen a rebirth. In 2022, India’s global market share increased by 1.1 percentage point (about $40 billion), reflecting an important jump up the skills ladder. (In 2023, India likely gained further global market share but at a less torrid pace.)

Indians who used to write cheap code and man call centers are now running global capability centers, with high-skilled personnel performing analytical tasks for top global companies. JPMorgan Chase alone has more than 50,000 workers in India; Goldman Sachs’s largest office outside New York is in Bengaluru. Accenture and Amazon, among many others, also have large presences. This boom, in turn, has ignited the construction of high-rise apartments, which along with cranes are now dotting the skylines of the tech cities of Ahmedabad, Bengaluru, Hyderabad, Mumbai, and Pune. Sales of SUVs are soaring, and luxury malls and high-end restaurants are sprouting—all helped along by a boom in personal credit.

Next, there are signs that Uttar Pradesh, India’s most populous state and one of its least developed, is witnessing a revival. The state is refurbishing its decrepit infrastructure (not to mention its many temples), getting its finances under control, and reducing corruption and violence under its charismatic, sectarian leader, a vigilante Hindu monk-turned-politician. If the state can finally become an attractive investment destination, it has the potential to change the trajectory of the entire nation by dint of its sheer demographic heft. Its transformation would send the signal that India’s Hindi heartland—until recently pejoratively referred to as a bimaru , or diseased region—is not condemned to perpetual underdevelopment.

Finally, the downward spiral of the Chinese economy under President Xi Jinping has accelerated. As a result, capital is exiting that country at an alarming pace, with a net $69 billion in corporate and household funds leaving in 2023, according to official figures.

There are indications that a small share of this capital is finding its way to India. Most prominently, Apple has set up plants in a number of Indian states so that it can more readily supply the domestic market and diversify its export base, especially now that economic tensions between the United States and China are rising. And this, in turn, is helping to build a chain of domestic electronics suppliers, some of which are planning to set up large factories, especially in India’s south, employing more than 20,000 workers. This is an astonishing phenomenon in a country that has always been characterized by subscale, inefficient manufacturing firms.

If these large-scale plants prove viable, then they could spark a surge in goods exports, which would truly change prospects—not just for India’s long-beleaguered manufacturing sector but also for low-skilled workers who have not been able to enjoy the high-skill export service boom. The math is worth reflecting on. India’s low-skill exports will never reach Chinese levels of competitiveness, reflected in global market shares in excess of 40 percent. That’s because the unique set of political and economic circumstances that encouraged the advanced world to shift much of its industrial base to just one country no longer exists. But over the coming decade, it is perfectly feasible for India to increase its current share of around 3 percent by 5-10 percentage points, which would represent hundreds of billions of dollars of additional exports.

Despite the favorable portents, any declaration of India displacing China is premature. That’s because the encouraging signs are not yet convincingly reflected in the economic data, while government policies remain inadequate to realizing the new opportunities.

Consider the economic data. For some time, we have been skeptical of claims that India has really been able to put aside the lost decade of the 2010s, a period that saw modest growth, little structural transformation, and weak job creation. True, the economy has recovered post-COVID but in an unequal manner, favoring capital over labor, big firms over small, and the salaried middle class and the rich over the millions of people employed in the informal economy.

Part of the problem has been that India has so far managed to capitalize on only a small portion of the new opportunities created by the relative economic decline of China. Despite the government’s determined campaign to “Make in India,” it has not so far succeeded in convincing many firms to expand their Indian operations. In fact, inflows of foreign direct investment (FDI) have actually been declining. India also accounts for a smaller share of FDI flows to emerging markets excluding China.

This is not just a case of skittish foreigners. Even domestic firms have been reluctant to invest, notwithstanding the improved infrastructure that the government has created, the subsidies that it has offered, and, in some cases, the protectionism that it has lavished on the manufacturing sector. Private investment in plants and machinery has still not rebounded from the depressed levels of the last decade. And there are no convincing signs that this situation is about to turn around. In fact, new project announcements actually fell in nominal terms in 2023 compared with the previous year’s level.

Consequently, India’s manufacturing exports—the source of job creation for its vast pools of unskilled labor—remain weak. In fact, India’s global market share in key sectors such as apparel has declined since the global financial crisis. All this has been a major concern for Modi’s government and even the central bank, which recently issued a report urging the private sector to “get its act together” and relieve the government of the burden of investment.

Why have firms been so reluctant to seize the opportunities that lie so manifestly in front of them? Essentially, because they perceive that the risks of doing so are too high.

Firms’ concerns lie in three main areas. First, they are worried that the “ software ” of policymaking remains weak. The playing field is not level, as a few large domestic conglomerates and some large foreign companies are seen as favored firms, to the detriment of the broader investment climate. After all, for every favored firm that undertakes investments because its risks have been reduced, there are many competitors that have reduced their spending because their risks have increased. For them, the risks of being victims of arbitrary state action remain substantial.

Second, even as the government recognizes the need to boost exports, it remains viscerally attached to inwardness—that is to say, import barriers. This protectionism has a new allure because many people believe that India’s domestic market is now so large and its domestic firms so advanced that they can easily replace foreign firms, as long as they are given a boost from the government. Unsurprisingly so—economic nationalism inevitably accompanies political nationalism.

But the reality is that India’s domestic market is not particularly large, at least for the middle-class goods that global firms are trying to sell. And frequent announcements of protectionist measures actually undercut domestic investment, as firms become risk-averse, anticipating that they might sooner or later be cut off from critical foreign supplies. For example, the announcement last August that imports of laptops would be restricted sparked panic among firms in the important IT sector. In the end, the restrictions were watered down, but the fears still linger, especially as similar measures have been implemented in other sectors.

Above all looms the question of the wedge between politics and economics. Investment and growth can survive, even thrive, in the face of institutional decay as long as the political regime remains stable. And Modi’s popularity seems to portend stability. But rising disaffection and restiveness among minority communities, the southern states, the political opposition, and the farmers of northern India increase the likelihood of accidents. As the economist John Maynard Keynes famously remarked, the inevitable never happens. It is the unexpected, always.

We can glimpse hope in India’s present yet remain anxious about the future.

Josh Felman is the principal at JH Consulting and a former head of the International Monetary Fund’s India office.

Arvind Subramanian is a senior fellow at the Peterson Institute for International Economics and former chief economic advisor to the Modi government.

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Strong Taiwan Quake Kills 9, Injures Hundreds

The earthquake was the most powerful to hit the island in 25 years. Dozens of people remained trapped, and many buildings were damaged, with the worst centered in the city of Hualien.

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  • Hualien, Taiwan A landslide after the quake. Lam Yik Fei for The New York Times
  • New Taipei City, Taiwan Books flew off shelves as a home shook. @Abalamindo via Storyful
  • Taipei, Taiwan Passengers waiting at a train station as some services were suspended. Chiang Ying-Ying/Associated Press
  • Hualien, Taiwan People are rescued from a building that had partially collapsed. TVBS via Associated Press
  • Hualien, Taiwan Firefighters rescuing trapped residents from a building. CTI News via Reuters
  • Taipei, Taiwan Students evacuated to a school courtyard after the earthquake. Lam Yik Fei for The New York Times
  • Guishan Island, Taiwan Rocks tumbling down one side of an island popular for hiking. Lavine Lin via Reuters
  • Hualien, Taiwan A building leaned to one side after the quake. Randy Yang via Associated Press
  • Ishigaki, Okinawa, Japan Watching news on a rooftop of a hotel after a tsunami warning. Chang W. Lee/The New York Times
  • Hualien, Taiwan Motorbikes damaged in the quake. TVBS via Associated Press
  • New Taipei City, Taiwan Damage in an apartment Fabian Hamacher/Reuters
  • New Taipei City, Taiwan Water cascading down a building during the quake. Wang via Reuters

Meaghan Tobin

Meaghan Tobin and Victoria Kim

Here’s what you need to know about the earthquake.

Taiwan was rocked Wednesday morning by the island’s strongest earthquake in a quarter century, a magnitude 7.4 tremor that killed at least nine people, injured more than 800 others and trapped dozens of people.

The heaviest damage was in Hualien County on the island’s east coast, a sleepy, scenic area prone to earthquakes. Footage from the aftermath showed a 10-story building there partially collapsed and leaning heavily to one side, from which residents emerged through windows and climbed down ladders, assisted by rescuers. Three hikers were killed after being hit by falling rocks on a hiking trail in Taroko National Park, according to the county government.

By late afternoon, officials said rescue efforts were underway to try to rescue 127 people who were trapped, many of them on hiking trails in Hualien.

One building in Changhua County, on the island’s west coast, collapsed entirely. The quake was felt throughout Taiwan and set off at least nine landslides, sending rocks tumbling onto Suhua Highway in Hualien, according to local media reports. Rail services were halted at one point across the island.

The earthquake, with an epicenter off Taiwan’s east coast, struck during the morning commute, shortly before 8 a.m. Taiwanese authorities said by 3 p.m., more than 100 aftershocks, many of them stronger than magnitude 5, had rumbled through the area.

In the capital, Taipei, buildings shook for over a minute from the initial quake. Taiwan is at the intersection of the Philippine Sea tectonic plate and the Eurasian plate, making it vulnerable to seismic activity. Hualien sits on multiple active faults, and 17 people died in a quake there in 2018.

Here is the latest:

The earthquake hit Taiwan as many people there were preparing to travel for Tomb Sweeping Day, a holiday across the Chinese-speaking world when people mourn the dead and make offerings at their graves. Officials warned the public to stay away from visiting tombs in mountain areas as a precaution, especially because rain was forecast in the coming days.

TSMC, the world’s biggest maker of advanced semiconductors, briefly evacuated workers from its factories but said a few hours later that they were returning to work. Chip production is highly precise, and even short shutdowns can cost millions of dollars.

Christopher Buckley

Christopher Buckley

Lai Ching-te, Taiwan’s vice president, who is also its president-elect, visited the city of Hualien this afternoon to assess the destruction and the rescue efforts, a government announcement said. Mr. Lai, who will become president in May, said the most urgent tasks were rescuing trapped residents and providing medical care. Next, Mr. Lai said, public services must be restored, including transportation, water and power. He said Taiwan Railway’s eastern line could be reopened by Thursday night.

Meaghan Tobin

Taiwan’s fire department has updated its figures, reporting that nine people have died and 934 others have been injured in the quake. Fifty-six people in Hualien County remain trapped.

Shake intensity

Taiwan’s fire department reports that nine people have died and 882 others have been injured in Taiwan. In Hualien County, 131 people remain trapped.

Agnes Chang

Agnes Chang

Footage shows rocks tumbling down one side of Guishan Island, a popular spot for hiking known as Turtle Island, off the northeast coast of Taiwan. Officials said no fishermen or tourists were injured after the landslide.

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The death toll has risen to nine, according to Taiwan government statistics.

Meaghan Tobin, Siyi Zhao

Meaghan Tobin, Siyi Zhao

Officials in Taiwan warned residents to not visit their relatives' tombs, especially in the mountains, this weekend during the holiday, known as Ching Ming, meant to honor them. There had already been 100 aftershocks and the forecast called for rain, which could make travel conditions on damaged roads more treacherous.

Crews are working to reach people trapped on blocked roads. As of 1 p.m. local time, roads were impassable due to damage and fallen rock in 19 places, according to the Ministry of Transportation. At least 77 people remain trapped. A bridge before Daqingshui Tunnel appeared to have completely collapsed.

Taiwan’s worst rail disaster in decades — a train derailment in 2021 that killed 49 people — took place on the first day of the Tomb Sweeping holiday period that year, in the same region as the earthquake.

The earthquake hit Taiwan as many people here were preparing to travel for Tomb Sweeping Day, or Ching Ming, a day across the Chinese-speaking world when people mourn their dead, especially by making offerings at their graves. Now those plans will be disrupted for many Taiwanese.

The holiday weekend would typically see a spike in travel as people visit family across Taiwan. Currently, both rail transport and highways are blocked in parts of Hualien, said Transport Minister Wang Guo-cai. Work is underway to restore rail transportation in Hualien, and two-way traffic is expected to be restored at noon on Thursday, he said.

Mike Ives

Taiwan’s preparedness has evolved in response to past quakes.

Taiwan’s earthquake preparedness has evolved over the past few decades in response to some of the island’s largest and most destructive quakes .

In the years after a 7.6 magnitude earthquake in central Taiwan killed nearly 2,500 people in 1999, the authorities established an urban search-and-rescue team and opened several emergency medical operation centers, among other measures .

And in 2018, after a quake in the eastern coastal city of Hualien killed 17 people and caused several buildings to partially collapse, the government ordered a wave of building inspections .

Taiwan has also been improving its early warning system for earthquakes since the 1980s. And two years ago, it rolled out new building codes that, among other things, require owners of vulnerable buildings to install ad-hoc structural reinforcements.

So how well prepared was Taiwan when a 7.4 magnitude quake struck near Hualien on Wednesday morning, killing at least seven people and injuring hundreds more?

Across the island, one building collapsed entirely, 15 others were in a state of partial collapse and another 67 were damaged, the island’s fire department said on Wednesday afternoon . Structural engineers could not immediately be reached for comment to assess that damage, or the extent to which building codes and other regulations might have either contributed to it or prevented worse destruction.

As for search-and-rescue preparedness, Taiwan is generally in very good shape, said Steve Glassey, an expert in disaster response who lives in New Zealand.

“ The skill sets, the capabilities, the equipment, the training is second to none,” said Dr. Glassey, who worked with Taipei’s urban search-and-rescue team during the response to a devastating 2011 earthquake in Christchurch, New Zealand. “They’re a very sharp operation.”

But even the best urban search-and-rescue team will be stretched thin if an earthquake causes multiple buildings to collapse, Dr. Glassey said.

Taiwan has options for requesting international help with search-and-rescue efforts. It could directly ask another country, or countries, to send personnel. And if multiple teams were to get involved, it could ask the United Nations to help coordinate them, as it did after the 1999 earthquake.

Pierre Peron, a spokesman for the United Nations, said on Wednesday afternoon that no such request had yet been made as a result of the latest earthquake.

Meaghan Tobin contributed reporting.

At least seven people have died and 736 have been injured as a result of the earthquake, according to Taiwan’s fire department. Another 77 people remained trapped in Hualien County, many of them on hiking trails. Search and rescue operations are underway, said the fire department.

Siyi Zhao

Aftershocks of magnitudes between 6.5 and 7 were likely to occur over the next three or four days, said Wu Chien-fu, director of the Taiwanese Central Weather Administration’s Seismology Center, at a news conference.

As of 2 p.m., 711 people had been injured across Taiwan, the fire department said, and 77 people in Hualien County remained trapped. The four who were known to have died were in Hualien.

Victoria Kim

Hualien County is a quiet and scenic tourist destination.

Hualien County on Taiwan’s east coast is a scenic, sleepy tourist area tucked away from the island’s urban centers, with a famous gorge and aquamarine waters. It also happens to sit on several active faults , making it prone to earthquakes.

The county has a population of about 300,000, according to the 2020 census, about a third of whom live in the coastal city of Hualien, the county seat. It is one of the most sparsely populated parts of Taiwan. About three hours by train from the capital, Taipei, the city describes itself as the first place on the island that’s touched by the sun.

Hualien County is home to Taroko National Park, one of Taiwan’s most popular scenic areas. Visitors come to explore the Taroko Gorge, a striated marble canyon carved by the Liwu River, which cuts through mountains that rise steeply from the coast. The city of Hualien is a popular destination as a gateway to the national park.

According to the state-owned Central News Agency, three hikers were trapped on a trail near the entrance to the gorge on Wednesday, after the quake sent rocks falling. Two of them were found dead, the news agency said. Administrators said many roads within the park had been cut off by the earthquake, potentially trapping hikers, according to the report.

Earthquakes have rattled Hualien with some regularity. In 2018, 17 people were killed and hundreds of others injured when a magnitude 6.5 quake struck just before midnight, its epicenter a short distance northeast of the city of Hualien.

Many of the victims in that quake were in a 12-story building that was severely tilted, the first four floors of which were largely crushed, according to news reports from the time. The next year, the area was shaken by a 6.1-magnitude earthquake that injured 17 people.

The area has some of the highest concentrations of Taiwan’s aboriginal population, with several of the island’s Indigenous tribes calling the county home .

The county government in Hualien released a list of people that had been hospitalized with injuries, which stood at 118 people as of midday Wednesday.

Across Taiwan, one building fell down entirely, in Changhua County on the west coast, and 15 buildings partially collapsed, Taiwan’s fire department said. Another 67 buildings were damaged. One of the partially collapsed structures was a warehouse in New Taipei City where four people were rescued, according to Taiwan’s Central News Agency. Another 12 were rescued at a separate New Taipei City building where the foundation sank into the ground.

Peggy Jiang, who manages The Good Kid, a children’s bookstore down the street from the partially collapsed Uranus Building in Hualien, said it was a good thing they had yet to open when the quake struck. The area is now blocked off by police and rescue vehicles. “Most people in Hualien are used to earthquakes,” she said. “But this one was particularly scary, many people ran in the street immediately afterward.”

Lin Jung, 36, who manages a shop selling sneakers in Hualien, said he had been at home getting ready to take his 16-month-old baby to a medical appointment when the earthquake struck. He said it felt at first like a series of small shocks, then “suddenly it turned to an intense earthquake shaking up and down.” The glass cover of a ceiling lamp fell and shattered. “All I could do was protect my baby.”

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Chris Buckley ,  Paul Mozur ,  Meaghan Tobin and John Yoon

The earthquake damaged buildings and a highway in Hualien.

The magnitude 7.4 earthquake that struck Taiwan on Wednesday damaged many buildings and a major highway in Hualien, a city on the eastern coast, and it knocked out power as it rocked the island.

Across Taiwan, the quake and its aftershocks caused one building to completely collapse and 15 others to partially collapse, according to Taiwan’s fire department. Sixty-seven other buildings sustained damage.

Two tall buildings in Hualien that sustained particularly extensive damage were at the center of the rescue efforts there. Most damage across the city was not life-threatening, said Huang Hsuan-wan, a reporter for a local news site.

Where buildings were reported damaged in Hualien City

“A lot of roads were blocked off. There are a lot of walls toppled over onto cars,” Derik du Plessis, 44, a South African resident of Hualien, said shortly after the earthquake. He described people rushing around the city to check on their houses and pick up their children. One of his friends lost her house, he said.

One of the damaged buildings in Hualien, a 10-story structure called the Uranus Building that housed a mix of homes and shops, was tilted over and appeared to be on the verge of collapse. Many of its residents managed to flee, but some were missing, said Sunny Wang, a journalist based in the city. Rescuers were trying to reach the basement, concerned that people might be trapped there.

Photographs of the initial damage in Hualien showed another building, a five-story structure, leaning to one side, with crushed motorcycles visible at the ground-floor level. Bricks had fallen off another high-rise, leaving cracks and holes in the walls.

The quake also set off at least nine landslides on Suhua Highway in Hualien, according to Taiwan’s Central News Agency, which said part of the road had collapsed.

Taiwan’s fire department said four people had been killed in the earthquake.

John Yoon

Across Taiwan, 40 flights have been canceled or delayed because of the earthquake, according to Taiwan’s Central Emergency Operation Center.

President Tsai Ing-wen visited Taiwan’s national emergency response center this morning, where she was briefed about the response efforts underway by members of the ministries of defense, transportation, economic affairs and agriculture, as well as the fire department.

A look at Taiwan’s strongest earthquakes.

The magnitude 7.4 earthquake that hit Taiwan on Wednesday morning was the strongest in 25 years, the island’s Central Weather Administration said.

At least four people died after the quake struck off Taiwan’s east coast, officials said.

Here’s a look back at some of the major earthquakes in modern Taiwanese history:

Taichung, 1935

Taiwan’s deadliest quake registered a magnitude of 7.1 and struck near the island’s west coast in April 1935, killing more than 3,200 people, according to the Central Weather Administration. More than 12,000 others were injured and more than 50,000 homes were destroyed or damaged.

Tainan, 1941

A magnitude 7.3 earthquake in December 1941, which struck southwestern Taiwan, caused several hundred deaths, the United States Geological Survey said.

Chi-Chi, 1999

A 7.6 magnitude earthquake in central Taiwan killed nearly 2,500 people in September 1999. The quake, which struck about 90 miles south-southwest of Taipei, was the second-deadliest in the island’s history, according to the U.S.G.S. and the Central Weather Administration. More than 10,000 people were injured and more than 100,000 homes were destroyed or damaged.

Yujing, 2016

A 6.4 magnitude earthquake in February 2016 caused a 17-story apartment complex in southwestern Taiwan to collapse, killing at least 114 people . The U.S.G.S. later said that 90 earthquakes of that scale or greater had occurred within 250 kilometers, or 155 miles, of that quake’s location over the previous 100 years.

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